नई दिल्ली। केंद्र सरकार की दमनकारी कार्रवाई के विरोध में अपने स्वर को तेज करते हुए ग्रीन पीस इंडिया ने दो टूक कहा है कि वह अस्तित्व बचाए रखने के लिये संघर्ष जारी रखेगा।

ग्रीनपीस इंडिया कार्यकारी समिति के सदस्यों ने एक प्रेस संयुक्त बयान जारी किया है। मूल वक्तव्य निम्नवत् है -
आज हम भारत में पारिस्थितिक और मानव अधिकारों की तेजी से बिगड़ती स्थिति के संदर्भ में बोल रहे हैं, जहां सिविल सोसाइटी के तौर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम समाज में हो रहे अन्यायों को पर्दाफाश करें और उनको सुधारने के लिये नीतियों और उपायों का सुझाव दें।
पिछले एक साल से भारत में ग्रीनपीस इंडिया पर लगातार हमले हुए हैं, और अब हमारे काम करने के अधिकार, व हमारे अस्तित्व पर ही खतरा खड़ा कर दिया गया है।
6 नवंबर को, ग्रीनपीस को सोसाइटी पंजीकरण कार्यालय से एक नोटिस मिला, जिसमें ग्रीनपीस इंडिया सोसाइटी के पंजीकरण को निरस्त करने का आदेश दिया गया था। ग्रीनपीस इंडिया सोसाइटी के कार्यकारी बोर्ड को एक महीने के भीतर विशेष प्रस्ताव पास करके इसे विघटित करने का नोटिस दिया गया।
हमारा यह मानना है कि यह आदेश पूरी तरह से अन्यायी है, खासकर तब जब हमने हर तरह से, हर कानून का पूरी तरह से पालन किया है।
हमने ग्रीनपीस इंडिया बोर्ड की हैसियत से रजिस्ट्रार द्वारा जारी नोटिस में उठाए गए मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की है, और हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस नोटिस में कई तथ्यहीन और निराधार आरोप लगाये गये हैं। लेकिन इससे भी ज्यादा गंभीर बात है कि इसमें मद्रास हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।
उदाहरण के लिये, हम पर यह आरोप लगाया गया है कि हमने 16 जून को जारी ‘कारण बताओ’ नोटिस का विस्तार से जवाब नहीं दिया है, जबकि हमारे पास उस नोटिस की प्रतिक्रिया में दी गयी जवाब की कॉपी उपलब्ध है जिसमें संबंधित कार्यालय द्वारा 5 अक्टूबर को जमा पावती की मुहर भी लगायी गयी है।
इस लिए हमने ग्रीनपीस को यह आदेश दिया है कि वह इस नोटिस के खिलाफ अपील करने के लिये सभी आवश्यक क़दम उठायें।
पिछले एक साल में, जहाँ एक तरफ सरकार की विभिन्न एजेंसी हमारी आवाज को दबाने की कोशिश में लगी हैं, वहीं दूसरी तरफ कोर्ट ने लगातार ग्रीनपीस इंडिया को सही पाया है और उस के अस्तित्व को बरकरार रखा है। हमने जितने भी मामलों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया है, हर बार हमारी अभिव्यक्ति की आजादी और असहमति के अधिकार को कोर्ट ने वैधता प्रदान किया है।
वर्तमान समय में जहां विकास के एक ही नजरीये को किसी भी कीमत पर लागू करने की कोशिश की जा रही है, ग्रीनपीस जैसे संस्था को न सिर्फ अपने अभियानों को जारी रखने की जरुरत है बल्कि ऐसा करना एक नैतिक ज़िम्मेदारी भी है।
इस देश के पर्यावरण की रक्षा के लिये आवाज़ उठाते हुए, हम अपने अभियानों के माध्यम से विकास परियोजना के नाम पर जारी पर्यावरण विनाश की ओर ध्यान आकृष्ट करके महत्वपूर्ण सवाल उठाते हैं। हम मानते हैं कि इस तरह से मजबूत सवाल उठाना स्वस्थ लोकतंत्र के लिये जरुरी है। इस दिशा में काम करते हुए हमने मजबूत वैकल्पिक हल को भी सुझाया है। उदाहरण के लिये बिहार के एक गाँव धरनई को हम सोलर ऊर्जा से रौशन करने में सफल रहे हैं।
हमें गर्व है कि ग्रीनपीस इंडिया ने इस देश के पर्यावरण को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। हम स्वच्छ वायु, सुरक्षित भोजन और स्वच्छ ऊर्जा के लिये जारी अपने अभियानों को जारी रखने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
इस तरह लगातार सरकार द्वारा ग्रीनपीस को दबाने का प्रयास स्वस्थ्य लोकतंत्र में संवाद की प्रक्रियाओं को बहाल नहीं करने की कोशिश दिखायी देती है। लेकिन हम अपने असहमति के अधिकार को बरकरार रखने के लिये संघर्ष करते रहेंगे। ग्रीनपीस को इस तरह चुप नहीं कराया जा सकता है।
अंत में, हम बोर्ड सदस्य की हैसियत से कहना चाहते हैं कि हमें विश्वास है कि इस कठिन समय में ग्रीनपीस इंडिया सभी कानूनों का पालन करते हुए भारत के समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिये काम करता रहेगा।
बोर्ड के सदस्यगण
1. आशीष कोठारी- बोर्ड अध्यक्ष, लेखक, और सदस्य, कल्पवृक्ष पुणे,
2. अमला अकिनेनी- एक्टर और संस्थापक, ब्लू क्रॉस हैदराबाद
3. जी. गौतमा - निर्देशक, पालार सेन्टर फॉर लर्निंग
4. डा. विश्वजीत मोहंती - चार्टड एकाउंटेंट व पूर्व सदस्य, वन्यजीव राष्ट्रीय बोर्ड
5. तारा मुरली - आर्किटेक्ट और ट्रस्टी, सिटिजन कन्जूमर एंड सिविक एक्शन ग्रुप, चेन्नई
6. परंजॉय गुहा ठाकुरता, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक
7. डा. हरिश हंडे - सीईओ एसईएलसीओ फाउंडेशन