अब छाती कूटकर जितनी मर्जी स्यापा कर लीजिये, देश को तो उनने बेच दिया!
अब छाती कूटकर जितनी मर्जी स्यापा कर लीजिये, देश को तो उनने बेच दिया!
यह कोई भगवा झंडा वह नहीं है जो शिवाजी महाराज ने फहराया, यह भगवा वह भगवा भी नहीं है।
शिवसेना का भगवा भी यह नहीं है।
लाल नील लापता है और फर फर फहराता फर्जी फगवा केसरिया।
पलाश विश्वास
मीडिया की खबरों के मुताबिक आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि ग्रोथ के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था कई देशों से पीछे है। रघुराम राजन ने चेताया है कि दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है उसका असर भारत पर पड़ना तय है। अगर ब्रेक्सिट हुआ तो भारतीय इकोनॉमी को नुकसान होगा। रघुराम राजन ने मुंबई में एक लेक्चर के दौरान ये बातें कही।
बेहद अफसोस के साथ यह लिखना पड़ रहा है कि हमारे बदलाव के ख्वाब, हमारी क्रांति, हमारी विचारधारा का हश्र कुल मिलाकर यही है कि हम बिना प्रतिरोध हजारों साल से सनातन भारत का सवा सत्यानाश के राजसूय में शामिल हुए और बाजार के कार्निवाल में कबंधों के जुलूस में अपनी भावी पीढ़ियों के कटे हुए हाथ पांव और लहूलुहान दिलोदिमाग को देखने की हमारी कोई दृष्टि ही नहीं है।
बहरहाल बाजार के महानतम उपभोक्ताओं, नागरिकता के महाश्मसान में महोत्सव मनायें कि वंदनवार की तरह सुर्खियों में अब सिर्फ उड़ान है और इस पृथ्वी पर जमीन कहीं बची नहीं है।
बीजमंत्र का अखंड जाप करें, दुनिया की सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था सनातन धर्म का सनातन भारत।
ताजा सुर्खियां इस मृत्यु उपत्यका में अखंड महोत्सव का समां बांध रही हैं क्योंकि भारत दुनिया भर में निवेश के लिए सर्वोत्तम स्थान है और हमने सारे दरवाजे और सारी खिड़कियां विदेशी पूंजी और विदेशी सेनाओं के लिए खोल दिये हैं।
क्योंकि भारतीय लोकगणराज्य में 130 करोड़ जनता की किस्मत सोने से मढ़ दी गयी है और अच्छे दिन लहलहा रहे हैं। क्योंकि वैदिकी राजसूय के महाजनों ने एविएशन और फूड प्रोसेसिंग में 100 फीसदी विदेशी निवेश का रास्ता खोल दिया है।
सोमवार को वैदिकी सभ्यता के सर्वोच्च पुरोहित की अध्यक्षता में हुई बैठक में ये फैसले हुए। बाजार का दावा है कि कटे हुए हाथ, पांवों, लहूलुहान दिलो दिमाग और सर्वव्यापी उड़ता पंजाब के लिए इनसे बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होने की उम्मीद है।
केंद्रीय वैदिकी कार्यालय ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि दूसरे चरण के इस आर्थिक सुधार से भारत एफडीआई के लिए दुनिया की सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था बन गया है।
बीजमंत्र का अखंड जाप करें, दुनिया की सबसे मुक्त अर्थव्यवस्था सनातन धर्म का भारत।
हम मेहनतकशों के हक हकूक, आम जनता के दुःख दर्द की क्या परवाह करें, परिवार, समाज, लोक, संस्कृति, भाषा, सभ्यता, अर्थव्यवस्था और धर्म, विचारधारा, इतिहास और दर्शन से हमारा क्या लेना देना, हम तो इतने निर्मम उपभोक्त हो गये हैं कि अपने ही बच्चों की लाशों को रौंदते हुए हम सरपट बाजार में हाथों में लपलपाती क्रयशक्ति लेकर भाग रहे हैं।
राजकमल चौधरी साठ के दशक में कुछ इसी तेवर में सोनागाछी की सड़कों पर राज करते थे। अपनी-अपनी जीपें खोल लें।
यह कोई भगवा झंडा वह नहीं है जो शिवाजी महाराज ने फहराया, यह भगवा वह भगवा भी नहीं है।
शिवसेना का भगवा भी यह नहीं है।
लाल नील लापता है और फर फर फहराता फर्जी फगवा केसरिया।
गौर करें कि हमारे खून का रंग अब भगवा है और हमारी सत्तर दशक से अब तक की पीढ़ियों ने सिर्प इस महादेश, बल्कि इसकी जमीन पर जनमने वाली भावी पीढ़ियों और कायनात की तमाम रहमतों, बरकतों और नियामतों की एकमुश्त हत्या कर दी है।
