आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट जारी, वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के दुष्परिणाम बहुत भयंकर होंगे
आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट जारी, वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के दुष्परिणाम बहुत भयंकर होंगे
आईपीसीसी की ग्लोबल वार्मिंग पर रिपोर्ट जारी, वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के दुष्परिणाम बहुत भयंकर होंगे
नई दिल्ली,07 अक्तूबर। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने आज दक्षिण कोरिया के इंचियोन में अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट जारी की। वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर आधारित यह रिपोर्ट एक सप्ताह तक चले समग्र सम्पादन सत्र के बाद जारी की गई है। सत्र के दौरान वैज्ञानिकों ने समरी फॉर पॉलिसीमेकर्स पर सरकारों द्वारा की गई टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया दी।
रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुए पर्यावरणविद् व वरिष्ठ पत्रकार सीमा जावेद ने बताया कि :
· यह रिपोर्ट पैरिस समझौते में शामिल किए गए सरकारों के उस अनुरोध पर तैयार की गई है, जिसमें उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के सर्वश्रेष्ठ तरीकों तथा उसके परिणाम के प्रभावों पर आधारित रिपोर्ट तैयार करने का आग्रह किया गया था।
· इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 6000 से ज्यादा वैज्ञानिक दस्तावेजों को खंगाला गया। साथ ही इसमें 40 देशों के वैज्ञानिक लेखकों तथा सम्पादकों से मिली सूचनाओं का भी समावेश किया गया है।
· पोलैण्ड में आगामी दिसम्बर में आयोजित होने वाले सीओपी24 में यह रिपोर्ट एक प्रमुख वैज्ञानिक दस्तावेज होगी। खासकर तब जब इसमें भाग लेने वाले विभिन्न देश पैरिस समझौते के लिए नियमावली को अंतिम रूप देंगे।
· यह रिपोर्ट आईपीसीसी के छठे असेसमेंट साइकिल में पेश की जाने वाली विशेष रपटों की श्रंखला की पहली कड़ी होगी। आईपीसीसी अगले साल महासागरों, क्रायोस्फेयर तथा भू-उपयोग पर विशेष रिपोर्ट्स जारी करेगा।
रिपोर्ट की सुर्खियों के अलावा, हमने विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया के साथ-साथ अंतिम रिपोर्ट से निकले कुछ नये और ध्यान देने योग्य विषयों तथा प्रमुख तथ्यों की पहचान की है।
आईपीसीसी की 1.5 डिग्री सेल्सियस रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने से जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव
Effect on climate due to an increase of 2 degrees Celsius in global temperature
· वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने के परिणाम अनुमान से भी ज्यादा बदतर होंगे। इसका मतलब है कि 2 डिग्री का लक्ष्य सुरक्षित भविष्य के लिहाज से उपयुक्त नहीं रह गया है। हम तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखकर इस नुकसान को पूरी तरह से न सही, मगर काफी हद तक टाल सकते हैं।
· उदाहरण :
(अ) वैश्विक तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करने से कोरल रीफ को 70 से 90 प्रतिशत तक नुकसान होगा, वहीं 2 डिग्री की बढ़ोत्तरी होने पर यह हानि 99 प्रतिशत से ज्यादा की हो जाएगी।
(आ) दुनिया के तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर अंटार्कटिका में बर्फ विहीन गर्मी का दौर एक शताब्दी में एक ही बार आने का अनुमान है। वहीं 2 डिग्री वाली स्थिति में एक दशक में कम से कम एक बार ऐसे हालात बनने की आशंका बढ़ जाएगी।
(इ) वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 के बजाय डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने से मेक्सिको देश जितने आकार के हिमाच्छादित क्षेत्र की बर्फ को पूरी तरह पिघलने से रोका जा सकता है।
(ई) डेढ़ डिग्री के मुकाबले 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी इलाकों सहित दुनिया के अनेक क्षेत्रों में भारी बारिश होने का खतरा अपेक्षाकृत बढ़ने की आशंका है। भारी बारिश से जुड़े उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के भी ज्यादा होने का खतरा है।
(उ) तापमान में 2 डिग्री के मुकाबले डेढ़ डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने पर जंगलों में आग लगने के दुष्प्रभाव कम होते हैं।
· प्रमुख सीमाओं को लांघने के उल्लेखनीय खतरे मौजूद हैं। वैश्विक तापमान में डेढ़ के बजाय 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर यह टिपिंग प्वाइंट्स को प्रेरित कर देता है।
आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 1 के सह-अध्यक्ष पनमा झई ने कहा
“इस रिपोर्ट से जो एक प्रमुख संदेश बहुत मजबूती से सामने आया है, वह यह कि हम वैश्विक तापमान में मात्र एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर असहनीय मौसम, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि तथा आर्कटिक में जमी बर्फ के पिघलने तथा अन्य अनेक नकारात्मक पर्यावरणीय परिवर्तनों का पहले ही सामना कर रहे हैं।”
आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप 2 के सह अध्यक्ष हांस ओटो पोर्टनर ने कहा
“तापमान में होने वाली हर छोटी से छोटी वृद्धि मायने रखती है, खासकर 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने से लम्बे वक्त तक रहने वाले या फिर अपरिवर्तनीय बदलाव होने का खतरा बढ़ जाता है। इन कभी न पलटे जा सकने वाले बदलावों में कुछ पारस्थितिकियों का लोप भी शामिल है।”
क्या है आईपीसीसी
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र निकाय है। इसका गठन 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएन पर्यावरण) और विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) ने जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और संभावित भविष्य के जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन और शमन को आगे बढ़ाने के लिए नियमित वैज्ञानिक आकलन के साथ नीति निर्माताओं को प्रदान करने के लिए किया था। इसमें 119 सदस्य देश हैं।
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