अस्मिताओं को तोड़कर आम जनता को गोलबंद करने की जरूरत
अस्मिताओं को तोड़कर आम जनता को गोलबंद करने की जरूरत
आम जनता को गोलबंद करने की जरूरत- सड़कों पर आने वाले लोगों को होश नहीं है
बंद होंगे एअर इंडिया, एमटीएनएल और हिंदुस्तान शिपयार्ड समेत तमाम बीमार सार्वजनिक उपक्रम, रेलवे बेधड़क बिकने लगा
कल सुबह सवेरे आनंद तेलतुंबड़े का फोन आ गया। वे यह जानना चाहते थे कि हस्तक्षेप पर लिखे - आलेख दीदी दुर्गति - महाबलि क्षत्रपों की मूषक दशा निरंकुश सत्ता की चाबी, बहुसंख्य बहुजनों को अस्मिताओं से रिहा करके वर्गीय ध्रुवीकरण के रास्ते पर लाये बिना मुक्तिमार्ग लेकिन खुलेगा नहीं ( http://www.hastakshep.com/oldintervention-hastakshep/rajynama/2015/03/09/निरंकुश-सत्ता-की-चाबी ) पर किसी की कोई प्रतिक्रिया आयी या नहीं। हम उनसे बात नहीं कर पाये। जबसे मोबाइल लिया है, एअरटेल से देश भर से संपर्क साधता रहा हूं। इधर एअरटेल के नेटवर्क का हल यह है कि न सविता बाबू के फोन पर किसी से बात हो पाती है और न मेरे फोन पर। लैंडलाइन माशाअल्ला है। आनंद से पूरी बातचीत हो नहीं पायी है।
फिलहाल कल से बेड रेस्ट पर हूं। महीने भर ढीली तबीयत के बावजूद गाड़ी खींचता रहा। कल खांसी के इतने भयानक दौरे पड़े और कमजारी इतनी हो गयी कि डाक्टर की शरण में जाना पड़ा। गनीमत है कि शुगर नार्मल है। डाक्टर के मुताबिक बिना एंटीबायोटिक के शुगर के मरीज को हुए इंफेक्शन का कोई इलाज नहीं है और यह इंफेक्शन कैसा आकार ले सकता है, कहना मुश्किल है। उन्होंने बेहद महंगे एंटीबायोटिक दे दिये।
कल रात भर और आज दिन भर लगभग सोता ही रहा। लेकिन सार्वजनिक उपक्रमों के बारे में जो ताजा जानकारी मिली है, उसे शेयर किये बिना चलेगा नहीं, इसलिए रात के नौ बज पीसी पर बैठ गया हूं।
हमारे लोग आनंद और मेरे लिखे को पढ़ते जरूर हैं, लेकिन कोई प्रतिक्रिया देते नहीं है। हम लोग बामसेफ में जब तक थे, तब तक आर्थिक मुद्दों पर लगातार देश के कोने-कोने में आम जनता के बीच वर्कशाप, प्रेजेंटेशन और सभाएं करते रहे हैं। दस साल लगातार बजट का विश्लेषण व्यापक स्तर पर हुआ है।
हम चाहते थे कि बहुजन कैडरों को हम आर्थिक कैडरों में बदलें। हर सेक्टर के कर्मचारियों को अलग-अलग संबोधित करते हुए विनिवेश कौंसिल, विनिवेश मंत्रालय, विनिवेश आयोग और विशेषज्ञ समितियों की रपटें सामने रखकर बताते रहे हैं कि कैसे संपूर्ण निजीकरण के रास्ते पर अबाध पूंजी की यह मुक्तबाजारी व्यवस्था है और कैसे बहुजनों के सरकारी नौकरियों से हटाकर सड़क पर लाने की तैयारी है।
जल जंगल जमीन और नागरिकता, आजीविका, संसाधनों, पर्यावरण, नागरिक और मानवाधिकारों से निरंकुश बेदखली का खुलासा ही मेरे लेखन के मुद्दे रहे हैं। हमने एअरइंडिया, बैंकिंग, पोर्ट, जीवनबीमा, रेलवे जैसे सेकटरों के अफसरों और कर्मचारियों से लगातार संवाद करके निरंतर बताने का प्रयास किया है कि मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था किस कयामत का नाम है।
देश भर के शरणार्थियों, आदिवासियों, बंजारा समुदायों, किसानों के भी हमने यथासंभव संबोधित करने की कोशिश की है।
