अब रंगकर्म के सिवाय कोई चारा नहीं है वीरेनदा!
अब रंगकर्म के सिवाय कोई चारा नहीं है वीरेनदा!
वीरेनदा से कल रात ही भौत बात करने का मन हो रहा था।
दरअसल भूत भगाने का मंत्र वे जाने हैं।
बड़का ओझा ह हमार वीरेनदा।
वीरेनदा को कल रात से रिंगाये रहे हैं।
वे लिहाफ ओढ़े आलसी महाजन बने बैठे। सुबह यानी कि जब हम आंखि चियार रहीं, हकबकाय अखबार बांचे रहै तो सुबह है।
सुबह वीरेनदा को फोन लगाया तो भाभी ने पकड़ा।
उनने कहा कि ददा बाथरूम में है।
हम तनिको दुकान वुकान हो आये कि ददा का फोनवा आ गया।
बोले कि मकर संक्रांति है। काक स्नान है।
बोले कि पहाड़ों में घुघुति पर्व है और बागेश्वर में उतरैनी का मेला शुरु हुआ है।
कोलकाता में भी गंगासागर मेला चल रहा है, हम जानै है।
पिछले तेइस साल से न जाने किस साध्वी के प्रेम में फसे अपने जयनारायण इस बार बिना बीमार हुए लगातार वहीं डेरा बांधे हैं और एकोबार नहाया नहीं है।
इसबार भी उसका तंबू वहीं लगा है।
वीरेनदा बोले कि कई दिनों से नहाया नहीं था। कल रात लिहाफ से निकलकर फोन लगाया था और सुबह भी लगाया तो रिंगवा हुआ नहीं।
हम तड़ाक से बोले कि कुछो समझ में नही आ रिया है कि वायरल हो गया।
वीरेनदा बोले जिस फारमेट में लिख रहे हो, वह तो ठीकै था। मैं तो मजे ले रहा था। जान रहा था कि नाचा गम्मत में फंस गये हो। परफर्मांस कोई झटकेदार देखके अभिभूत हो तो यह दौर चलेगा। फिर पुराने ढांचे में लौटोगे।
हम बोले तीनों भूत परेशान किये हैं।
पहिला नंबर वो हबीब तनवीर। मर गयो। छोड़ गयो नाचा गम्मत।
दूसरा भूत और खतरनाक है, वो रहा हरिशंकर परसाई।
और तीसरका ताजा भूत चरणदास चोर, वहीं चेतराम का जीव।
वीरेनदा बोले, समझ रहा हूं।
हम बोले कुछो नाय समझे।
हमने उनको समझाया कि अनेकों जिंदा भूतों के फेर में हूं। रंग चौपालों में फंस गया हूं। रंगकर्मियों के मेले में भटक गया हूं।
निसार अली तो जिंदा भूत होइबे करै हैं।
ससुरो परफार्मेंस से दिलोदिमाग का नोटबोल्टवा ढीलौ छोड़ दिया है।
उनके साथ इप्टा की विरासत भी है और छत्तीसगढ़ के सगरे रंगकर्मी भी।
बाकी तमाम थेटर वाले है।
रंग चौपाल है।
वीरेनदा ने इलाज बता दियो कि रुक रुककर तानो।
लगातार मत खींचो।
हमने फिर बताया कि लिहाफो अंदर घुसे रहे हो और हमें अंदाज नहीं कि केतना कम्युनिकेट हो रहा है।
पुरोहिती विशुद्ध भाषा तो हमारी सोहबत ना है।
लोक तो वैसे भी खिचड़ी है। परोसने की रस्म कोई पंडिताउ ना है।
लोक बिलकुल छठ पर्व है।
हम तो छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, कुंमाउंनी, मराठी का काकटेलवा पेश कर रहे हैं।
हाजमे में का का असर हो रहा है।
समझ नहीं पा रहा तो रिंग दिया मियां नसीर को।
वे बोले ठीकौ है।
ताने रहो कि दुई चार टुकड़े मतलब के निकर आई तो नुक्कड़ भी ताने देंगे।
हमने दा से बताया कि सन 1991 से हिंदी अंगेजी बांग्ला में आर्थिक मुद्दों पर लगातार लिख रहा हूं। एको आदमी ऐसा मिल नहीं रहा जो कहता हो कि उसको समझ आया।
मुंबई प्रेस क्लब में और सेक्टर सेक्टर दर सेक्टर बजट विश्लेषण करते रहे, किताब लिख मारी तो कोई हलचल ना हुई।
अब रंगकर्म के सिवाय कोई चारा नहीं है।
वहींचएको रास्ता बचा है।
सो रंग चौपाल।
जिस भाषा में हमारी बात जनता तक पहुंच ही नहीं रही हो, जिस भाषा में लिखने से लोग समझते तो हों, पर शांतता फार्मेट से बाहर ननिकले शुतुरमुर्ग ट्रकवाला जइसन दीखे हों कि लाइको ना मार सकै हैं और न शेयर करने की हिम्मत है और न असम्मति जोर आवाज में बोल सके हैं तो बोलियों के रस्ते गलियों मोहल्ले में धूल फांकने के अलावा हमारे पास बचता क्या है।
वीरेनदा बोले, बड़ी समस्या है।
हम तो खुल जा सिम सिसम सिम जाप रहे हैं।
लेकिन दिलोदिमाग के सारे दरवज्जे बंद हैं।
आपको सूझे तो रास्ता तो बतायें जो हाईवे एक्सप्रेसवे से बेहतर हों।
आर्थिक सूचनाएं अनेक हैं।
साझा करने से क्या फायदा कि कोई हलचल ही नहीं है।
जाते जाते एक राज की बात कहें कि हम जो भोजपुरी लिखने का जोखिम उठा रहे हैं, वो बिना आधार नइखे।
बसंतीपुर मा हमार पांच पांच भाई भोजपुरिया बोलेक रहि।
वे भी हमरे परिजन हैं।
महावीर भाई नहीं रहे।
भौजी अब भी गोबर पाथे हैं जबकि बहुएं रसोई गैस से बनावे हैं।
रामविहारी देस मा लौट गयो देवरिया के पास।
बाकीर दो भाई वहीं बस गयो वीरबहादुर के पूरबिये कायाकल्प के बाद।
श्यामबिहारी लगभग हमारी उम्र के हैं। हमारे घर के पिछवाड़े ही उनका घर है। बसंतीरपुर मा जब रहे तो सुबह नलके पर दातुन वतून करके उसी घर में चाय चुई पीवत रहे हैं।
बाकीर हमारे घर का मैनेजर जो हुई रहे हैं, उनर नाम जउ हरिजन है, जिनसे हम भोजपुरी सीखै रहै। पूरब से जो मजदूरी करने खातिर साठ के दशक में आये रहे उनर हाथों बनाय़ी मोटी मोटी आग सेंकी रोटियों का स्वाद अभी खूनै मा बाकी बा।
आगे का लेखन कइसे किया जाई कइसे या तिलिस्म तोड़े खातिर कुछ करेके बा, आप लोगन की राय के इंतजार में रहेंगे हम।
- पलाश विश्वास


