रवीश कुमार की इन पंक्तियों को पढ़कर सकते में हूं। उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग पर लिखा है -

"ये कैसा घटिया समाज है, जो मुझे अकेला छोड़ इस गुंडागर्दी को सह रहा है।"

इस विषय में गुगल करने पर मालूम चलता है कि दक्षिणपंथ के हिंसक गुटों से जुड़े लोग रवीश कुमार के नाम पर तरह-तरह की अफवाहें फैला रहे हैं। उन्‍हें धमकियां दी जा रही हैं। इन कारणों से उन्‍होंने अपना ट्वीटर एकाऊंट तो पहले ही बंद कर दिया था। अब उन्‍हें अपना फेसबुक एकाऊंट भी बंद कर करना पड़ा है। उनके इन बॉक्‍स में उन्‍हें और उनके परिवार के लिए गालियां और धमकियों के मैसेज आ रहे थे। अब उनके नाम पर फर्जी पेज बनाये जा रहे हैं।
कुछ महीने पहले तमिल लेखक पेरूमल मुरूगन ने ऐसी ही धमकियों के बाद कहा था कि मैं एक लेखक के रूप में मर चुका। उसके बाद उन्‍होंने लिखना बंद कर दिया था।
कभी-कभी सोचता हूं कि अगर कभी मैं ऐसी स्थिति में आ जाऊं तो क्‍या करूंगा। मुझे लगता है कि कोई मुझे मेरे विचारों के लिए, मेरे लिखने के लिए गोली मार दे तो ज्‍यादा अच्‍छा है। हां, यह चुप करा देने से ज्यादा अच्‍छा है। अकेला छोड़ दिये जाने से ज्यादा अच्‍छा है। एक लेखक, एक पत्रकार के लिए अकेला छोड़ दिये जाने से अधिक पीड़ादायक कुछ नहीं हो सकता।
रवीश आज यह पीड़ा झेल रहे हैं। मित्रों, हम शायद और कुछ न कर सकें, लेकिन उन्‍हें अहसास तो करवा ही सकते हैं कि वे अकेले नहीं हैं। आज मुखर नहीं हुए तो एक-एक कर हम सब चुप करवा दिये जाएंगे।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
प्रमोद रंजन
प्रमोद रंजन, फॉरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक हैं।
‪#‎istandwithravishkumar
‪#‎insolidaritywithravishkumar
#istandwithravishkumar