आ गया चुनाव का मौसम : झारखंड में मजदूर नेताओं का राजकीय दमन

रूपेश कुमार सिंह

स्वतंत्र पत्रकार


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देश में चुनावी वर्ष प्रारंभ हो चुका है और इसी के साथ प्रारंभ हो चुका है आगामी चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भारतीय जनता पार्टी का चुनावी तिकड़म। देश में लगातार बढ़ रही मंहगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भुखमरी, आत्महत्या, अपराध, दलितों-आदिवासियों-अल्पसंख्यकों-महिलाओं के उत्पीड़न, महिलाओं के साथ छेड़खानी से लेकर बलात्कार की घटनायें, अमीरों की अमीरी व गरीबों की गरीबी आदि से आम जनता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भारतीय जनता पार्टी सरकार से एवं इसके मुखिया नरेन्द्र मोदी से खासे नाराज व गुस्से में हैं, जिसका प्रदर्शन पिछले वर्ष से ही कई बड़े-बड़े जनांदोलनों के जरिये कर रहे हैं। केन्द्र सरकार के प्रति आम जनता के तमाम तबकों के आक्रोश से डरी सरकार ने जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहे नेताओं व बुद्धिजीवियों को राष्ट्रीय स्तर पर निशाना बनाना पिछले वर्ष से ही प्रारंभ कर दिया था, जिसके बारे में आप भली-भांति जानते हैं (दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी. एन. साईं बाबा से लेकर भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर तक)। साथ ही केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ - भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने देश से माओवाद को खत्म करने का एलान भी गद्दी संभालते ही किया था, लेकिन सरकार द्वारा करोड़ों-करोड़ रूपये खर्च करने व मिशन-2016 एवं मिशन-2017 के जरिये माओवाद को खत्म करने की तमाम जद्दोजहद के बावजूद भी जब सरकार माओवादियों को जंगल में बहुत अधिक नुकसान नहीं दे पायी, तो अब उसे कुछ नया करने के अलावा कोई उपाय नजर नहीं आया। इसीलिए चुनावी वर्ष की शुरुआत होते ही राष्ट्रीय स्तर पर ‘अरबन माओइस्ट’ का शिगूफा छोड़ा गया और बड़े ही सतही तौर पर ‘अरबन माओइस्ट’ के जरिये ‘प्रधानमंत्री की हत्या’ की साजिश की बात फैलायी जा रही है। भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी को हुई हिंसा को बहाना बनाकर ‘अरबन माओइस्ट’ के नाम पर दिल्ली, मुंबई व पुणे से देश के जाने-माने एक्टिविस्ट रोना विल्सन, वकील सुरेन्द्र गाडलिंग, प्रोफेसर शोमा सेन, दलित एक्टिविस्ट सुधीर ढावले एवं विस्थापन विरोधी नेता महेश राउत को 6 जून को गिरफ्तार कर लिया गया है।


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6 जून को ही डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) के तेलंगाना राज्य अध्यक्ष कंचरला बद्री, राज्य कार्यकारणी सदस्य सुधीर एवं ओस्मानिया यूनिवर्सिटी मेम्बर रंजीत को ही पुलिस ने हैदराबाद से ‘अपहरण’ कर लिया और 2-3 दिन के बाद उनके साथियों के काफी मशक्क्त के बाद ही उसे कोर्ट में पेश किया। फिर 10 जून को तेलंगाना डेमोक्रेटिक फ्रंट (टीडीएफ) के राज्य संयोजक बंदी दुर्गा प्रसाद को भी हैदराबाद से गिरफ्तार कर लिया गया। बेशक, हैदराबाद से गिरफ्तार इन चारों को भी ‘अरबन माओइस्ट’ से ही विभूषित किया गया।

देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी केन्द्र व राज्य सरकार के खिलाफ आम जनता के आक्रोश का विस्फोट पिछले वर्ष से ही लगातार बड़े-बड़े जनांदोलनों के जरिये हुआ है। सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये जा रहे संशोधनों के खिलाफ व गलत स्थानीयता नीति के खिलाफ व्यापक जनांदोलन की बात हो या फिर फर्जी मुठभेड़ में कोबरा द्वारा डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या के खिलाफ उभरा अनोखा जनांदोलन, कई जगहों पर पुलिसिया गुंडागर्दी के खिलाफ जनता का स्वतःस्फूर्त्त आंदोलन हो व अपने हक-अधिकार के लिये ‘पत्थलगढ़ी आंदोलन’ हो, झारखंड भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ अपने हक-अधिकार के लिये देश के अन्य हिस्सों के आंदोलनकारियों के साथ कदमताल कर रहा था।

