अमेरिका में तो खेल हो गया, मुंहबली ट्रंप की मनमानी पर लगेगी लगाम

राष्ट्रपति ट्रंप की मनमानी पर लगाम

शेष नारायण सिंह

अमेरिका में तो खेल हो गया। डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी अमेरिकी संसद के निचले सदन में अल्पमत में आ गई। पिछले दो वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपति की नौटंकी से परेशान लोग गुस्से में थे और उसी गुस्से को विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने हवा दी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मनमानी का दौर खत्म हो गया। अमेरिकी सीनेट में हालांकि रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत बना रहेगा लेकिन अब राष्ट्रपति अपने अहमकाना फैसले नहीं लागू कर पायेंगे। निचले सदन की हैसियत राष्ट्रपति पर लगाम लगाने की ही होती है। इस बार जो लोग प्रतिनधि सभा में पहुंचे हैं, उनकी पृष्ठभूमि ऐसी है जो सही अर्थों में अमेरिकी समाज की विविधता की अगुवाई करते हैं। जीतने वालों में महिलायें हैं, अल्पसंख्यक हैं, राजनीतिक नौसिखिये हैं और वे सभी ऐसे लोग हैं जो मीडिया की चहल-पहल से दूर नौजवानों में ट्रंप के प्रति बढ़ रहे गुस्से को हवा दे रहे थे।

नतीजा हुआ कि प्रतिनिधि सभा में तो लिबरल ताकतें जीत सकीं जिसका इस्तेमाल ट्रंप की तानाशाही प्रवृत्तियों को रोकने के लिए किया जाएगा लेकिन अभी अमेरिकी समाज में वह जहर खत्म नहीं हुआ है जिसको डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव में बिखेरा था। ट्रंप के प्रति अमेरिकी समाज के एक बड़े हिस्से में लगभग नफरत का भाव है लेकिन तथाकथित अमेरिकी गौरव के चक्कर में कम पढ़े-लिखे अमेरिकियों की एक बहुत बड़ी आबादी अभी भी उनको वही सम्मान देती है जो किसी भी बददिमाग राष्ट्रपति को मिलता है। शायद इसी वजह से कई ऐसे लोग चुनाव हार गए जिनकी जीत में अमेरिका की उदारवादी जनता की रुचि थी। डेमोक्रेटिक माइनारिटी नेता नैन्सी पेलोसी ने ट्रंप की कुछ इलाकों में लोकप्रियता के मद्देनजर ही जीत के साथ-साथ यह ऐलान कर दिया कि ट्रंप पर महाभियोग चलाने की कोई योजना नहीं है।

मुश्किलों में होंगे अब ट्रंप... will trump win the next election ?

अमेरिका में सभी मानते हैं कि ट्रंप को काबू करने के लिए जरूरी था कि संसद में उनकी मनमानी वाले फैसलों को रोका जाए और अब उम्मीद की जानी चाहिए कि अमेरिकी अवाम को एक खुली, पारदर्शी और जवाबदेह सरकार मिलेगी और ट्रंपपंथी से निजात मिलेगी। संसद में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत का यह सन्देश है कि अमेरिकी जनता यह चाहती है कि जो दो वर्ष ट्रंप के बचे हैं उसमें उनकी जिद्दी सोच पर आधारित नीतियों पर रोक लगाई जा सके। अभी राबर्ट स्वान मुलर की जांच चल ही रही है जिसके लपेट में डोनाल्ड ट्रंप के आने की पूरी संभावना है। उनकी जांच का विषय बहुत ही गंभीर है जिसमें आरोप है कि रूस की सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में दखलंदाजी की थी और ट्रंप की विरोधी उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को हराने के लिये काम किया था। मुलर कोई ऐसी वैसी हस्ती नहीं हैं। वे अमेरिका की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, एफबीआई के बारह वर्ष तक निदेशक रह चुके हैं। प्रिंसटन विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और डिप्टी अटार्नी जनरल रह चुके हैं। वे जो जांच कर रहे हैं उससे ट्रंप के प्रभावित होने की पक्की संभावना है।

नतीजों के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ दिखी ट्रंप की घबराहट

