प्रेम महान क्यों है?

प्रेम आज भी सबसे बड़ा जनप्रिय विषय है, इसकी रेटिंग आज भी अन्य विषयों से ज्यादा है। तमाम तबाही के बावजूद प्रेम महान है तो कोई न कोई कारण जरूर रहा होगा। प्रेम खास लोगों के साथ खास संबंध का नाम नहीं है। यह एटीट्यूट है। व्यक्ति के चरित्र की प्रकृति निर्धारित करती है कि उसका विश्व के साथ कैसा संबंध होगा। यदि कोई व्यक्ति किसी एक से प्रेम करता है और दूसरे व्यक्ति से प्रेम नहीं कर पाता या उसकी उपेक्षा करता है तो इसे प्रतीकात्मक लगाव कहेंगे। अथवा अहंकार का विस्तार कहेंगे।

बुनियादी प्रेम : सभी मनुष्यों के बीच प्रेम का आधार है भातृप्रेम

बुनियादी किस्म का प्रेम (basic love) भातृप्रेम के रूप में व्यक्त होता है। इसका अर्थ है जिम्मेदारी, देखभाल,सम्मान, अन्य मनुष्य का ज्ञान, उसके भविष्य के लिए शुभकामनाएं देना। इस तरह के प्रेम के बारे में बाइबिल में कहा गया है। भातृप्रेम सभी मनुष्यों के बीच प्रेम का आधार है। इसमें एक्सक्लुसिवनेस का अभाव (lack of exclusiveness) है।

इन दिनों होना ही व्यक्ति के लिए महत्व का हो गया है, कोई चीज है तो महत्व है। होने के कारण ही व्यक्ति जिंदा होता है। यदि जिंदा रहना है तो अपने होने के अस्तित्व को चुनौती देने का जोखिम भी होना चाहिए, जिससे अपने अस्तित्व को ही चुनौती दी जा सके। ऐसे व्यक्ति का जिंदा रहना अन्य को प्रदूषित करता है। उनके प्रदूषण से ही अन्य लोग अपना अतिक्रमण कर पाते हैं। ऐसे लोगों का संवाद करना, बातचीत करना ज्यादा उपयोगी होता है, क्योंकि इसमें आप वस्तुओं का विनिमय नहीं करते। जब आप संवाद करते हैं तो उसमें यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन सही है।

why is love great
Why is love great?

'The Art of Loving'

एरिक फ्रॉम ने "दि आर्ट ऑफ लविंग" में लिखा "भावना प्रेम नहीं है, जो किसी के भी साथ शामिल हो जाए।" प्रेम के अधिकांश प्रयास असफल होते हैं, चाहे कितने ही परिपक्व ढ़ंग से क्यों न किए गए हों। इसके बावजूद हमें प्रेम आशान्वित करता है, प्रेम की ओर बढ़ावा देता है। प्रेम को सेंटिमेंट के रूप में नहीं देखना चाहिए।

प्रेम का अर्थ

प्रेम कला है। प्रेम का कोई निर्देशात्मक शास्त्र नहीं बनाया जा सकता। कोई मेनुअल नहीं बना सकते। प्रेम का अर्थ चांस नहीं है। यह चांस की चीज नहीं है। जैसाकि अमूमन लोग बोलते हैं मैं बड़ा लकी हूँ कि मुझे तुम मिली या मिले। अथवा तुमसे प्यार हो गया।

भाग्य नहीं है प्रेम

प्रेम चांस नहीं है। प्रेम भाग्य भी नहीं है। प्रेम में व्यापक असफलता के बावजूद प्रेम के प्रति आज भी आकर्षण बना हुआ है, प्रेम की मांग बनी हुई है। आज भी प्रेम कहानी सबसे ज्यादा बिकती है। प्रेम एक ऐसी चीज है जिसके बारे में शायद ही कभी कोई यह कहे कि उसके लिए शिक्षा की जरूरत है। ये सारी बातें एरिक फ्रॉम ने उठायी हैं और उनसे असहमत होना असंभव है।

आधुनिक मीडिया बता रहा है कि प्रेम दो के बीच का रसात्मक आकर्षण है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है। प्रेमकथाएं अमूमन दो व्यक्तियों की प्रेम कहानी के रूप में ही होती हैं और अंत में प्रेम के बाद खत्म हो जाती हैं। इन कहानियों में दिखाया जाता है कि किस तरह प्रेमी युगल तमाम मुसीबतों का सामना करके अंत में प्रेम करते हैं। अंत में सुखी जीवन जीते हैं। हमें सोचना चाहिए कि इस तरह की प्रस्तुतियां हमें अंत में कहां ले जाती हैं ? क्या इस तरह की प्रस्तुतियां हमें बाकी संसार से काट देती हैं ?

