विपक्ष को मिटाने का सबक ग़रीब ही सिखाएँगे

चुनाव सरगर्मियों से साफ़ है कि देश में अभी मोदी की कोई आँधी या हवा वग़ैरह नहीं है। ट्रोल आर्मी के सिवाय कोई नहीं कह रहा कि ‘आएगा तो मोदी ही’। अलबत्ता, उल्टी हवा ज़रूर बह रही है। दो बार मोदी को ला चुके लोग भी तीसरी बार के लिए इनका नाम ज़ुबान पर नहीं ला रहे। जाति-धर्म से ऊपर उठकर उन हिन्दी भाषी राज्यों के शिक्षित और सम्पन्न लोग भी सहमे हुए हैं, जो तमाम दुष्प्रचार से प्रभावित होकर मोदी के समर्थक बने थे। दरअसल, अब इन्हें भी साफ़ दिख रहा है कि भारत में लोकतंत्र ध्वस्त हो चुका है। यहाँ ज़रा सा भी विरोध वर्जित और अक्षम्य है। अब दमन ही क़ानून है।

आम जनता के लिए पुलिस वैसी ही है जैसी प्रभावशाली लोगों के लिए ED, CBI और IT हैं। ये सभी सत्ता के लठैत हैं। मीडिया, राजा का भोंपू है। ट्रोल आर्मी ही निरंकुश शासक के सच्ची सेना है। ये कर्फ़्यू की तरह देखते ही गोली मारते हैं। मज़बूत दिखते वाले लोग अक्सर भ्रष्ट होते हैं। तानाशाह से बहुत डरते भी हैं। ख़ौफ़ में रहते हैं कि कहीं सत्ता के ED, CBI और IT सरीखे गुर्गे उन्हें तबाह ना कर दें। उनके लिए सुख-शान्ति से जीने की शर्त है ‘डरो और डरकर ही रहो’। इसीलिए चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट जैसी हस्तियाँ भी ख़ौफ़ के साये में ही जी रहे हैं।

सभी डरे हुए हैं, ये आख़िरी चुनाव है

ये आख़िरी चुनाव है। 400 पार होते ही भविष्य में चुनाव की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। हुआ भी तो चीन और रूस जैसा इकलौती पार्टी वाला शासन होगा। जैसे वहाँ लाल ही लाल है, वैसे यहाँ भगवा ही भगवा होगा। तभी तो दूरदर्शी नेता बीजेपी के समुद्र में समा रहे हैं। नदियाँ, समुद्र में ही तो जाएँगी। खारे का मज़ा, मीठा में कहाँ। सभी डरे हुए हैं। इस तानाशाही का नाम बदल चुका है। अब यही रामराज्य है। ये लोकतंत्र के मलवे से बना है। इसका संविधान निर्जीव है। प्राण-विहीन और ख़ौफ़नाक।

लेकिन आम जनता निडर होती है। निर्भीक भी। वोट उसकी इकलौती सम्पत्ति है। इसी सम्पदा पर सत्ता की गिद्ध-दृष्टि है। अबकी बार इसे ही छीनने की तैयारी है। अलबत्ता, छीन नहीं पाएँगे। आम लोगों के लिए वोट का अधिकार ऐसी सम्पदा है जिसे ये हर क़ीमत पर बचाएँगे। समाज के इसी तबके ने कोरोना लॉकडाउन में भूखे-प्यारे हज़ारों किलोमीटर सड़क नापने का दमखम दिखाया था। सत्ता की ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ जितनी खोखली रही, उतनी ही ठोस थी इनकी कोरोना यात्रा।

कमज़ोर तबके पर सारा दारोमदार

भारत का ग़रीब और कमज़ोर तबका ही लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी है। ये जनशक्ति ही क़दम-क़दम पर ज़ुल्म, ज़्यादती और नाइंसाफ़ी झेलने के बावजूद सत्ता से कतई नहीं डरती। कोई इनकी सुनता नहीं। फिर भी इन्हें लोकतंत्र चाहिए। वही इनका अपना है, सबसे अपना, सबसे ख़ास। निरंकुश सत्ता को भी यही ख़त्म करेंगे। यही EVM का नशा भी उतारेंगे।