जनांदोलन की बात कहकर राजनीति करने वाले लोगों को हमारे कहे लिखे पर खास तकलीफ होती है। अंबेडकरी आंदोलन को जाति और पहचान की तिलिस्म से निकालने की हमारी हर कोशिश फेल हो गयी है और तमाम मसीहा हमारे खिलाफ हैं और उनके अंध भक्त अपनी इंद्रियों पर ताला डालकर बैठे हुए हैं। किसी को खबर है ही नहीं कि जंगल की आग उनके घर, नौकरी, जान माल सबकुछ स्वाहा करने वाली है।
हम शुरु से ही मनमोहन सिंह को कोयला घोटाला के लिए जिम्मेदार मानते रहे हैं और देश की आजादी के बाद तमाम घोटालों के जिम्मेदार महामहिम संप्रदाय को मिले संवैधानिक रक्षा कवच को तोड़ने की जरूरत बताते रहे हैं।
गौरतलब है कि ओडिशा में 2005 में तालाबीरा-2 कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़े कोयला घोटाला के एक मामले में विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पांच अन्य को आज आरोपी के तौर पर समन जारी किए और आठ अप्रैल को पेश होने के लिए कहा है।
आज मीडिया की सबसे बड़ी खबर यही है। लेकिन घोटालों का जो अनंत सिलसिला अब मुक्तबाजारी अश्वमेध है, जो डाउ कैमिकल्स औक मनसैंटो की हुकूमत है, कारपोरेट फंडिंग की जो राजनीति है और कारपोरेटलाबिइंग का जो राजकाज बिजनेस फ्रेंडली है, विकास गाथा के अच्छे दिनों में सूचकांक के उछल कूद में जैसे आम जनता को दिवालिया बनाने का चाकचौबंद इंतजाम है, उस पर दिंगतव्यापी सन्नाटा है और फोकस आप है, क्रिकेट है।
हम जबसे 2010 से बामसेफ से अलग हो गये, हमारे पास को राष्ट्रव्यापी न मंच है और न कोई संगठन। हम जनता को संबोधित नहीं कर सकते सीधे तौर पर और न अब तक के विचारधारा के नाम पर चलनेवाले संगठनों की भूमिका के मद्देनजर देश भर के साथियों की मांग के मुताबिक नये सिरे से संगठन बनाने की कवायद कर सकते हैं, क्योंकि ऐसे संगठनों का नतीजा उसी तरह सिफर है जैसे विचारधारा के नाम पर चलने वाले राजनीतिक दलों का।
फौरी जरूरत इस अश्वमेधी नरमेधी घोड़ों और निरंकुश सांढ़ों को रोकने की है। जिसके लिए देशव्यापी जनमोर्चा भारतीय जनता का बनना चाहिए, अस्मिताओं को तोड़कर आम जनता को गोलबंद करने की जरूरत है।
जिस सर्वहारा तबके की बात हम करते हैं, वे परस्परविरोधी लाल और नीले खेमों में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं, दोनों तरफ से वहींच अस्मिता राजनीति।
सरकारी उपक्रमों और रेलवे जैसे सबसे बडें सरकारी महकमे के संपूर्ण निजीकरण के बाद पीपीपी माडल पर जाति और पहचान के नाम पर किन लोगों को दो करोड़, तीन करोड़ की नौकरियों मिल सकती हैं, यह हमारे लोगों को समझ में नहीं आ रही है।
सरकारी महकमों और उपक्रमों में ट्रेडयूनियन वर्चस्व लेकिन वाम विचारधारा का है और हमारे वामपंथी मित्र अर्थव्यवस्था और अर्थ शास्त्र हमसे बेहतर जानते हैं। लेकिन उनने पिछले तेईसे साल से कुछ किया नहीं है।
अटल जमाने से जो निजीकरण और विनिवेश का ब्लू प्रिंट अमल में लाया जा रहा है विकास, रोजगार, निवेश और वित्तीयघाटा के बहाने, उसकी परिणति अब डिफेंस में भी शत प्रतिशत एफडीआई है और खुदरा बाजार अलीबाबाओं के हवाले हैं।
इसे अमली जामा पहनाने में लाल नील पक्ष का हाथ भी कम नहीं है क्योंकि उदारीकरण जमाने में उनका केंद्र की स्ता से नाभि नाल का संपर्क है।
लिविंग इन तौ है ही।
गजब का तालमेल है और मौसम के मिजाज मुताबिक रुक रुककर हनीमून का सिलसिला बेशर्म।
