अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बंद करो
लेखक कंवल भारती पर से मुकदमा वापस लो
(प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच का संयुक्त बयान)
नयी दिल्ली। देश भर के लेखकों, रंगकर्मियों व बुद्धिजीवियों नेअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले बंद करने की माँग करते हुये माँग की है कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार लेखक कंवल भारती के ऊपर से मुकदमा वापस लेने की माँग करते हुये कहा है कि सरकार श्री भारती से माफी माँगे।

प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि दलित विमर्श की चर्चित शख्सियत कंवल भारती द्वारा फेसबुक पर उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री की कार्यशैली, दुर्गा नागपाल के निलंबन और आरक्षण के सवाल पर की गयी टिप्पणियों के कारण उत्तर प्रदेश सरकार के ताकतवर मंत्री आजम खान के मीडिया प्रभारी द्वारा उन पर मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसके आधार पर उन्हें 6 अगस्त को गिरफ्तार किया गया और उसी दिन न्यायालय से उन्हें जमानत मिल गयी। संयोग यह है कि उन पर वही धाराएं लगायी गयीं, जो पिछले चुनाव के समय वरुण गांधी पर उनके साम्प्रदायिक भाषण के लिये लगायी गयी थीं। लेकिन कोई भी चाहे तो कंवल भारती जी की लिखी टिप्पणी देख सकता है और आरोप के फर्जीपन को खुद-ब-खुद समझ सकता है। तहलका- हेडलाइंस टुडे के स्टिंग आपरेशन ने दिखलाया था कि किस तरह स्थानीय प्रशासन और एक सपा नेता ने गवाहों पर दबाव डाल कर उनके बयान बदलवाये और पिछली मई में वरुण गांधी बाकायदा अदालत से आरोप से बरी कर दिये गये। लेकिन कंवल भारती के मामले में लेखकों-संस्कृतिकर्मियों के जबर्दस्त विरोध के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार ने फर्जी मुकदमा वापस लेने की दिशा में कोई पहल नहीं की है, उल्टे खबर यह आ रही है कि आजम खां के समर्थक उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून- रासुका लगवाने के लिये जिला प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं। जहाँ वरुण गांधी सांप्रदायिक नफरत फैलाने के जुर्म में सजा के सचमुच हकदार थे, कँवल भारती समाज के विकास और बे‍हतर प्रशासन के सपने से प्रेरित हो कर आलोचना के जनवादी अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं, यह अधिकार उन्हें भारत का संविधान देता है।

मायावती शासनकाल में श्री कंवल भारती ने एक किताब लिखी थी ‘कांशीराम के दो चेहरे’, लेकिन तब भी उस सरकार ने उन पर कोई मुकदमा नहीं चलाया था। श्री भारती पर लादे मुकदमे के आईने में वर्तमान सरकार ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ पर अपने रुख को तुलनात्मक तौर पर भी देख सकती है। जिस प्रदेश में दलितों पर तमाम तरह के भयावह अत्याचारों के खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज कराना दूभर हो, वहाँ जिस तत्परता के साथ कंवल भारती जैसे जुझारू दलित चिंतक के खिलाफ झूठे आरोप दर्ज किये गये और आनन फानन में पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने पहुँची, यह तथ्य सरकार की सामाजिक सोच के बारे में बहुत कुछ जाहिर करता है।

प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव अली जावेद, जनवादी लेखक संघ के महासचिव, चंचल चौहान और जन संस्कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्ण के संयुक्त हस्ताक्षर से जारी बयान में कहा गया है कि हद यह है कि सोशल मीडिया पर भी सरकारों और ताकतवर लोगों को अपनी आलोचना या अपने ऊपर उठने वाले सवाल बर्दाश्त नहीं हो रहे हैं। पिछले साल बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुम्बई बंद कराने पर फेसबुक पर आपत्ति करने वाली दो छात्राओं पर मुकदमा दर्ज किया गया। पिछले साल ही सितम्बर में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी की वेबसाईट बन्द की गयी और उन पर देशद्रोह का मुकदमा लादा गया। पिछले साल जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अम्बिकेश महापात्र ने ई -मेल पर अपने एक मित्र को एक कार्टून भेजा जो ममता सरकार को नागवार गुजरा और उन पर मुकदमा किया गया। पिछले दिनों पुणे के कबीर कला मंच के फुले-आम्बेडकर-भगत सिंह के विचारों को मानने वाले कलाकारों के दमन की याद तो अभी बिलकुल ताजा है। सरकारें न केवल मानवाधिकार हनन, बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने में एक दूसरे से होड़ ले रही हैं। एक भीषण संकटग्रस्त व्यवस्था चरम असहिष्णुता की ओर तेजी से बढ़ रही है। लेकिन जहाँ- जहाँ दमन है, वहाँ-वहाँ प्रतिरोध भी है। इन सभी मामलों में प्रतिरोध हुआ और आन्दोलन के दबाव में सरकारों को पीछे भी हटना पड़ा है।

इन संगठनों ने माँग की है कि उत्तर प्रदेश सरकार कँवल भारती से माफी माँगे तथा उन पर लगाये गये आरोप वापस ले और बदले की भावना से श्री भारती पर दूसरे फर्जी मामले लादने की कोशिश न करे।