मोदी जी को जब लोकतंत्र के सच्चे प्रहरियों की मनोदशा का आभास हुआ तो उन्होंने सबसे पहले ‘अबकी बार 370 और 400 पार’ का नारा गढ़ा। ताकि गोदी मीडिया और ट्रोल आर्मी माहौल बनाये कि मोदी जी अजेय हैं। लगे हाथ ED, CBI और IT जैसे लठैत को हुक़्म मिला कि विपक्ष को नेस्तनाबूद कर दो। जो बीजेपी में आये उसे बख़्श दो और जो अकड़े उसे जेल में ठूँस दो। 400 पार तो तभी होगा जब मुक़ाबले में कोई रहे ही नहीं। मोदी के ऐसे निर्णय ही बता रहे हैं कि निरंकुश सत्ता के दिन अब पूरे हो चुके हैं। इन्हीं तथ्यों की पुष्टि बीजेपी की उम्मीदवारों की सूचियाँ कर रही हैं।

370 पार से पहले 101 बाहर

अब तक बीजेपी की 7 लिस्ट आयी है। इनमें 407 उम्मीदवारों की लाटरी लगी है। इसमें 291 ऐसी सीटें हैं जहाँ अभी बीजेपी के सांसद हैं। 11 मौजूदा सांसदों की किस्मत का फ़ैसला होना बाक़ी है। पार्टी ने 2019 में 302 सीटें जीती थीं। इनमें से 101 सांसदों यानी 35 प्रतिशत का टिकट कट चुका है। जनता की नब्ज़ परखने में माहिर मोदी जी ने पाया कि उनके सिर्फ़ 180 सांसद ही ऐसे हैं जो फिर से टिकट पाने के लायक हैं।

दरअसल, मोदी जी जानते हैं कि उनके तिलिस्मी नेतृत्व, अनेक डबल इंजनों की सरकारों की अद्भुत उपलब्धियों, संघ-बीजेपी की अजेय सांगठनिक क्षमता, अपार धन-बल, बेईमान EVM और चुनाव आयोग तथा कलंकित गोदी मीडिया के भरपूर समर्थन के बावजूद देश में ज़बरदस्त सत्ता विरोधी हवा चल रही है। ये हवा इतनी तीख़ी है कि देवतुल्य मोदी जी के नाम पर भी उनके 35 प्रतिशत अनुभवी सांसद अपनी सीटों पर ऐतिहासिक रूप से ‘कमज़ोर और अपंग’ विपक्ष को हरा नहीं पाएँगे।

सबसे बड़ा मंत्र ‘Winnability Factor

ऐसा कैसे हुआ कि महज 5 साल में मोदी जी के 101 सांसद इतने निकम्मे बन गये कि अब ‘जीत की प्रत्याशा’ यानी Winnability Factor उनके हाथ से निकल चुकी है? यानी, ज़मीनी स्तर पर जनता ठान चुकी है कि ‘अबकी बार 400 पार’ नहीं, बल्कि ‘मोदी को करो दरकिनार’ होना है! ध्यान रहे कि विचारधारा, राष्ट्रवाद, सुचिता और नैतिकता की दुहाई देने वाली बीजेपी के अलावा सभी अच्छी-बुरी पार्टियों में टिकट बँटवारे का सार्वभौमिक आधार Winnability Factor ही होता है। इसी आधार पर बड़े से बड़े अपराधी, धन्ना सेठ और दाग़ी नेता टिकट पाते हैं।

47% नये मुखौटों से Damage Control

Winnability Factor के सर्वोच्च नियम के अनुसार मोदी जी ने Damage Control या नुकसान की भरपायी करते हुए 227 नये चेहरों को मैदान में उतारा है। ताकि ख़ुद मोदी जी की ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ से नाराज़ जनता अब उनके ही नये मुखौटों से भ्रमित होकर फिर से झाँसे में आ जाए। दूरदर्शिता के धनी मोदी जी जानते हैं कि 2019 में उनको प्रधानमंत्री बनवाने वाले बीजेपी के 302 सांसदों में से 35 प्रतिशत या एक-तिहाई या 101 नेता ऐसे हैं जो उन्हें सत्ता से बाहर करवा देते।

दुर्भाग्यवश, मोदी जी के तमाम नये मुखौटों में विरोधी खेमे में रहे अनगिनत ऐसे दुष्ट, पतित और नालायक नेता भी शामिल हैं जिनके पाप और कुकर्मों को ‘मोदी वाशिंग मशीन और पाउडर’ से धो-पोंछकर साफ़ किया गया है। ताकि उनके गले में भगवा गमछा डालकर उनका उद्धार हो सके। फिर पूर्व जन्म के पापों से उनकी मुक्ति के लिए उनका बीजेपी के टिकट से अभिषेक किया गया। मोदी जी का ऐसा विपक्ष-प्रेम अद्भुत है। तभी तो उनकी वैश्विक छवि और लोकप्रियता से अमेरिका और जर्मनी ईष्या करते हैं।

