अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो..आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए....
अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो..आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए....
अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो..आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए....
राजीव रंजन श्रीवास्तव
DB LIVE | 09.1.17 | GHUMTA HUA AINA | CURRENT AFFAIRS | RAJEEV RANJAN SRIVASTAVA
मुलायम सिंह यादव के दिल की तमन्ना इस वक्त शायद यही होगी कि उनकी आंखों से आंसू की जगह हसरत ही निकल जाए। हसरत, सपा को दोबारा सत्ता में लाने की। हसरत, सपा का सुप्रीमो आजीवन बने रहने की। हसरत, हमेशा के लिए राजनीति का पहलवान बने रहने की। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उस्ताद को चेले से ही पटखनी मिल गई।
सपा के दंगल में अखिलेश यादव ने अपना बाहुबल साबित करते हुए दिखा दिया है कि इस दंगल के सुल्तान फिलहाल वे ही हैं।
क्या होगा समाजवादी पार्टी का भविष्य?
क्या पार्टी दो फाड़ होगी? क्या यूपी के चुनाव अब पंचकोणीय होंगे? ऐसे कई सवालों पर चर्चा के लिए हमारे साथ लखनऊ से जुड़े हुए हैं देशबंधु के उत्तरप्रदेश ब्यूरो प्रमुख रतिभान त्रिपाठी।
आइये पहले देखते हैं ये रिपोर्ट..
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। समाजवादी पार्टी में मचे घमासान का कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। कई राउंड की बातचीत हुई लेकिन नतीजा नहीं निकला। सुलह के फॉर्मूले पर दोनों पक्षों के नेताओं में सहमति बनाने की कोशिशें होती रहीं।
बताया जा रहा है कि अमर सिंह ने मुलायम से कह दिया है कि वह सुलह के लिए पीछे हटने को तैयार हैं और वह त्यागपत्र दे देंगे। वहीं शिवपाल भी राष्ट्रीय राजनीति में जाने को तैयार हैं। शिवपाल ने यहाँ तक भरोसा दिलाया है दोनों ही लोग पद त्याग देंगे लेकिन नेताजी को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लौटा दिया जाए। उनका अपमान नहीं होना चाहिए। लेकिन इस पर भी अखिलेश तैयार नहीं हैं।
चुनाव आयोग ने मुलायम और अखिलेश दोनों खेमे से चुनाव चिह्न पर दावेदारी को लेकर बहुमत पेश करने को कहा है। आयोग ने दोनों धड़े को 9 जनवरी का वक्त दिया है।
इसी दौरान अखिलेश यादव और कांग्रेस के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। माना जा रहा है कि दिल्ली में अखिलेश यादव और कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बीच होने वाली मुलाकात में गठबंधन को लेकर बात हो सकती है।
राहुल गांधी के साथ होने वाली बातचीत में प्रियंका गांधी के मौजूद रहने की भी उम्मीद जतायी जा रही है।
परिवार में यह फूट सचमुच है या इसके पीछे मुलायम सिंह की ही रणनीति है, यह तो पता नहीं, लेकिन जिस तरीके से अखिलेश अपनी चालें चल रहे हैं, उसमें वे सही अर्थों में मुलायम के ही वारिस साबित हुए हैं।
कहा जा सकता है कि अखिलेश उनकी विरासत को नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं- अब चाहे वह आने वाले चुनाव में हारें या जीतें, वह मुलायम सिंह की विरासत के सही उत्तराधिकारी हैं. साम, दाम, दंड, भेद हर तरह से।
किसी जमाने में पहलवान रहे मुलायम सिंह को अहसास हो जाना चाहिए कि अब उनकी उम्र हो चली है। बेटा उनकी छाया से बाहर निकल गया है। अखिलेश अब अपने पिता और चाचा के हाथ की कठपुतली नहीं बनना चाहते। अब अखिलेश बड़े हो गए हैं और नेता बन गए हैं, और वो भी अपने दम पर। नेताजी के दिल में इस वक़्त यही कशमकश चल रही होगी कि-
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने..बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं


