अब न वो वायदे रहे न नारे, यूपी में है हार का डर
अब न वो वायदे रहे न नारे, यूपी में है हार का डर
उघरहिं अंत न होइ निबाहू....
रणधीर सिंह सुमन
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥
उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥
जो लोग साधु का भेष धारण करके संसार के लोगों को ठगते हैं, जिनके भेष को देखकर संसार उनको पूजता है, परन्तु अंत में एक दिन उनका कपट सबके सामने आ ही जाता है, जिस प्रकार कालनेमि, रावण और राहु का कपट सबके सामने आया था। उसी तरह से नागपुरी मुख्यालय के गोयबिल्सों ने देश में लोकतंत्र का अपहरण कर लिया है। अब उनकी कलाई खुलने लगी है औरअब वह हर मोर्चे पर पराजित नजर आ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी के पास 71 लोकसभा सदस्य हैं। पूरे प्रदेश से 80 लोकसभा सदस्य चुने जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर जातीय समीकरण बैठाने के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल किया गया है। इस कार्य के विश्लेषण से यह लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित जैन शाह को मीडिया द्वारा पैदा किये हुए जादू के ऊपर विश्वास नहीं रह गया है.
जिन नारों और जिन घोषणाओं के आधार पर उत्तर प्रदेश से 71 लोकसभा सदस्यों का चुनाव जीता जाना एक सम्मोहन पूर्ण स्थिति का होना था। अब न वो वायदे रहे न वो नारे रहे और सम्मोहन भी टूटा है. ऐसी स्थिति में जब नरेन्द्र दामोदर मोदी और अमित जैन शाह की कार्यकुशलता आ चुकी है तो उनका विशवास पूरी तरह से खंडित हो रहा है।
उनके पास संघ द्वारा अफवाह उड़ाने की मशीन और उसके पश्चात प्रदेश में सांप्रदायिक उन्माद के अलावा कोई बात बची नहीं है।
महंगाई, बेरोजगारी, शोषण, अत्याचार को रोकने की दिशा में मोदी सरकार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी है और उसके विपरीत रेलवे के किराए में जिस तरीके से आये-दिन बढ़ोत्तरी की जा रही है वह एक तरह से लूट की किस्म का अपराध भी है।
आत्महत्या कर रहे किसान को मोदी सरकार को देने के लिए कुछ नहीं बचा है तो विदेशी कंपनियों द्वारा किसानों से जबरदस्ती पैसा लेकर फसल बीमा योजना जरूर कराया जा रहा है। सरकार के पास बीमा के अतिरिक्त कोई बात नहीं है। वैसे भी संघ के स्वयं सेवक ज्यादातर जीविकापार्जन करने के लिए बीमा एजेंट रहे हैं तो उनका सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि वर्तमान में भूखे मर जाओ और मरने के बाद वारिसों को धन मिलेगा और तुमको स्वर्ग।
देश के कल्याणकारी स्वरूप को बदल कर कॉर्पोरेट सेक्टर के मुनाफे को बढ़ाने के लिए केंद्र की सरकार कटिबद्ध है। जुलाई में सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल की घोषणा की जा चुकी है। इस बदहाली की स्थिति में गेरुआ या भगवा आतंकियों के लिए नया मुखौटा फिलहाल नहीं मिल पा रहा है।