झारखंड में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है और इसके मुखिया हैं रघुवर दास, वैसे तो आजसू भी सत्ता में साझीदार है, लेकिन उसकी कोई औकात नहीं है। झारखंड में व्यापक होते जनांदोलन एवं सरकार की नीतियों के खिलाफ कई किस्म के बनते संयुक्त मोर्चे ने रघुवर सरकार को सोचने को मजबूर कर दिया और सरकार ने इन सभी से निपटने के लिए अपने परंपरागत ‘दमन’ अधिकार को अपनाया।


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1989 से एक रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन है ‘मजदूर संगठन समिति’

इसकी शुरुआत हुई 7 नवंबर 2017 से, 7 नवंबर 2017 को झारखंड में 13 जनसंगठनों (जिसमें कई मजदूर संगठन, महिला संगठन, युवा संगठन व विस्थापित संगठन शामिल थे) के जरिये बनाए गए ‘महान बोल्शेविक क्रांति शताब्दी समारोह समिति, झारखंड’ के द्वारा गिरिडीह में समारोह का आयोजन किया गया था, इस समारोह में उमड़ी भीड़ से डरकर सरकार ने ‘ भाकपा (माओवादी) के नेताओं के इशारे पर उग्र प्रदर्शन व सशस्त्र क्रांति छेड़ने संबंधी नारे लगाने’ का आरोप लगाकर ‘महान बोल्शेविक क्रांति शताब्दी समारोह समिति, झारखंड’ के संयोजक बच्चा सिंह (रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ के केन्द्रीय महासचिव), सह-संयोजक दामोदर तुरी (विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजन समिति सदस्य), मजदूर संगठन समिति के वरिष्ठ नेता शहजाद अंसारी, कन्हाई पांडेय, गिरिडीह शाखा के अध्यक्ष प्रधान मुर्मू, सचिव अमित यादव, राजेन्द्र कोल, तुलसी तुरी, रंजीत राय, राजन तुरी, मनोज टुडू, दिलेश्वर कोल (कुल-12) पर नामजद व 800 अज्ञात पर मुफस्सिल थाना, गिरिडीह में कांड संख्या-386/17 धारा- 147, 148, 149, 341, 342, 323, 504, 506 एवं 353 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

यह मुकदमा झारखंड में आंदोलनकारी ताकतों को डरा नहीं सकी और सरकार की पुलिस मशीनरी से लड़ते-भिड़ते ‘महान बोल्शेविक क्रांति शताब्दी समारोह समिति, झारखंड’ ने 30 नवंबर 2017 तक 17 जगहों पर बोल्शेविक क्रांति की शताब्दी समारोह का सफलतापूर्वक आयोजन किया।

जनता के इस जुझारूपन को देखते हुए और फर्जी मुठभेड़ में मारे गये डोली मजदूर मोतीलाल बास्के के मामले में अपनी व अपने सिपहसलार डीजीपी डीके पांडेय का गर्दन फंसता देख झारखंड सरकार ने झारखंड के आंदोलनकारियों की मुख्य आवाज बन कर उभर रहे ‘मजदूर संगठन समिति’ को भाकपा (माओवादी) का फ्रंटल संगठन बताते हुए 22 दिसंबर 2017 को प्रतिबंधित करने की घोषणा कर दी, जबकि ‘मजदूर संगठन समिति’ एक रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन (पंजीयन संख्या-3113/89) था एवं 1989 से ही पंजीकृत था।

तेज हुआ मजदूर नेताओं का राजकीय दमन अभियान

मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही झारखंड सरकार ने मजदूर नेताओं पर राजकीय दमन अभियान तेज कर दिया। मजदूर संगठन समिति के कई कार्यालयों को सील कर दिया गया, केन्द्रीय कार्यालय सहित कई शाखाओं व केन्द्रीय नेताओं सहित कई शाखाओं के मजदूर नेताओं के बैंक अकाउंट को फ्रीज कर दिया गया। गिरिडीह के मधुबन में मजदूर संगठन समिति के नेतृत्व में ‘डोली मजदूर कल्याण कोष’ से संचालित मजदूरों का, मजदूरों के लिये व मजदूरों के द्वारा नारे के आधार पर चलाये जा रहे ‘श्रमजीवी अस्पताल’ को भी सील करते हुए ‘डोली मजदूर कल्याण कोष’ के बैंक अकाउंट को भी फ्रीज कर दिया गया।