विकसित भारत के लिए सांसदों की बलि

मोदी जी की दिव्य-दृष्टि से गुजरात तो कभी विकसित राज्य बना नहीं लेकिन भारत ज़रूर 2047 तक विकसित होगा। ऐसी परम गति के लिए ही 101 बेशक़ीमती सांसदों की बलि दी गयी है। ये बलिदान 2019 से कम है। तब मोदी जी ने अपने 282 में से 119 सांसदों के टिकट काटे थे। पिछली बार 42 प्रतिशत सांसदों के टिकट कटे, जबकि अबकी बार 35 प्रतिशत की आहुति हुई। बाक़ी बची 11 सीटों के मुखौटे भी यदि नये हुए तो भी टिकट गँवाने वालों का अनुपात 37 प्रतिशत से कम ही रहेगा।

इन्हीं आँकड़ों के ज़रिये बताया जाएगा कि विधायकों और सांसदों को पतंग की तरह उड़ा देने वाले मोदी जी की तानाशाही घटी है। लेकिन अपनी सत्ता पर मँडराते गम्भीर संकट को देखते हुए ही मोदी जी ने ED, CBI और IT जैसे सत्ता के लठैतों को विरोधी खेमे के नालायकों और घमंडिया नेताओं को बीजेपी में ठेलने या जेल में ठूँसने की ज़िम्मेदारी दी। चुनाव आयोग और अदालतों जैसे संवैधानिक संस्थानों को भी सख़्त हिदायत है कि ख़बरदार, चूँ भी किया तो मटियामेट कर दिये जाओगे।

खोखला निकला ‘मोदी का परिवार’

‘मोदी की आँधी’ की असलियत 4 जून को पता चलेगी। लेकिन अभी तक का टिकट वितरण ये ज़रूर बता रहा है कि उनका जादू अब उड़न-छू हो चुका है। 2019 में जीती एक तिहाई सीटों पर बीजेपी की हालत पतली है। हवा ख़िलाफ़ है। वर्ना 5 साल तक ‘मोदी का परिवार’ के नगीना रहे 101 मौजूदा सांसदों की जीत मुश्किल क्यों होती? कल तक जो मोदी जी के लाड़ले थे वो अब बोझ और NPA (non performing assets) कैसे बने? ये बेचारे भी दिन-रात मोदी जी को बेहद पराक्रमी, होनहार, समर्पित और उत्कृष्ट प्रधानसेवक बताते नहीं अघाते थे।

मोदी जी ने भले ही अपने निकम्मे मुखौटों पर फिर दाँव नहीं खेला, लेकिन उनके नये मुखौटे भी ‘भागते भूत की लंगोटी’ वाले ही हैं। जिन्हें पिछला मुखौटा खटक रहा था उन्हें नया क्यों पसन्द आएगा? जनता ने उन्हें वोट दिया था तो नाराज़गी भी उन्हीं से क्यों नहीं होगी? लिहाज़ा, मुखौटे नये हों या पुराने जो भी मोदी जी गिरती लोकप्रियता पर निर्भर रहेंगे उनका लुढ़कना निश्चित है। EVM की भी सीमा है। जनता की नाराज़गी तगड़ी होगी तो EVM की हेराफेरी के बावजूद नतीज़े भी कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल जैसे क्यों नहीं होंगे?

Winnability Factor का दंश

टिकट वितरण बता रहा है कि विश्व गुरु के सिर्फ़ 44 प्रतिशत सांसदों का ही Winnability Factor क़ायम है। इसका मतलब ये है कि 2019 की 302 सीटों में से 136 तक तो बीजेपी बचा लेगी, लेकिन अब तो जो 407 उम्मीदवार घोषित हुए हैं उनमें से 271 सीटों पर उसे विपक्ष की ग़ैर-मौजूदगी में सीधे आम जनता का गतिरोध झेलना होगा। ये गतिरोध कहीं हल्का, तो कहीं भारी और कहीं ज़बरदस्त श्रेणी का होगा। इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले ने ‘न खाऊँगा, ना खाने दूँगा’ की हक़ीक़त उजागर कर दी है। इसीलिए इस बार ‘मोदी है तो मुमकिन है’ की पोल जनता ही खोलेगी।

मुकेश कुमार सिंह

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Now the onus of saving democracy lies on the poor