अब लेबर के बुरे और मालिकों के अच्छे दिन आ रहे हैं
अब लेबर के बुरे और मालिकों के अच्छे दिन आ रहे हैं
पहली बार ट्रेन से इम्फाल आ रहा था। काफी समय लगा यात्रा में। पहले जितनी भी बार आता था प्लेन से ही आता था इसलिए ट्रेन यात्रा में लगने वाले समय और अन्य तकलीफों का ज्ञान मुझे नहीं था। मगर अच्छा ही अनुभव कहिये।
सब कुछ में रोते रहने का कोई मतलब नही है। आई जे यु (इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी। इसलिए आना और भी ज़रूरी था कि पिछले 9 महीनों से कैंसर के इलाज़ के क्रम में मुझे अस्पताल में ही रहना पड़ा था और मैं जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। इसलिए मैंने सोचा कि इस बार की बैठक में जाना ज़रूरी है। चलिए अच्छा ही रहा। लोगों से, देश भर के लोगों से मुलाक़ात हुई। काफी जानकारियाँ भी मिलीं।
24 नवम्बर से लोक सभा का सत्र शुरू हो रहा है। इस बार लेबर रिफार्म बिल भी आएगा। इस बीच कई मंत्रियों से एअरपोर्ट से लेकर इधर-उधर बातें होती रहीं हैं मेरी। उनकी बातचीत से हमेशा ये लगा कि यह सरकार यानि माननीय नरेन्द्रभाई दामोदरदास मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार इस मामले में ज़रुरत से ज्यादा गंभीर है। यानि अब लेबर के बुरे और मालिकों के अच्छे दिन आ रहे हैं। मगर इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (आईएलओ) में तो भारत सरकार भी सिग्नेट्री है फिर उसके अनुपालन का क्या होगा ? क्या भारत का मजदूर वर्ग, यहाँ के कथित सामाजिक न्याय की चैंपियन होनें का दावा करनेवाली पार्टियां, डेमोक्रेसी के चैंपियन होने के दावेदार संगठन इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं ? आप पार्टी क्या करेगी ? क्या यह पार्टी इस मामले पर अपना रूख स्पष्ट करेगी और इस चुनौती को मंज़ूर करने के लिए तैयार होगी ?
बहुत सारे प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रही हैं। अच्छा या बुरा कम्युनिस्ट पार्टियों को तो इस संघर्ष में रहना ही पड़ेगा इसमें कोई शंका नहीं है। मगर भारतीय मजदूर संघ क्या करेगी ? आगे आने वाले दिन बहुत कठिन होने वाले हैं। हे प्रभु शक्ति देना कि इन दिनों में मैं अपने को जनता के पक्ष में पा सकूं।
O- अरुण कुमार