त्रिपक्षीय समझौते (मजदूर संगठन समिति, जैन संस्था व जिला प्रशासन) के तहत ‘डोली मजदूर कल्याण कोष’ संग्रह कर रहे तीन मजदूर नेताओं व कार्यकर्त्ताओं अजय हेम्ब्रम, दयाचन्द हेम्ब्रम व मोहन मुर्मू को 24 दिसंबर 2017 को मधुबन से गिरफ्तार कर लिया गया और इन तीनों समेत मजदूर संगठन समिति के केन्द्रीय महासचिव बच्चा सिंह, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजन समिति सदस्य दामोदर तुरी (मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध की घोषणा करते हुए झारखंड सरकार ने दामोदर तुरी को भी मसंस का मुख्य संचालक बताया था), मसंस के मधुबन शाखा के अध्यक्ष अजीत राय, सचिव थानुराम महतो, कोषाध्यक्ष द्वारिका राय, कार्यालय सचिव नारायण महतो एवं मांसु हांसदा पर मधुबन थाना कांड संख्या-28/17 के अधीन 17 सीएलए एवं 10/13 यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया और गिरफ्तार तीनों को गिरिडीह जेल भेज दिया गया, जो कि अभी तक जेल में ही बंद हैं।

मधुबन थाना में यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज होने के बाद 30 दिसंबर 2017 को बोकारो जिला के बोकारो थर्मल थाना में थाना कांड संख्या- 139/17 के अधीन धारा 17 (1) (2) सीएलए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। फिर 21 जनवरी 2018 को धनबाद जिला के कतरास थाना में थाना कांड संख्या 13/18 के अधीन 13 यूएपीए व 17 सीएलए के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। इन दोनों मुकदमों में भी एक साजिश के तहत बच्चा सिंह और दामोदर तुरी के साथ स्थानीय नेताओं का भी नाम दर्ज किया गया।

15 फरवरी 2018 को रांची के एक हॉल में लोकतंत्र बचाओ मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद देश में विस्थापन विरोधी आवाज के रूप में उभर रहे व झारखंड में विस्थापितों की आवाज उठाने वाले प्रमुख नेताओं में से एक दामोदर तुरी को गिरफ्तार कर लिया गया और गिरिडीह जेल भेज दिया गया। झारखंड सरकार ने इनकी गिरफ्तारी को भी ‘अरबन माओइस्ट’ की गिरफ्तारी की तरह ही पेश किया। गिरिडीह जेल से जमानत मिलने के बाद अभी ये धनबाद जेल में बंद हैं।

1 मई 2018 को गिरिडीह के मुफस्सिल थानान्तर्गत एक गांव में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस समारोह समिति के बैनर तले ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’ मन रहे 13 मजदूर नेताओं- कन्हाई पांडेय, प्रधाल मुर्मू, मसूदन कोल, डेलियन कोल, कालीचरण साव, रंजीत राय, गुजर राय, लखन कोल, धनेश्वर कोल, अरविन्द लाल टुडू, कोलेश्वर कोल, सीताराम सोरेन एवं राजेन्द्र कोल को गिरफ्तार कर लिया गया और मुफस्सिल थाना कांड स्ंाख्या- 144/18 के अधीन धारा 188, 124ए, 34 एवं 10/13 यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर गिरिडीह जेल भेज दिया, जो कि अब तक गिरिडीह जेल में ही बंद हैं।

ज्ञात हो कि इन सभी मजदूर नेताओं में से किसी पर भी पहले से किसी मुकदमे मे वारंट नहीं था। 7 नवंबर 2017 को इनमें से कुछ नेताओं पर मुकदमा दर्ज जरूर हुआ था, लेकिन उस मुकदमे में सभी ने जमानत ले लिया था। इन 13 मजदूर नेताओं को भी माओवादियों के शहरी चेहरे के बतौर ही झारखंड सरकार ने चित्रित किया।