Trump's Tremble was clearly visible in the press conference After the results

ट्रंप की घबराहट नतीजों के बाद हुई उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ देखी जा सकती थी। वे पत्रकारों से भिड़ गए और कहा कि वे चाहें तो राबर्ट मुलर को बर्खास्त कर सकते हैं लेकिन अभी करेंगे नहीं हालांकि उन्होंने यह साफ कर दिया कि वे रूस की दखलंदाजी वाली जांच को सफल नहीं होने देंगें।

नतीजे आने के तुरंत बाद राष्ट्रपति के रूप में जो पहला काम डोनाल्ड ट्रंप ने किया वह यह कि उन्होंने अटार्नी जनरल जेफ सेशंस को हटा दिया और दावा किया कि अगर डेमोक्रेट बहुमत वाली अमेरिकी संसद, कांग्रेस उनके खिलाफ कोई जांच शुरू करेगी तो उसका मुकाबला करेंगें।

समझ में नहीं आया जेफ सेशंस को हटाने का कारण

Did not understand the reason for the removal of Jeff Sessions

जेफ सेशंस राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक माने जाते हैं, उन्होंने रूस की दखल वाली जांच से खुद को अलग कर लिया था लेकिन नतीजे आते ही व्हाइट हाउस के चीफ आफ स्टाफ, जॉन केली ने उनको फोन करके उनका इस्तीफा मांग लिया।

डेमोक्रेटिक पार्टी की सदन में नेता, नैन्सी पेलोसी ने आरोप लगाया कि जेफ सेशंस का हटाया जाना इस बात का संकेत है कि ट्रंप रूसी दखल वाली जांच को नाकाम करने के लिए कटिबद्ध हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि सेनेट और गवर्नर पद के चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवारों की जीत में उनका ही योगदान सबसे ज़्यादा है। पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने बताया कि अगर डेमोक्रेटिक पार्टी ने जांच करने की कोशिश की तो वाशिंगटन में युद्ध जैसी हालात बन जाएंगे।

हालांकि सच्चाई यह है कि सदन की समितियों की अध्यक्षता अब डेमोक्रेटिक पार्टी वाले ही करेंगे। इन कमेटियों को ही राष्ट्रपति महोदय की कथित टैक्स चोरी की जांच करनी है। इसके अलावा रूस की दखल वाली जांच भी अब डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्यों की निगरानी में ही होगी। अभी इसकी जांच राबर्ट मुलर कर रहे हैं लेकिन राष्ट्रपति ने उनके बॉस के बॉस जेफ सेशंस को हटाकर यह संकेत दे दिया है कि वे जांच को अपने खिलाफ किसी भी हालत में नहीं जाने देंगे। उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि वे डेमोक्रेट नेताओं से मिलकर काम करने को तैयार हैं लेकिन उनके खिलाफ जांच होने से सद्भाव की भावना को ठेस लगेगी।

बहुत ही संघर्ष के दौर से गुजरेंगे ट्रंप के कार्यकाल के अगले दो वर्ष

अब अमेरिकी राजनीति में सत्ता पर ट्रंप का एकाधिकार नहीं है और वे अपने को सर्वाधिकार संपन्न मानने के लिए अभिशप्त हैं। ऐसी हालत में इस बात की पूरी संभावना है कि ट्रंप के कार्यकाल के अगले दो वर्ष बहुत ही संघर्ष के दौर से गुजरने वाले हैं।

इन नतीजों के बाद अब ट्रंप की मनमानी पर तो ब्रेक लग ही जाएगी। अभी जो मेक्सिको की सीमा पर वे बहुत बड़ी रकम खर्च करके दीवार बनाने की बात कर रहे हैं, वह तो रुक ही जाएगी। इसके अलावा वे अजीबोगरीब शर्तों पर जापान और यूरोपीय यूनियन से व्यापारिक समझौते करने की जो योजना बना रहे हैं वह भी अब संभव नहीं लगता।

कांग्रेस के निचले सदन की संभावित अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने बताया कि यह नतीजे, डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टी के बारे में उतना नहीं हैं जितना संविधान की रक्षा के लिए हैं। उनका आरोप है कि ट्रंप लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान नहीं करते। एक उदाहरण काफी होगा। उन्होंने अपनी रिपब्लिकन पार्टी की एक नेता का मखौल उड़ाया और कहा कि सेनेटर बारबरा वर्जीनिया से इसलिए हार गईं क्योंकि उन्होंने ट्रंप की नीतियों का विरोध किया था। उन्होंने डींग मारी कि उनका विरोध करने वाले उनकी पार्टी के लोग ही हार गए।

