असली कम्युनिस्ट और असली अंबेडकर, एक देह में दुई जान थे नाथूराम गोडसे, संघी दावा!
असली कम्युनिस्ट और असली अंबेडकर, एक देह में दुई जान थे नाथूराम गोडसे, संघी दावा!
तो उनकी आराधना भारतवासी हिंदू बहुजनों का परम कर्तव्य हुआ,
सारा देश अब सरस्वती शिशु मंदिर है
हमरे अधूरे इतिहास ज्ञान के लिए संघियों के सबक का मतलब बहुतै हैरतअंगेज
मुझे नये साल के तोहफा बतौर संघी विद्वतजनों के सुभाषित मंतव्य मिलने लगे हैं। गौरतलब है कि संघी भाई बंधु अब मेरे अधकचरे ज्ञान का नोटिस भी लेने लगे हैं।
अपने संप्रदाय के लोग तो पूछते भी नहीं हैं और न नोटिस लेते हैं।
उनका आभार।
अंग्रेजी में लिखे आलेख कश्मीर में संघ परिवार के बांग्लादेश दोहराने की मुहिम के बारे में हैं। हिंदी में नहीं लिखा क्योंकि कश्मीर में लोग अमूमन हिंदी नहीं पढ़ सकते।
घनघोर मोदी कैंपेन और मीडिया बमवर्षकों के बावजूद कश्मीर घाटी में सिर्फ तीन फीसद वोट मिलिले संघ परिवार के पंडिताऊ राजकाज के हक में। संघ परिवार फिर भी हर कीमत में कश्मीर में सकरार बनाना चाहे है जबकि दिल्ली में चालीस फीसद वोट भी उसके लिए नाकाफी है। यह पहेली बेहद मुश्किल है जो शायद वैदिकी गणित है।
घाटी की जनता ने भाजपा को सिरे से खारिज कर दिया है।
जाहिर है कि कश्मीर सिर्फ जम्मू नहीं है, जैसा संघ परिवार की हिंदुत्व के मुताबिक समझाया जा रहा है।
कश्मीर घाटी ही दरअसल असली कश्मीर है जहां खारिज है संघ परिवार और उसका हिंदुत्व का पंडिताऊ एजंडा।
इसी तरह 1970 में पाकिस्तान में हुए पहले आम चुनाव में पश्चिमी पाकिस्तान के इस्लामी धर्मांध हुक्मरान ने बांग्ला अस्मिता को खारिज करके मुजीब को भारी बहुमत के बावजूद सत्ता से वंचित कर जेल में डाल कर फौज के दम पर बांग्लादेश की आत्मा कुचल देने का अभियान चलाया था।
बाकी इतिहास है।
कश्मीर घाटी के जनादेश और कश्मीरियत के विरुद्ध पंडितों के वर्चस्व थोपने और यहां तक कि कश्मीर और जम्मू के विभाजन की संघी रणनीति का इस आलेख में भारत विभाजन और दो राष्ट्र सिद्धांत में संघ परिवार और खासतौर पर हिंदू महासभा की भूमिका के मद्देनजर पड़ताल की गयी है और भारत और कश्मीर की राजनीति से कश्मीरियों के साथ बांग्लादेश दोहराने से बाज आने को कहा गया है।
आलेख में संघ परिवार के नाथूराम गोडसे से लेकर अमित शाह तक के भारत रत्नों की चर्चा की गयी है।
जबाव में कहा जा रहा है कि हमें इतिहास की तमीज है नहीं और ज्ञान हमारा अधूरा है और यह भी कि हम वामपंथ को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं कि बलि, नाथूराम गोडसे के बारे में हम कुछ भी न जानै हैं। वे महान क्रांतिकारी भये जो जात पांत मिटाने के मिशन में लगे थे।
बलि असल अंबेडकर भी वही तो असली मर्द कम्युनिस्ट भी वही, नाथूराम गोडसे हुआ करै है। बाकी सारे संशोधनवादी।
संदर्भः
Rejecting Kashmir Valley RSS is making in Bangladesh, Be Aware! RSS has to install a Kashmiri Pundit Raj in Kashmir
http://www.hastakshep.com/oldenglish/opinion/2014/12/31/rejecting-kashmir-valley-rss-is-making-in-bangladesh-be-aware
मुलाहिजा फरमायेंः
Soibal Dasgupta #palash_biswas I am an atheist and not a supporter of Hinduism or RSS... but I must say u r not spreading awareness but a collection of self assumed facts... this kind of act only builds foundation for people to believe in RSS propaganda more...
