आखिर पाठ्यपुस्तकों से क्यों नहीं हट रहा है 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ शब्द ?
आखिर पाठ्यपुस्तकों से क्यों नहीं हट रहा है 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ शब्द ?

After all, why is the word 'revolutionary terrorist' not being removed from textbooks?
देश में सबसे अधिक दिखावा देशभक्ति को लेकर हो रहा है। जहां सत्तापक्ष राष्ट्रवाद का राग अलाप रहा है वहीं विपक्ष सत्ता में बैठे भाजपा और आरएसएस के लोगों के आजादी में कोई योगदान न देने की बात कर रहा है। मतलब राजनीतिक दलों में अपने को बड़ा देशभक्त दिखाने की होड़ लगी है। सत्ता पक्ष जहां धारा 370, राम मंदिर निर्माण और नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) से स्वयं को देशभक्ति से जोड़ रहा है, वहीं विपक्ष देश की आजादी का श्रेय लेने के लिए तरह-तरह के दावे कर रहा है।
जमीनी हकीकत यह है कि आज ये जितने भी क्रांतिकारी बने घूम रहे हैं, इन्हें देशभक्ति से कोई लेना देना रह नहीं गया है। इन्हें हर समय इस बात की चिंता रहती है कि अपना वोटबैंक कैसे बनाया जाए या फिर बचाया जाए। यदि ऐसा न होता तो आजाद भारत में भी क्रांतिकारियों को 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ न बोला जाता है।
आजादी के 72 साल बाद भी 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ (Revolutionary terrorist) शब्द हमारे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।
'क्रांतिकारी आतंकवादी’ शब्द को लेकर मध्य प्रदेश ग्वालियर के जीवाजी विवि में तो अब बवाल मचा है। इससे पहले न जाने कितनी बार इस शब्द को लेकर छात्रों ने हंगामा किया है पर हमारी सरकारें हैं कि इनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। आखिर सरकारों की ऐसी क्या मजबूरी है कि यह शब्द पाठ्यपुस्तकों से नहीं हट पा रहा है।
यह अपने आप में शर्मनाक है कि जहां देश में एक से बढ़कर एक देशभक्त होने का दावा किया जा रहा है, वहीं जीवाजी विश्वविद्यालय में 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ शब्द को लेकर छात्रों को विरोध करना पड़ा है।
ऐसा नहीं है कि यह मामला बस मध्य प्रदेश का है। देश के सभी प्रदेशों में किसी न किसी पाठ्यपुस्तक में यह शब्द बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।
दरअसल जीवाजी विवि में राजनीति शास्त्र के परास्नातक पाठ्यक्रम के तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा में बुधवार को प्रश्नपत्र 'राजनीतिक दर्शन-3, आधुनिक भारत का राजनीतिक विचार’ में 'क्रांतिकारी आतंकवादियों की गतिविधियों का वर्णन करने की बात कही गई थी। सवाल किया गया था कि उग्रवादियों और क्रांतिकारी आतंकवादियों में क्या अंतर है?’
विद्यार्थियों के एक संगठन अखिल भारतीय लोकतांत्रिक छात्र संगठन (एआईडीएसओ) ने प्रश्नपत्र में क्रांतिकारी आतंकवादी शब्द लिखे जाने पर आपत्ति जताते हुए विश्वविद्यालय में प्रदर्शन किया।
हालांकि जीवाजी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार आई के मंसूरी ने इस मामले में एक जांच समिति का गठन किया गया है। पर इसका कोई स्थाई समाधान होता नहीं दिखाई दे रहा है। संबंधित परीक्षक पर कार्रवाई करने की बात कही जा रही है पर क्या इससे समस्या का हल हो जाएगा ?