हम शुरु से कहते रहे हैं कि नागरिकता संशोधन विधेयक न सिर्फ मुसलामानों और न सिर्फ विभाजनपीड़ित हिंदू शरणार्थियों के देश निकाले के लिए है, यह आदिवासियों, बंजारा समुदाओं, किसानोंऔर नगरों, महानगरों में विस्थापित आबादियों की बेदखली का ब्लू प्रिंट है।
हम शुरु से कहते रहे हैं कि डिजिटल इंडिया दरअसल बिलिनियर मिलिनियर इंडिया है और बाकी लोगों के सफाये के लिए नाटो की यूनिक परियोजना आधार है, जिसके तहत भारत का हर नागिरिक डिजिटल, बायोमेट्रिक, रोबोटिक क्लोन है और उसकी निराधार को पहचान नहीं है और अमेरिकी हितों, अबाध विदेशी पूंजी के वधस्थल बने देश में हर शख्स अमेरिकी निगरानी में है।
हमारी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा पेंटागन, नासा, नाटो, मोसाद, एनएसए, एफबीआई, सीआईए और रंगबिरंगी अमेरिकी और इजराइसी एजंसियों के हवाले में है और पूरा का पूरा राज्यतंत्र सैन्यतंत्र है, आफसा है और सलवा जुड़ुम है।
इन मुद्दों पर बाकी जनता की क्या सोच है, जो नख से शिख तक बजरंगी हैं.समझना मुश्किल नहीं है।
रेल बजट और बजट के मुताबिक देश में बहारो बहार है और धकाधक सार्वजनिक उपक्रों और विभागों, राष्ट्र और जनता के तमाम संसाधनों को बजने देश भर में दौड़ने लगी है बुलेट ट्रेनें। अध्यादेश हो या बाकायदा संसद में पारित कानून, हो या नहो कुछो फर्क नहीं पड़ता।
मनुस्मृति अनुशासन और जाति व्यवस्था की बुनियाद पर बहाल है मुक्तबाजारी अर्थ व्यवस्था। जबतक भारतीय जनता जाति और अस्मिता के तिलिस्म से बाहर निकलने की हिम्मत न करें , जब तक राष्ट्रव्यापी गोलबंदी न हो, हम पटाखों और फूलझड़ियों की बहार पर खुश होते रहेंगे और गला हमारा रेंता जाता रहेगा।
फिर भी हम कबंध बनकर अपने अपने मसीहा और अपनी अपनी विचारधारा के मोर्चे से देश बेचो ब्रिगोड का हाथ मजबूत करेंगे और हमारे कुछ ज्यादा काबिल लोग सत्ता में हिस्सेदारी के सिद्धांत के मुताबिक कतई नहीं, बाकी बहुसंख्य जनता को पहचान और अस्मिता के आधार पर सता शिखर पर चमकते नजर आते रहेंगे।
ताजा खबर यह हैः
Five public sector undertakings (PSUs) will be closed down by the government, which has included some of the best known state-run enterprises like Air India, MTNL and Hindustan Shipyard, in the list of 65 sick PSUs, Lok Sabha was informed on Tuesday.
Shares of Mahanagar Telephone Nigam (MTNL) plunged 19 percent intraday and HMT lost 13 percent on Wednesday after these companies will be shut down by the government soon.
इस पर हम 1998 से ही चेतावनी जारी करते रहे हैं। तमाम रपटों, सिफारिशों को सार्वजनिक करते रहे हैं।
Disinvestment Commission - Department of Disinvestment ...
www.divest.nic.in/discommission.asp
Disinvestment Policy - Department of Disinvestment ...
www.divest.nic.in/chap5.asp
Prime Minister's Council on Trade and Industry - India Image
indiaimage.nic.in/pmcouncils/reports/disinvest/disinvest.html
एलआईसी की मदद से भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण की पटरी पर दौड़ने के दिन शुरू होने वाले हैं।
- See more at: http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-railway-suresh-prabhu-rail-minister-39-39-473533.html#sthash.8xOm3cRi.dpuf
पलाश विश्वास