Love according to Erich Fromm. Erich Fromm love definition.

हमारे रेडियो स्टेशनों से रूढ़िबद्ध प्रेमगीत लगातार बजते रहते हैं। ये गीत भी रोमांस उपन्यासों और प्रेम फिल्मों से बेहतर नहीं होते। इन सबमें एक ही बात होती है कि दो व्यक्तियों के बीच के संबंध का नाम है प्रेम। आप ज्योंही मिलते हैं और मैच मिल जाता है तो बस एक-दूसरे में घुल-मिल जाना चाहते हैं।

किंतु एरिक फ्रॉम जिस प्रेम को पेश कर रहे हैं उसका इससे साम्य नहीं है। एरिक ने जीजस की प्रेम की धारणा को आधार बनाया है, जीजस ने कहा था अन्य से प्रेम करो, पड़ोसी से प्रेम करो। हमारी फिल्मों में जिस तरह दो व्यक्तियों के बीच में सेंटीमेंटल लव दिखाया जाता है उससे इसका कोई संबंध नहीं है।

प्रेम का अर्थ घर बनाना अथवा घर में कैद हो जाना नहीं है। बल्कि प्रेम का अर्थ है घर के बाहर निकलकर प्रेम करना। उस जगह से बाहर निकलना जहां आप रह रहे हैं। उन आदतों से बाहर निकलना जिनमें कैद हैं। आप उनसे प्यार करें जो आपसे अलग हैं, व्यक्तिगत संबंधों के परे जाकर प्रेम करें।

मौजूदा उपभोक्ता समाज में मीडिया लगातार हमें अन्य के प्रति हमारी जिम्मेदारी के भाव से दूर ले जा रहा है।

अन्य के प्रति जिम्मेदारी के भाव से दूर जाने के कारण ही आत्मकेन्द्रित होते जा रहे हैं। ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि स्वयं ज्यादा से ज्यादा उपभोग कर रहे हैं। हम नहीं सोचते कि इससे किसे क्षति पहुँच रही है। कौन इस प्रक्रिया से पीड़ित है। हम सिर्फ एक ही विचार में कैद होकर रह गए हैं कि हमें कोई एक व्यक्ति चाहिए जो हमें प्यार करे। उसके साथ जी सकें। इसके लिए सिर्फ एक काम और करना है ज्यादा से ज्यादा धन कमाना है,एक साथ काम करना है। हम जिस व्यक्ति को प्यार करते हैं उसके लिए ज्यादा से ज्यादा चीजें खरीदनी हैं।

हमारी हिन्दी फिल्मों के गाने कितना ही प्रेम का राग अलापें, दुनिया से प्रेम का कोलाहल करें। सच्चाई यह है प्रेम के इस कोलाहल में हमने अपने अंदर के दरवाजे बंद कर लिए हैं। हमने अपने पड़ोसी की जिंदगी से आंखें बंद कर ली हैं। बल्कि इन दिनों उलटा हो रहा है हम पड़ोसी से प्रेम की बजाय उस पर संदेह करने लगे हैं। पड़ोसी को जानने की बजाय उसके प्रति अनजानापन ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति हो गया है। प्रेम का मीडिया ने ऐसा वातावरण बनाया है कि हम अपनी ही दुनिया में कैद होकर रह गए हैं। घर की चारदीवारी में ही अपने जीवन के यथार्थ को कैद करके रख दिया है। घर में ही हमारे सबसे घनिष्ठ आंतरिक संबंध कैद होकर रह गए हैं। विश्व के साथ पैदा हुए इस अलगाव को हम प्रेम कहते हैं ! इस कैद से निकलने की जरूरत है।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

let's change the phrase of love