संघ परिवार को अहंकार होगा और कसरिया जनता को गुमान होगा कि भारत अब हिंदू राष्ट्र है और उनके विरोधियों का पाखंड धर्मनिरपेक्षता और प्रगति के नाम, विचारधारा और आंदोलन के नाम बेमिसाल हैं, लेकिन सच यही है कि किसी को देश दुनिया या मेहनतकश आवाम, आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और वर्गहीन सर्वहारा की परवाह क्यों होगी क्योंकि हम सबके हाथ अपने ही बच्चों और अपनी ही स्त्रियों के खून से रंगे हैं।
जो मारे गये या मर गये, जो बलात्कार के शिकार होते रहे हैं, जो नशे में उड़ता पंजाब हैं, उनकी छोड़िये, बची खुची स्त्रियां और जिनका फोटो खूबसूरत नजारों के मध्य शेयर करते अघाते नहीं है, उनमें से कोई भी सुरक्षित नहीं है और किसी को इसका अहसास तक नहीं है।
कल तक मैं हिंदी के गौरवशाली अखबार जनसत्ता के संपादकीय में काम कर रहा था और उस अखबार का काया कल्प इतना घनघोर हुआ है कि हमारे इलाके में जो एकमात्र प्रति मरे हिस्से की थी, 25 साल की नौकरी के बाद सबसे पहले उसे बंद कराया है। एक झटके के साथ पच्चीस साल के नाभि नाल का संबंध तोड़ दिया है तो समझ लीजिये कि मेरा दिलोदिमाग कितना लहूलुहान होगा।
अब इससे शायद कोई फर्क पड़े कि हम जियें या मरे, जो शुतुरमुर्ग जिंदगी हम साठ के दशक से जीते रहे हैं, इस दुस्समय में हमारी पीढ़ी की पुरस्कृत, सम्मानित, प्रतिष्ठित महामहिमों, रथि महारथियों का कुल जमा कालजयी कृतित्व यही है कि हम अब अमेरिकी उपनिवेश है और हम लगातार चीखे जा रहे थे, अमेरिका से सावधान, तो हमारी कोई औकात ही नहीं है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि हमारे जीते जी किस हादसे के शिकार होंगे हमारे बच्चे, कैसी दुर्गति होगी हमारी स्त्रियों की, हमें इसकी फिक्र नहीं है। जिन्हें आदिवासी भूगोल, दलित जमीन, हिमालयी पर्यावरण, बस्तर और दांतेवाड़ा, मणिपुर और कश्मीर की परवाह नहीं है, वे समझ लें कि आखेटगाह है देश का चप्पा-चप्पा अब और अगला शिकार कौन होगा, हम नहीं जानते।
महावीर अर्जुन का गांडीव भी अपने स्वजनों को बचाने में नाकाम रहा। एकलव्य की अंगूठी की कीमत पर वह स्रवश्रेष्ठ धनुर्विद्या भी किसी स्वजन के काम नहीं आया तो परमेश्वर श्रीकृष्ण भी महाभारत में निमित्तमात्र की नियति के गीतोपदेश के बाद कुरुक्षेत्र के विधवा विलाप से तटस्थ रहने के बाद मूसल पर्व में अपने स्वजनों का नरसंहार रोक नही सके।
हिंदुत्व के एजेंडे में सिर्फ संघ परिवार या बजरंगी सेना शामिल हैं, यह कहना सरासर गलत है।
जाने अनजाने हम भी उसी सेना के कल पुर्जे हैं।
न होते तो हालात कुछ और होते, फिजां कुछ और होती। हमने अपना अपना कुरुक्षेत्र रच दिया है और मूसल पर्व में स्वजनों का वध देखने के लिए नियतिबद्ध हम हैं।
हम जियें या न जियें, इससे फर्क पड़ता नहीं लेकिन बच्चों की सांस के लिए हमने कोई पृथ्वी बचायी नहीं हैं। हमारे बच्चे हमारे जीते जी कब कहां लावारिस मारे जायेंगे, कहना मुश्किल है।
हम शोक भी मनाने की हालत में न होंगे।
अपनी अति प्रिय स्त्रियों को हमने बाजार के हवाले कर दिया है। यही हिंदुत्व का असल एजेंडा है।
अपने सनातन धर्म, अपनी प्राचीन सभ्यता और गौरवशाली इतिहास के लिए महान यूनानियों, मेसोपोटामिया, मिस्र, इंका, माया सभ्यता के वंशजों की तरह सीना छप्पन इंच का तान लीजिये और अब कुछ करने को नहीं है, पल-पल योगाभ्यास कीजिये क्योंकि चक्रवर्ती सम्राट विश्वविजेता कल्कि महाराज ने दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह में शिरकत की है।
मुक्तिमार्ग पर आप हम अडिग है। अपने पूर्वजों और उनकी महान विरासत को याद करना छोड़ दें। हम इसके लायक भी नहीं है।
अब छाती कूटकर जितनी मर्जी स्यापा कर लीजिये, देश को तो उनने बेच दिया।
कालजयी साहित्य लिखने वालों के कलाउत्कर्ष पर सांस्कृतिक उत्सव करते रहिये क्योंकि सत्तर के दशक से साहित्य और पत्रकारिता ने जनता को यह मुक्तबाजार दिया है।
देश रहे न रहे, मेहनतकश और किसान, दलित और आदिवासी जिये या मरे, आपका हमारा क्या?