Your way of thinking is far bourgeois you need to study history and detailed observations are needed... regarding Godse... (yes he assassin gandhi) but do u know he faught against Casteism and untouchability along with veer savarkar... if u consider ur self to be a writer then u must know the facts and mention them without any kind of partiality!
Secondly you wrote about your communist ancestry but your way of writing is far influenced by the revisionist CPs...
Do u know how many kashmiri pandits are there.?
Not even 10% of the kashmiri population. You formed a story, wrote it and started spreading...
Could the naxals rule the states where there is their presence? The number of naxals in any state is far more than the kashmiri pundits...
Because of people like you... the real fact pamphlets of real communists don't reach the people... believe me after reading this dreamlike stuff none is going to read anything against Hindutva... because even the real facts would be compared to ur fantasies...
दलील उनकी सही होगी क्योंकि गांधी रामराज्य की बात करते थे और जाहिर है कि संघ परिवार मनुस्मृति शासन चाहता है तो इसलिए गांधी की हत्या भी इस तरह से संघ परिवार के लिए जायज है!
अगर नाथूराम गोडसे बाबासाहेब के मुकाबले ज्यादा जाति तोड़क क्रांतिकारी रहे हैं, तो यह हमारी सरासर बदतमीजी मानी ही जानी चाहिए कि हम नाथूराम गोडसे की शान में उलट-पुलट मंतव्य करें।
दूसरी दलील यह है कि कश्मीर में पंडितों की जनसंख्या दस फीसद से कम है तो उनकी हेजेमनी की बात फेंटेसी है। जाहिर है कि ब्राह्मणों की जनसंख्या बंगाल में तीन फीसद है और बंगाल में लागू शत प्रतिशत वैज्ञानिक वर्चस्व की हेजेमनी भी फैंटेसी है। हमारी इस बुरबकई से वामपंथियों को खास नुकसान हुआ ठैरा कि वे तो इसी हेजेमनी को मजबूत करते रहे पैंतीस साल के वाम राजकाज में।
संघियों के मुताबिक हेजेमनी बहुसंख्य की होती है तो यह बहुजन समाज के माफिक ही ठैरा।
हो सकता है कि इसी लिहाज से सारे के सारे बहुजन राम केसरिया भये क्योंकि भारत में हिंदू ही बहुजन हैं, हिंदुत्व ही पहचान है और संघ परिवार का एजेंडा शत-प्रतिशत हिंदुत्व है।
हमरे अधूरे इतिहास ज्ञान के लिए संघियों के सबक का मतलब बहुतै हैरतअंगेज है कि असली कम्युनिस्ट और असली अंबेडकर, एक देह में दुई जान थे नाथूराम गोडसे, तो उनकी आराधना भारतवासी हिंदू बहुजनों का परम कर्तव्य हुआ,बलि।
बांग्ला दैनिक एई समय के संपादकीय पेज पर एक काम का आलेख छपा है, चाहे तो वामपंथ के सिमपैथाइजर जो संघी हैं, वे उसे पढ़ लें।
शीर्षक हैः वामपंथिरा शुधु सेमीनार कोरेछे, आरएसएस गोढ़े तुलेछे एकटिर पर एकटि शिक्षाकेंद्र।
मेरी समझ से अनुवाद की जरूरत नहीं है।
शायद यह आलेख कष्ट करके बांग्ला में भी पढ़ने की जरूरत नहीं है क्योंकि यही मौजूदा सामाजिक यथार्थ है, जो आंख कान खोलकर देखने समझने की चीज है कि सारा देश अब सरस्वती शिशु मंदिर है।
O-पलाश विश्वास


