भारतीय अर्थ व्यवस्था - अब आप गायत्री मत्र का जाप करें या हनुमान चालीसा का, इससे बाजार आपको बख्शेगा नहीं। खाल उतार कर कंकाल खूंटी पर टांग देगा।
2008 भारतीय अर्थ व्यवस्था शेयर सूचकांक से कहीं जुड़ी न थी, न आखिरी सांस तक मनमहोन बाबू यह करिश्मा कर सके।
लेकिन अब भारतीय अर्थ व्यवस्था मुकम्मल शेयर बाजार है।
जो नीति आयोग बना, योजना आयोग के बदले वह शेयर सूचकांक है दरअसल।
जो बजट रेलबजट विकास का पीपीपी माडल और मेकिंग इन है, वह दरअसल शेयर सूचकांक की चर्बी है और यह चर्बी भारतीय जनगण के लिए कैंसर का सबब है।
शत प्रतिशत हिंदुत्व के झंडेवरदारों की असली आस्था लेकिन निवेशकों की आस्था है, यह हम बार बार बतला जतला लिख चुके हैं।
निवेशकों का आस्था का आधार शेयर बाजार है, जहां खेलने और कत्ल करने के कैसिनो इंतजामात विदेशी हितों के अनुकूल है।
वहां शुरु से कत्ल होने के लिए तैयार कतारबद्ध भेड़ों और मुर्गियों की बारी कमी महसूस की जा रही है।
नौ महीने के राजकाज में शेयर केंद्रित रंग बिरंगे विकास कार्यक्रमों में और आखिरकार बजट और रेल बजट माध्यमे थोकभाव से ये धर्मोन्मादी भेड़ें और बकरियां अब तैयार हैं।
अब बता ही दें कि लोग झूम रहे थे कि पीएफ आनलाइन हो गया है। जब मन होगा तोड़ निकालेंगे और फिर पांचों उंगलियां में घी होगी और सर कड़ाही में होगा।
दरअसल ईपीएफ फंड और पेंशन की रकम को डिजिटल बना दिया गया है, जिसे कभी भी कहीं भी बिना किसी की इजाजत शेयर बाजार में खपाया जा सकता है।
इसी बूते पीपीपी विकास माडल के तहत निर्माण विनिर्माण के प्रोमोटर बिल्डर माफिया रोज के मुताबिक बजट में डाउ कैमिकल्स और मनसैंटो बहार है कि पेंशन और पीएफ की रकम सीधे बाजार में निजी हितों और विदेशी पूंजी के लिए खटाया जा सकें।
बीमा का किस्सा भी वहींच।
सार्वजनिक उपक्रमों का पैसा और विभिन्न मंत्रालयों में जनत का पैसा भी कारपोरेट हित में, देशी विदेशी पूंजी के हित में पीपीपी विकास के बहाने ओ3म नमो स्वाहा।
अब आप गायत्री मत्र का जाप करें या हनुमान चालीसा का, इससे बाजार आपको बख्शेगा नहीं। खाल उतार कर कंकाल खूंटी पर टांग देगा।
वही इंतजाम के तहत कारपोरेट को धेला भर टैक्स न देना पड़े और जनता को कमसकम सोलह फीसद सर्विस टैक्स देना हो, जीएसटी का आविर्भाव है।
राज्य सरकारों के पास जो राजस्व है , विकास परियोजनाओं के पीपीपी माडल केतहत देशी विदेशी पूंजी के मुनाफे के खातिर उसे राज्य सरकारों के विकास में हिस्सेदारी के बहाने खपाया जा रहा है।
इस अलौकिक तिलिस्म का आखिरी मास्टर ब्लास्ट जनधन योजना के तहत खुले करोड़ों विश्वरिकार्ड बनाने वाले खाते और बायोमैट्रिक डिजिटल नागरिकता है कि अब जन धन योजना के तहत खोले गये जमा खाता भी डीमैट खाता के साथ नत्ती होगें। कि खरबूजों को तलवारों की धार से गुजारने का पक्का इंतजाम है।
क्योंकि बगुला विशेषज्ञों की राय है कि सरकार को जनधन योजना की तरह जिनके पास भी मोबाइल फोन हैं उनके लिए डीमैट एकाउंट भी मुफ्त खोल देना चाहिए।
क्योंकि बगुला विशेषज्ञों की राय है कि इक्विटी कल्ट को बढ़ावा देने के लिए सरकार को सरकारी कंपनियों के शेयरों को 10 फीसदी डिस्काउंट पर एलॉट करना चाहिए।
क्योंकि बगुला विशेषज्ञों की राय है कि बाजार में अच्छा पैसे बनाने के लिए 1, 2 या 5 साल के बजाय 30-40 साल का नजरिया होना बेहद अहम है। शेयर बाजार में लंबी अवधि के निवेश से फायदा मिलता है।
अब आम जनता की औकात क्या कि 30-40 साल के नजरिये से निवेस करें और अपनी फौरी जरुरतों अपनी मेडिकल खर्च, शिक्षा, रोजगार , बेटी की शादी वगैरह वगैरह को स्थगित रख सकें ।
वे न अंबानी हैं और न अडानी हैं।
उनके शेयर गिरें तो भी बुल रन बहाल है लेकिन शेयर बाजार से आम जनता को जो जोड़ने की तरकीब है, उनकी अदक्षता और अर्थव्यवस्था के बारे में लगभग ज्ञानशून्यता से फायदा आखिर किन्हें होना है और बाजार से व्यापक पैमाने पर पूंजी बटोरकर बिना धेला भर राष्ट्र को लौटाये शत प्रतिशत मुनाफा कमाने के इस कारपोरेट बंदोबस्त के शत प्रतिशत हिंदुत्व को बूझें तो सही।
बाजार के फंडा से जुड़े हैं तमाम अवसर जो आम जनता को हर जोखिम उठाये खुद को जाने अनजाने बाजार से जोड़ने को मजबूर करता रहे और अमीरों के लिए धकधक मनी मशीन चलती रहे गिलोटिन की तरह, जहां अब किसी कुलान सर नहीं होंगे, वे सारे सर हमारे तुम्हारो ही होंगे।
गौरतलब है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में व्यक्तिगत आयकर दरों में तो कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन देश में निवेश आकर्षित करने के लिए कंपनी कर की दर अगले चार साल के दौरान पांच प्रतिशत घटाकर 25 प्रतिशत करने की घोषणा की है। कंपनियों की आय पर कर की दर अभी 30 प्रतिशत है। सरकार ने संपत्ति कर समाप्त करने का प्रस्ताव किया है और इसकी जगह एक करोड़ से अधिक की सालाना आय वाले अमीरों पर दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार लगा दिया गया है। बजट में सेवाकर की दर दो प्रतिशत बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दी गई है जिससे कई तरह की सेवायें महंगी हो जायेंगी।
निवेशकों में संघ परिवार की आस्था का यह आलम है कि सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने पर जोर देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार सब्सिडी के मामले में अगले दौर की कार्रवाई पर विचार कर सकती है।
पलाश विश्वास