तनिको आंखों में भरकर पानी याद करें कि नई पीढ़ी का समूचा संसार उड़ता पंजाब परिदृश्य है और हमने अपने बच्चों को बलि चढ़ाने की रस्म अदायगी कर दी है।
तनिको आंखों में भरकर पानी याद करें कि इस देश में हरित क्राति से विदेशी पूंजी का जो खुल्ला खेल फर्रूखाबादी जारी है, नक्सल और माओवादी जनविद्रोह, पंजाब में अभूतपूर्व कृषि संकट, खालिस्तान आंदोलन, आपरेशन ब्लू स्टार और समूचे अस्सी के दशक में रक्तरंजित देश ने उसकी भारी कीमत चुकायी है।
तनिको आंखों में पानी भर कर याद करें देश में दंगा फसाद, नरसंहार, बलात्कार सुनामी, बेदखली से लेक बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार, भोपाल गैस त्रासदी। हमं कभी कोई फर्क नहीं पड़ा।
तनिको आंखों में भरकर पानी दृष्टि अगर सही सलामत है, दिव्यांग अगर नहीं हैं और अब भी इंद्रियां कामककर रही हैं कि लोगों को दसों दिशाओं में केसरिया सुनामी नजर आती है और इसके विपरीत हम पल पल खून के लबालब समुंदर में सत्तर के दशक से अबतक जी और मर रहे हैं।
तनिको आंखों में भरकर पानी याद करें कि हमने लगातार इस दुस्समय को संबोधित किया है। पहले पहल लघु पत्रिकाओं में, जिन अखबारों में पिछले 43 सालों के दौरान हमने काम किया है, उनमें, याहू ग्रूप से लेकर ब्लागों पर हमारे रोजनामचे में भी।
जाहिर है कि फासिज्म का यह राजकाज और राजधर्म किसी एक व्यक्ति या एक रंग तक सीमाबद्ध नहीं हैं और न सारा किया धरा 16 मई 2014 के बाद का है।
हमने समय रहते किसी भी स्तर पर अबाध पूंजी के इस सर्वव्यापी नरसंहारी साम्राज्यवादी अश्वमेध अभियान का विरोध नहीं किया है।
हम 2005 से विशेष तौर पर सरकारी गैरसरकारी श्रमिकों कर्मचारियों और श्रमिक संगठनों को संबोधित करते रहे हैं सीधे उनके बीच जाकर देशभर में, नतीजा वही सिफर। जो लोग शिकार हैं इस अनंत आखेट के, वे नोट बटोरने में अच्चे दिन का इंतजार कर रहे हैं ताकि मौज मस्ती का स्वर्ग वास हो जाये। तो लीजिये अखंड स्वर्गवास है।
जोर से चीखते रहें, इंकलाब जिंदाबाद।
जोर से चीखते रहें, हमारी मांगे पूरी करो।
जोर से चीखते रहें, तानाशाही मुर्दाबाद।
जोर से चीखते रहें, लाल सलाम। लाल सलाम।
जोर से चीखते रहें, जय भीम कामरेड।
जोर से चीखते रहें, जयश्री राम।
जोर से चीखते रहें, भव्य राम मंदिर वहीं बनायेंगे।
जोर से चीखते रहें, सौगंध राम की खाते हैं।
जोर से चीखते रहें, बाबासाहेब अमर रहे।
जोर से चीखते रहें, गान्ही बाबा की जै।
जोर से चीखते रहें, नमो बुद्धाय।
जोर लगाकर हेइया।
मंझधार डूब गई रे नैय्या।
यह हिंदू राष्ट्र नहीं है। नहीं है। नहीं है।
यह दरअसल कोई राष्ट्र ही नहीं है।
यह विशुध पतंजलि मार्का अमेरिकी उपनिवेश है।
मत कहो जय श्री राम।
जोर लगाकर हेइया।
मंझधार डूब गई रे नैय्या।
मत कहो जय श्री राम।
मत कहो हर हर महादेव
मत कहो अकबर हो अल्लाह
सब उपासना, सब इबादत, नमाज अदायगी, तीज त्योहार, पर्व, तमाम धर्म और तमाम आस्थाएं अब विशुध मुक्तबाजार।
हम बार बार चेता रहे थे। कांग्रेस जमाने से। नवउदारवादी सुधार अश्वमेध शुरु होने से पहले पहले तेल युदध के समय से।