इन सबके बीच प्रश्न उठता है कि प्रश्नपत्र बनाने वाले प्रोफेसर ने यह शब्द कहीं आसमान से तो उठाया नहीं है कहीं न कहीं किसी पाठ्य पुस्तक से ही उठाया होगा।
दरअसल इन क्रांतिकारियों अंग्रेजी हुकूमत आतंकवादी मानती थी। सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों को आज भी हमारे बच्चे 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ के रूप में पढ़ रहे हैं जो शर्मनाक है।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि देश की संसद में जरा-जरा सी बातों पर कई-कई दिनों तक बहस होती है पर क्या राजनीतिक दलों को कभी इस शब्द पर बहस करने की जररूत नहीं पड़ी ? पड़ती भी कैसे सभी राजनीतिक दलों को अपने वोटबैंक की जो चिंता है। यही कारण है कि सरकार आज भी सरकार भगत सिंह को शहीद तक नहीं मानती।
जब यह बात एक आरटीआई के माध्यम से पूर्व प्रधानमंत्री मन मोहन सिंह के सामने आई तो उन्होंने ने भी 'सरकार नहीं मानती न माने पर देश तो मानता है’ कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया था।
अब तो मोदी सरकार में सबसे अधिक ढोल देशभकित का ही पीटा जा रहा है तो यह शब्द पाठ्यपुस्तकों से क्यों नहीं हटा गया ? अब तो वैसे भी नरेन्द्र मोदी को देश पर राज करते हुए छह साल होने जा रहे हैं।
कांग्रेस, जनता पार्टी, भाजपा, जनता दल के अलावा कई दूसरे दलों ने मिलकर देश में सरकार बनाई और चलाई भी। देश के संविधान में समय-समय पर संशोधन भी हुए। अब तो देश में बवाल ही संशोधन को लेकर हो रहा है पर किसी पार्टी को पाठ्य पुस्तकों से 'क्राङ्क्षतकारी आतंकवादी’ शब्द हटाने के लिए संशोधन की जरूरत नहीं पड़ी। न ही किसी दल ने कभी इस शब्द का विरोध किया।
जमीनी हकीकत तो यह है कि हमारा संविधान भी अंग्रेजों की नीतियों से प्रभावित है। देश में पुलिस कार्रवाई से लेकर कार्यालयों के काम तक में अंग्रेजी नीतियां व्याप्त हैं। जरा-जरा सी बात पर धारा 144 लगाना भी अंग्रेजों हुकूमत का प्रचलन है।
आजादी की लड़ाई में भारतीय एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद न कर दें, इसके लिए अंग्रेजी हुकूमत में धारा 144 लगा दी जाती थी। आजाद भारत में धारा 144 लगने अब आम बात हो गई है। कहना गलत न होगा कि सरकारें अंग्रेजों की नीतियों का अनुसरण करते हुए देश पर राज करती हैं। मोदी सरकार तो पूरी तरह से अंग्रेजों की नीतियों का अनुसरण करते हुए देश पर राज कर रही है। ये जो विभिन्न मंचों से प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी से लेकर उनके सभी सिपेहसालार भारत माता की जय के नारे लगाते हंै। ये नारे तो इन्हीं क्रांतिकारियों के ही तो थे। जिन क्रांतिकारियों को पाठ्य पुस्तकों में आतंकवादी पढ़ाया जा रहा है।
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मोदी सरकार तो आतंकवाद पर सबसे ज्यादा हल्ला मचा रही है। तो क्या देश को आजाद कराने वाले क्रांतिकारियों को आजाद भारत में भी आतंकवादी ही समझा जाएगा ?
क्रांतिकारी आतंकवादी शब्द को लेकर 2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में भी बवाल मचा था। बाद में डीयू में इतिहास पाठ्यक्रम में शामिल एक किताब, जिसमें क्रांतिकारी भगत सिंह को 'क्रांतिकारी आतकंवादी’ बताया गया था की बिक्री और वितरण को पूरी तरह से रोक दिया गया था।
'इंडियास स्ट्रगल फोर इंडिपेंडेंस’ शीर्षक वाली इस अंग्रेजी भाषा की किताब को करीब दो दशक पहले डीयू ने पाठ्यक्रम में शामिल किया था। इसके 20वें पाठ में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सूर्या सेन और अन्य को 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ बताया गया था। इस किताब में चटगांव आंदोलन को भी आतंकी गतिविधि बताने के साथ ही ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सेंडर्स की हत्या को आतंकी वारदात कहा गया था। इस तरह की बातें पाठ्यपुस्तकों में लगातार आ रही हैं। रोक की बात भी होती है आज भी कई पाठ्य पुस्तकों में क्रांतिकारियों को 'क्रांतिकारी आतंकवादी’ पढ़ाया जा रहा है।
सी.एस. राजपूत


