पलाश विश्वास

मीडिया हमेशा आधिकारिक वर्जन को छापता है और सरकार या प्रशासन या पुलिस जब तक कनफर्म न कर दे, कोई खबर नहीं हो सकती। उदाहरण बिना एफआईआर दर्ज हुए किसी वारदात को मीडिया में खबर बनाने की सकती मनाही है। चिपर से गोपनियता भंग करने की शर्त है।

इसी विशेषाधिकार के दम पर मध्य पूर्व एशिया, वियतनाम, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में अमेरिका ने मीडिया की सर्वज्ञता खामोशी की आड़ में सीधा नरसंहार अभिव्यक्त होकर करोड़ों लोगों की जान लेते रहने का सिलसिला जारी रखा है।

यही है अमेरिका के आतंकी के खिलाफ युद्ध का आधार।

भारत में भुखमरी का एफआईआर दर्ज हो तो करिश्मा समझें तो आधिकारिक खबरें छापने वाले मीडिया की एकता भी समझ लें।

चूंकि खंडन नहीं हुआ है अभी तक और हम सच जानना चाहते हैं, इसलिए वे वीभत्स तस्वीरें फिर ताकत से कम आपके दिलोदिमाग में कोई हलचल हो।

भारत में पिछड़े समुदायों के लोग कितने हैं, जनगणना के आंकड़े सर्वज्ञनिक न होने के बावजूद यह कोई राज लेकिन नहीं की मण्डल कमीशन के मुताबिक 54 फीसद न सही, सबसे ज्यादा जनसंख्या उनकी की है और इस हिसाब से उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

बाहुबली जातियों के दबंगों की स्थिति में सक्रीयभागेदारी के बावजूद सच यही है कि निनानब्वे फीसद ओबीसी की हालत दलितों और आदिवासियों और मुसलमानों से कितनी बेहतर नहीं है।