Effect of trump policies : American economy was also victimized by Trump's arbitrarily

ट्रंप की मनमानी का शिकार अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी हो रही थी। जब चुनाव नतीजों के बाद निचले सदन में डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुमत की खबर आई तो शेयर बाजार ने उसका स्वागत किया। डाव जोन्स और एस एंड पी, दोनों ही इंडेक्स में करीब दो प्रतिशत का उछाल बुधवार को ही दर्ज हो गया। अब अमेरिकी शेयर बाजार को भरोसा है कि ट्रंप के सनकीपन के फैसलों पर विधिवत नियंत्रण स्थापित हो जाएगा।

जानकार बता रहे हैं सदन में विपक्ष के बहुमत के बाद सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो गया है। आम तौर पर जब सत्ता एक ही जगह केन्द्रित नहीं रहती तो शेयर बाजार में माहौल अच्छा रहता है।

This change in American politics will also affect foreign policy

अमेरिकी राजनीति में इस बदलाव का विदेश नीति पर भी असर पड़ेगा। अब सबको मालूम है कि डोनाल्ड ट्रंप की रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ खास दोस्ती है। आरोप तो यहां तक लग चुके हैं कि डोनाल्ड ट्रंप अपने प्रापर्टी डीलरी के धंधे के दौरान, सोवियत यूनियन की जासूसी संस्था केजीबी के लिये काम करते थे।

कुछ अखबारों में छपा था कि जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति के रूप में रूस गए थे और रूसी राष्ट्रपति से मिले थे तो दो राष्ट्रपतियों के बीच औपचारिक मुलाकात तो हो ही रही थी, पुराने साथियों के बीच भी मुलाकात थी, क्योंकि अखबार के मुताबिक जब पुतिन केजीबी में काम करते थे तो अमेरिकी असेट, डोनाल्ड ट्रंप के वे ही हैंडलर हुआ करते थे। जाहिर है कि वे रूस के साथ नरमी का दृष्टिकोण रखते हैं।

Trump's attitude in foreign policy is very childish

अमेरिकी विदेश नीति” पर नजर रखने वाले उम्मीद कर रहे हैं कि रूस के साथ संबंधों में अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखा जाएगा अब सऊदी अरब और उत्तर कोरिया के साथ भी शुद्ध राजनय के हिसाब से बातचीत की जाएगी। विदेश नीति में ट्रंप का रवैया निहायत ही बचकाना रहा है। मसलन उन्होंने बिना किसी कारण या औचित्य के पारंपरिक साथी कनाडा को नाराज कर दिया। उनकी एक अजीब बात यह भी रही है कि जो देश अमेरिकी हितों के मुकाबिल खड़े हैं उनसे भी दोस्ती के चक्कर में रहते हैं। यहां तक कि अमेरिका के घोर विरोधियों से भी हाथ मिलाने के लिए लालायित रहते हैं। इन मध्यावधि चुनावों में सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है।

रिप्बलिकन टिकट से कुछ गवर्नर भी ज़्यादा चुने गए हैं लेकिन अमेरिकी राजनीति में राष्ट्रपति की मनमानी पर लगाम लगाने का काम निचला सदन ही करता है। अमेरिकी राजनीति का मिजाज ऐसा है कि अगर को समझदार आदमी राष्ट्रपति बन जाए तो सीनेट या प्रतिनधि सभा को साथ लेकर चलने में बहुत दिक्कत नहीं आती। बराक ओबामा ने अपनी विपक्षी पार्टी के बहुमत के बावजूद अपनी नीतियों को लागू किया ही। लेकिन उनकी खासियत यह थी कि वे सब को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। जबकि राष्ट्रपति ट्रंप को मनमानी की आदत है। और इस चुनाव के नतीजे डोनाल्ड ट्रंप की मनमानी से परेशान दुनिया के लिए ताज़ा हवा का एक झोंका साबित होंगे।

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