बच्चा सिंह से क्यों डरी झारखंड सरकार

मजदूर संगठन समिति पर झारखंड सरकार द्वारा प्रतिबंध की घोषणा के तुरंत बाद ही इसके नेता बच्चा सिंह ने रांची उच्च न्यायालय में ‘प्रतिबंध’ को चुनौती दी थी, लेकिन आज तक उसपर बहस नहीं हुई है। इस बीच बच्चा सिंह व अन्य नेताओं पर विभिन्न थानों में हुए मुकदमे में (सिर्फ बोकारो थर्मल में दर्ज हुए मुकदमे को छोड़कर) मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी पर रांची उच्च न्यायालय ने स्टे लगा दिया था। मजदूर संगठन समिति पर प्रतिबंध के बाद जहां-जहां भी इस यूनियन का सघन कार्य था, वहां प्रबंधन की मनमानी बढ़ने लगी थी और इसके खिलाफ मजदूरों का आक्रोश भी। फलतः मजदूरों ने जगह-जगह पर नये-नये नाम से मजदूर संगठन बनाकर आंदोलन प्रारंभ कर दिया और 1 मई 2018 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’ व 5 मई 2018 को ‘मार्क्स का दो सौवां जन्मदिवस’ भी कई जगहों पर शानदार ढंग से मनाया। झारखंड सरकार ने इस सब के पीछे बच्चा सिंह का हाथ महसूस किया और उनकी गिरफ्तारी के लिये एक टीम बनाकर बोकारो पुलिस ने रात-दिन एक कर दिया। 31 मई 2018 को बच्चा सिंह अपने संगठन के केन्द्रीय सचिव दीपक कुमार के साथ बोकरो जिला के चन्दनकियारी के पर्वतपुर गांव में महावीर मंडल के घर में ठहरा हुआ था, वहीं से पुलिस ने अपने मुखबिर से सूचना पाकर रात के 11ः30-12ः00 बजे उनदोनों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन पुलिस गिरफ्तारी से इंकार करती रही। 1 जून से ही सोशल साइट पर गिरफ्तारी की बात वायरल होने व 2 जून को बच्चा सिंह की पत्ना बबली देवी द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पति व उनके सहयोगी को कोर्ट में पेश करने की मांग करने अन्यथा कानूनी कार्रवाई की धमकी देने के बाद 3 जून की सुबह में बोकारो एसपी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में दोनों नेताओं को सामने लाया गया और बाद में तेनुघाट जेल भेज दिया गया। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी 2 जून को दिखायी। मालूम हो कि दीपक कुमार पर पहले से कोई मुकदमा ना होने के बावजूद भी मजदूर संगठन समिति का केन्द्रीय सचिव होने के कारण ही उन्हें भी जेल भेज दिया। झारखंड सरकार ने इन दोनों की गिरफ्तारी को भी ‘अरबन माओइस्ट’ के बतौर ही दिखाया।

अब तक 18 मजदूर नेता व कार्यकर्त्ता झारखंड में ‘यूएपीए’ के तहत गिरफ्तार


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इस प्रकार झारखंड में अब तक मजदूरों के बीच माओवादी विचारधारा के प्रचारक व संगठक का आरोप लगाते हुए 18 मजदूर नेताओं व कार्यकर्त्ताओं के साथ-साथ विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के नेता को भी मजदूर नेता बताते हुए खतरनाक काला कानून ‘यूएपीए’ के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया है और अभी भी कई मजदूर नेताओं पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। झारखंड सरकार इन गिरफ्तारियों के जरिये मजदूरों के अनन्त शोषण, दलितों-अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले, भूख से हो रही मौतों, जंगलों-पहाड़ों पर सेना के आर्मर यूनिट द्वारा मोर्टारों व रॉकेट लांचरों से बरसाये जा रहे गोलों व जंगलो-पहाड़ों पर रहनेवाली आदिवासी जनता के साथ पुलिस द्वारा किये जा रहे कुकृत्यों के खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाना चाहती है और साथ ही 16-17 फरवरी 2017 को ‘मोमेंटम झारखंड’ में देशी-विदेशी पूंजीपतियों के साथ किये गये 210 एमओयू (210 एमओयू के तहत हजारों एकड़ जमीने पूंजीपतियों को सौंपी जानी है, जिससे लाखों लोग विस्थापित होंगे) को धरातल पर उतारना चाहती है।

(नोट- लेख में दर्ज थाना कांड संख्या व मजदूर नेताओं पर लगाया गया धारा विभिन्न अखबारों में छपे समाचार से लिया गया है।)