आगे निकलने और अव्वल रहने की इस अंधी दौड़ में हम अपने बच्चों को क्यों झोंक रहे हैं?
आगे निकलने और अव्वल रहने की इस अंधी दौड़ में हम अपने बच्चों को क्यों झोंक रहे हैं? बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो.. चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे.. निदा फाज़ली का यह शेर भागती-दौड़ती-हांफती दुनिया में पल भर सुस्ता कर मासूमियत को सहेजने-संभालने का मौका देता...
आगे निकलने और अव्वल रहने की इस अंधी दौड़ में हम अपने बच्चों को क्यों झोंक रहे हैं?
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो..
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे..
निदा फाज़ली का यह शेर भागती-दौड़ती-हांफती दुनिया में पल भर सुस्ता कर मासूमियत को सहेजने-संभालने का मौका देता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन में सफलता पाने की होड़ में हम किस तरह बच्चों से उनका बचपन छीन रहे हैं। उनकी आंखों से, बातों से, व्यवहार से मासूमियत को निकाल बाहर कर रहे हैं। जिन आंखों में ढेरों जिज्ञासाएं होनी चाहिए, उनमें हम अपनी महत्वाकांक्षाएं ठूंस रहे हैं और उस पर जबरदस्ती यह कि वे उन महत्वाकांक्षाओं को ही अपना लक्ष्य बना लें। क्या होगा अगर बच्चा कक्षा में प्रथम न आया तो? 1 से 40 तक रोल नंबर वाले बच्चों में कोई पहला आएगा, कोई 40वां, सब एक ही स्थान पर तो नहींआ सकते, फिर क्यों ऐसी असंभावित उम्मीद हम अपने बच्चों पर थोपते हैं? क्या हुआ अगर कोई बच्चा इंजीनियरिंग या मेडीकल की सीट हासिल न कर सके? क्या यह इतना बड़ा गुनाह होता है कि बच्चे को आत्महत्या का रास्ता अपनाना पड़े? क्या हुआ अगर कोई 3 साल का बच्चा 1 से 5 तक गिनती ठीक से न पढ़ सके? अभी उसकी जितनी उम्र नहींहै, उतनी गिनतियां, रंग, जानवरों के नाम, राजधानियों के नाम, ऊटपटांग कविताएं रटने पर उसे मजबूर किया जाता है और जब वह इनमें गड़बड़ाए तो मां-बाप की कुंठा का शिकार भी उसे ही बनना पड़ता है।
दरअसल, सोशल मीडिया पर पिछले हफ्ते से पढ़ाई करने के दौरान रोती हुई एक 3 साल की बच्ची का वीडियो खूब वायरल हो रहा है। इस विडियो में एक महिला उसे डांटते हुए गिनती सिखा रही है और बच्ची डरी, सहमी रोती नजर आ रही है। आइये एक नज़र इस विडियो पर डालते हैं..
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यह वीडियो अधिक चर्चा में तब आया जब इसे क्रिकेटर विराट कोहली, शिखर धवन और युवराज सिंह ने शेयर करते हुए पढ़ाने के ऐसे तरीके की निंदा की थी। उन्होंने अभिभावकों से बच्चों को प्यार से पढ़ाने की अपील की थी।
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने लिखा था कि यह बहुत ही दुखदाई विडियो है, जिसमें बच्ची को सिखाने के अहम में दया की कोई जगह नहीं बची है। अगर बच्चों को डराकर सिखाएंगे, तो वह कभी कुछ नहीं सीख पाएगा। यह बहुत ही पीड़ादायक है।
वहीं शिखर धवन ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा, कि आज तक जितने भी वीडियो मैंने देखे, ये उन सबमें सबसे ज्यादा डिस्टर्ब करने वाला वीडियो है। बतौर अभिभावक हमें यह मौका मिला है कि हम अपने बच्चों को मजबूत बना सकें, ताकि हमारे लालन-पालन में वह वो बन सके, जो वे बनना चाहते हैं। इससे मैं विचलित हुआ हूं कि यह महिला अपनी बच्ची के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार कर रही है। सीखने की प्रक्रिया मजेदार होनी चाहिए, न कि डरावनी। शिक्षा जरूरी है, लेकिन बच्चे की आत्मा कचोट लेने की कीमत पर नहीं।
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यह वीडियो सही या है नहीं, और बच्ची को कौन पढ़ा रहा है, इस पर काफी कयास लग रहे थे, लेकिन मंगलवार को कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि वीडियो में नजर आ रही बच्ची का कनेक्शन बॉलिवुड से है और उसका नाम हया है। वह गायक तोशी साबरी की बहन की बेटी हया है।
तोशी के मुताबिक उनकी बहन (हया की मां) ने हया को पढ़ाते वक्त यह विडियो इसलिए शूट किया था ताकि फैमिली वॉट्सऐप ग्रुप पर भेजकर बता सकें कि हया कितनी शरारती हो गई है।
तोशी ने इस वीडियो पर नसीहत से नाराजगी जताते हुआ कहा कि हमारे बच्चों के बारे में विराट या शिखर नहीं जान सकते, हम जानते हैं। हया बहुत जिद्दी है और परिवार की लाडली है। लेकिन अगर उसकी जिद और हमारे लाड के चलते उसे छूट दे दी जाए, तो फिर वह पढ़ाई कैसे करेगी। हया बस 3 साल की है और यह कोई बड़ी बात नहीं है। वह इसलिए रो रही थी ताकि उसकी मां उसे छोड़ दे और वह खेलने जा सके। एक छोटा सा वीडियो देखकर आप किसी को जज नहीं कर सकते। उसकी मां से ज्यादा उसे कौन प्यार करेगा?
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तोशी साबरी का तर्क सही है कि बच्ची को उसकी मां से ज्यादा कौन प्यार करेगा और वाकई किसी वीडियो को देखकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। लेकिन यहां सवाल बच्ची से प्यार करने, न करने का नहीं है, बल्कि उसे पढ़ाने के तरीके का है। बच्ची अगर खेलने की इच्छा रखती है, तो यह बहुत स्वाभाविक है। उसे मार-पीट कर पढ़ाने का तरीका सही नहीं कहा जा सकता, खासकर तब जबकि वह केवल 3 साल की है। उसका वीडियो बनाकर घर के अन्य सदस्यों को दिखाना भी उसके मासूम मन और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला काम है। हया के साथ जो व्यवहार हुआ है, वह हमारे देश के बहुतेरे परिवारों की कड़वी हकीकत है।
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हम बच्चे पर तब से अपने अरमान लादने शुरू कर देते हैं, जब वे अपने लडख़ड़ाते कदमों से चलना भी सीख नहीं पाते हैं। हर बच्चा पढ़ाई करके जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता, इस अतिसामान्य सच्चाई से हम मुंह मोड़ कर रखते हैं। जब प्रकृति ने चीते जैसे द्रुत जानवरों से लेकर धीमी गति वाले कछुओं को बड़े प्यार से बनाया है, जब ऊंचे ताड़ से लेकर नन्ही दूब तक को पाला-पोसा है, तो हम इंसान क्यों विविधता के इस प्राकृतिक नियम को बदल कर सभी को चीता और ताड़ बनाने में लगे हुए हैं? आगे निकलने और अव्वल रहने की इस अंधी दौड़ में हम अपने बच्चों को क्यों झोंक रहे हैं?
This Program is based on editorial of Deshbandhu


