आई एस हो या मोसाद या लश्कर हो या श्रीराम सेने इन सबकी विचारधारा एक है – धार्मिक कट्टरपंथ
आई एस हो या मोसाद या लश्कर हो या श्रीराम सेने इन सबकी विचारधारा एक है – धार्मिक कट्टरपंथ
आई एस हो या मोसाद या लश्कर हो या श्रीराम सेने इन सबकी विचारधारा एक है – धार्मिक कट्टरपंथ
जे एन यू छात्रसंघ चुनाव में आइसा-एसएफआई के पैनल को वोट देने की अपील
नई दिल्ली। आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच ने जे एन यू छात्रसंघ चुनाव में आइसा-एसएफआई के पैनल को वोट देकर जे एन यू के लोकतान्त्रिक-प्रगतिशील ढांचे को बचाने और देश में फासीवाद के खिलाफ संघर्ष को मज़बूत करने की अपील की है।
आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच की अपील निम्नवत् है।
जे एन यू छात्रसंघ चुनाव : आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच की अपील
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के चुनावों पर आज पूरे देश की निगाह है।
पिछले वर्ष इसे जिस तरह नक़ली राष्ट्रवादियों और उनके भोंपू मीडिया द्वारा बदनाम करने और बंद तक करने की कोशिशें की गईं, छात्रसंघ अध्यक्ष सहित अनेक छात्रों का उत्पीड़न किया गया और इसके खिलाफ जो बहादुराना संघर्ष यहाँ के छात्रों और देश-दुनिया के प्रगतिशील-जनवादी-लोकतान्त्रिक जन ने प्रस्तुत किया, उसने फासीवाद के हमले झेलते वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश मे प्रतिरोध की एक मशाल जलाई है।
यही नहीं, रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या से लेकर देश भर के विश्वविद्यालयों में दक्षिणपंथी गुंडागर्दी और यूजीसी द्वारा उच्च शिक्षा के निजीकरण के प्रयास के खिलाफ जेएनयू के रौशनख्याल छात्रों ने कैंपस के बाहर आकर भी तीखा संघर्ष किया है।
आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच इस संघर्ष में एक साझेदार की तरह उपस्थित रहा है।
यह चुनाव आज वामपंथी-प्रगतिशील ताकतों की एकता और ताक़त का ही परीक्षण नहीं है, बल्कि इसके परिणामों का असर भविष्य के संघर्षों पर भी पड़ना है। जहां देश की सरकार और उसका पिट्ठू जे एन यू प्रशासन इस लोकतान्त्रिक और सर्व समावेशी संस्था को एक नख-दंत विहीन शिक्षा के बाज़ार मे तब्दील कर देना चाहता है, वहीं उनका प्रतिनिधि छात्र संगठन एबीवीपी एक भीतरी शत्रु की तरह इस मुहिम मे उनके साथ शाना ब शाना खड़ा है।
यह शर्म की बात है कि ‘शट डाउन जे एन यू’ का नारा लगाने वालों के वैचारिक साथी, रोहित वेमुला के हत्यारे, उज्जैन के प्रोफेसर सब्बरवाल के हत्यारे और देश भर के कैम्पसों मे हिंसक गुंडागर्दी के प्रतिनिधि छात्र संगठन के लोग जे एन यू को सुरक्षित स्पेस बनाने के दावे कर रहे हैं।
अपने हिटलर-मुसोलिनी तो छोड़िए, देश के भीतर गुजरात से मुजफ्फरपुर तक हत्याओं के इतिहास को भूलते हुए वामपंथ पर सवाल खड़ा करने वालों के संदर्भ मे याद रखना होगा कि चाहे वह आई एस हो या मोसाद या लश्कर हो या श्रीराम सेने इन सबकी विचारधारा एक है – धार्मिक कट्टरपंथ, और इस विचारधारा ने पूरी दुनिया को सिर्फ हिंसा-हत्या-बलात्कार-विनाश ही दिये हैं।
यही नहीं आज ‘भगवा-लाल’ को एक बताने वाले हमारे साथी न केवल सांप्रदायिकता के खिलाफ वामपंथ के समझौताहीन संघर्ष को धुंधलाने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि हाल मे फासीवाद के खिलाफ अंबेडकरवादी-वामपंथी साझा संघर्षों पर भी धूल और गर्द डाल रहे हैं।
दलित आज फासीवाद के खिलाफ संघर्ष की अगली पंक्ति मे हैं और गुजरात ने उसका रास्ता दिखाया है।
मुख्यधारा की राजनीति में विचार अक्सर अवसरवाद का नकाब बने हैं वरना सांप्रदायिकता के कट्टर विरोधी अंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वाली मायावती जी गोधरा के बाद गुजरात में भाजपा का प्रचार करने नहीं जातीं, उत्तर प्रदेश में उनके साथ तीन बार सरकार नहीं बनातीं और आठवले या उदित राज आज भाजपा सरकार के मंत्री नहीं होते।
इतिहास से उदाहरण ढूंढ कर हमला करने की जगह यह समय एतिहासिक भूलों का परिष्कार कर नए सिरे से नई एकता बनाते हुए नए और फैसलाकुन संघर्षों की शुरुआत का है।
हमारा मानना है आज वह दौर है जब फासीवाद के सभी विरोधियों को अपने मतभेदों पर बहस चलाते हुए भी एक व्यापक एकता के साथ संघर्ष मे उतरना चाहिए। सांप्रदायिकता और पूंजीवाद के इस गठजोड़ को उखाड़ फेंकने और देश के वंचित-शोषित जन के अधिकारों के लिए व्यापक लड़ाइयाँ आज नहीं शुरू हुईं तो कल बहुत देर हो जाएगी।
अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद वामपंथ की विभिन्न धाराओं ने भारत मे वंचित वर्गों के हर संघर्ष मे कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया है। चाहे लेखकों की हत्या का सवाल हो, रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या का सवाल हो, शिक्षा के निजीकरण और बाजारीकरण का सवाल हो, आदिवासियों की जल-जंगल-ज़मीन की लूट का सवाल हो, दिल्ली और देश के अन्य इलाकों मे उत्तर-पूर्व तथा कश्मीर के लोगों से दुर्व्यवहार का सवाल हो, जेंडर आधारित भेदभाव का सवाल हो, आफ़स्पा का सवाल हो, कश्मीर नागरिकों के उत्पीड़न का सवाल हो, गो रक्षा के नाम पर दलितों-अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों का सवाल हो, वामपंथी छात्र-कार्यकर्ता हमेशा संघर्ष की अगली पांतों मे खड़े हुए हैं।
भले हमारे बीच का कोई साथी दमित वर्ग पर अत्याचार का दोषी हो, उसका विरोध करने में हमने कभी एक क्षण नहीं लगाया।
जे एन यू आज केवल एक विश्वविद्यालय नहीं रह गया है बल्कि जनता के व्यापक संघर्षों का प्रतीक बन गया है। ये चुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं बल्कि एक मुश्किल वक़्त मे हो रहे एतिहासिक चुनाव हैं।
आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच दलित-अल्पसंख्यक-नारीवादी-आदिवासी-उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं की एक व्यापक एकता का आह्वान करते हुए सभी छात्रों से इन चुनावों में आइसा-एसएफआई के पैनल को वोट देकर जे एन यू के लोकतान्त्रिक-प्रगतिशील ढांचे को बचाने और देश मे फासीवाद के खिलाफ संघर्ष को मज़बूत करने की अपील करता है।
जय भीम-लाल सलाम
संयोजन समिति, आग़ाज़ सांस्कृतिक मंच


