आज के दौर का तराना : लड़ते हुवे सिपाही का गीत बनो रे, हारना है मौत, तुम जीत बनो रे

शम्सुल इस्लाम

जब हमारे देश और दुनिया में अपराधी, फ़ासीवादी तत्व/संगठन/व्यक्ति मौत के सौदागर बनकर उन सब असूलों को मलियामेट करने में लगे हौं जो इंसान ने हज़ारों सालों में ज़ुल्म, अत्याचार और नाइंसाफ़ी से लड़ते हुवे, बेमिसाल क़ुर्बानिएं देकर, जीवित रखें हैं तो क्या हम खामोश बैठ बेठ सकते हैं, क़तई नहीं। हमें साथी बृजमोहन का यह गीत गाना ही होगा।

लड़ते हुवे सिपाही का गीत बनो रे,

हारना है मौत, तुम जीत बनो रे।

गाइये, दोस्तों/परिवार/पड़ोस को सुनाइये।

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