आज हमारे बीच गांधी भी नहीं हैं, विनोबा भी नहीं, नए समय का नया अर्थशास्त्र है, सब कुछ तेजी से बदल रहा
आज हमारे बीच गांधी भी नहीं हैं, विनोबा भी नहीं, नए समय का नया अर्थशास्त्र है, सब कुछ तेजी से बदल रहा
पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में गांधी दर्शन एवं ग्रामीण विकास पर विमर्श
डॉ. अमित कुमार विश्वास
गांधी युग प्रवर्तक, विचारक एवं महात्मा इसीलिए माने गए कि कभी भी उन्होंने लोगों के सामने विचार एकांगी रूप में नहीं रखा। सामने अन्याय हो रहा है, उसको हटाकर न्याय की प्रतिष्ठापना करनी है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है तो उसको मिटाकर सदाचार को प्रतिष्ठित करना है। असत्य बढ़ रहा है तो उसको समाप्त करके सत्य की स्थापना करनी है। ऐसे समय में वे सर्वप्रथम अहिंसा के साधन से ही न्याय की, सदाचार की स्थापना करने के लिए अपनी पूरी शक्ति के साथ प्रयत्न करते रहे।
वर्तमान में सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए क्या गांधीजी के दर्शन आज भी प्रांसगिक हैं, इस पर विमर्श करने के लिए देशभर के गांधीवादी चिंतक इकट्ठा हुए। मौका था ‘गांधी दर्शन एवं ग्रामीण विकास’ विषय पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र तथा मानव संसाधन विकास केंद्र, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का। इसमें ऐसे लोग शामिल थे जिन्होंने गांधीजी के दर्शन को अपनाकर अपनी जीवनशैली से समाज परिवर्तन कर रहे हैं या इस ओर प्रवृत्त कर रहे हैं।
महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो.मनोज कुमार (जो हथियार उठा चुके नवयुवकों को भी गांधी का पाठ पढ़ाकर सहअस्तित्व के साथ जीने के लिए प्रेरित करते हैं) के सयोजकत्व में आयोजित इस 21 दिवसीय पाठ्यक्रम के दौरान 40 विद्वत वक्ताओं ने सभ्यता-संस्कृति, राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मकड़जाल, खादी, ग्रामोद्योग, मजदूर, महिला, गांव, किसान, आदिवासी, सफाई, पर्यावरण, मानवाधिकार सहित कश्मीर समस्या आदि का जिक्र किया जो गांधीजी के अहिंसात्मक तथा सर्वोदय के मार्ग से प्रेरित थे। इस विस्तृत व्याख्यान में उन्होंने गांधीवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद, लोहियावाद, भू-दान से लेकर संपूर्ण क्रांति के नायकों की चर्चा की तथा उनके बीच के अंतरसंबंधों के विषय में बताया।
गोली मारकर, बम-बारूद से कत्ल कर कश्मीर समस्या का हल नहीं होने वाला है। आप एक बम बरसाएंगें, सामने वाला आपसे भी ज्यादा मारक क्षमता वाला बम बरसाएगा, इससे तो दोनों देश तबाह हो जाएंगें और मानवता कराह उठेगी। ऐसे विचार व्यक्त करने वाले 92 वर्षीय प्रखर गांधीवादी चिंतक प्रो.रामजी सिंह भारत और पाकिस्तान के लोगों के एक होने का स्वप्न देखते हैं, किसी भी नाम पर मारकाट इनको बहुत व्यथित करती है। लेकिन उन्हें नौजवानों में अभी उम्मीद की किरण दिखाई देती है, उनसे यह पूछने पर क्या आज के नेताओं और लोगों को देखकर आपको निराशा नहीं होती? तो वे कहते हैं कि सब अपने हैं, लोग भटके गए हैं, अभी लोगों को आज़ादी का मतलब समझ में नहीं आया है और हमारे लोगों ने जीवन को अभी सही से समझा नहीं है, इसलिए इतनी लूट-खसोट मचा रखी है। नवासी वर्षीय समाजसेवी एस.एन. सुब्बाराव (जो कभी चम्बल के लगभग 70 से अधिक डाकुओं का आत्मसमर्पण करवा चुके हैं), कहते हैं कि पूरी दुनिया ही अपना घर है, लड़ाई-झगड़ा और वैर-भाव को मिटाने के लिए हमें कृत संकल्पित होना चाहिए।
गांधीवादी वैज्ञानिक प्रो.टी.करुणाकरन (जो विदर्भ-मराठवाड़ा में आत्महत्या करने वाले कृषकों के पुत्र-पुत्रियों को आत्मनिर्भर और सजग नागरिक बनाने के लिए अभियान चलाया है), ने गांधीजी के हवाले से यह माना कि गांव का आदमी यह महसूस नहीं कर लेता कि मैं स्वतंत्र हूँ तबतक स्वराज का कोई अर्थ नहीं। विनोबा भावे के सहयोगी गांधीवादी चिंतक बाल विजय भाई ने कहा कि गांधी दर्शन का मतलब सर्वोदय से है। आज के बदलते परिवेश में गांवों का सिर्फ विकास ही नहीं अपितु ग्रामों का पुनरुद्धार करना होगा।
भागलपुर विश्वविद्यालय से आए अर्थशास्त्री प्रो.परमानंद सिंह ने गांधीजी के आर्थिक चिंतन पर विस्तृत बात करते हुए कहा है कि अगर हमें समानता, स्वतंत्रता, सम्मान पर आधारित मानव संतति का विकास सुरक्षित रखना है तो हमें गांधी के क्षमतावान मनुष्य, ऊर्जावान नेतृत्व एवं सेवा को समर्पित युवा शक्ति एवं विकेंद्रित ग्रामीण उद्यम पर आधारित प्रबंधन चाहिए जो सही अर्थों में सबका साथ और सबका विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सके। उन्होंने इशारा किया कि गांधी का विकासात्मक प्रतिमान अपने व्यापक फलक पर विकास का ग्रामीण सिद्धांत है जिसे विकास का विकेंद्रीकरण सिद्धांत भी कह सकते हैं। गांधीजी ने अपने विकास प्रतिमान विश्लेषण में अपने अनुभव का सहारा लेकर एक ऐसे विकास अर्थशास्त्र की रचना करते हैं जिसके केंद्र में 125 करोड़ भारतीयों के लिए रोजगार का संकल्प है।
कनेरी मठ के प्रमुख स्वामी काट सिद्धेश्वर महाराज ने भारतीय संस्कृति पर गहराते संकट पर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि स्वतंत्रता से पहले हमारा घर और समाज स्वतंत्र था लेकिन देश परतंत्र था। आज देश स्वतंत्र हो गया है लेकिन घर व समाज परतंत्र हो गया है। कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया गया है। विद्या की बिक्री की जा रही है। हम पारंपरिक खेल, संगीत आदि से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे समय में स्वावलंबन और आत्मनिर्भर बनने के लिए हमने कनेरी मठ में गुरुकुल शिक्षा पद्धति को लागू किया है जिसके तहत बच्चों को 14 प्रकार की विद्या, 64 कलाओं में पारंगत किया जाता है। गांधी के सपनों का भारत के निर्माण करने के लिए हमें भयमुक्त युवा पीढ़ी को तैयार करने की जरूरत है।
पाठ्यक्रम में उभरे विचारों का लब्बोलुआब यही था कि आज जयप्रकाश जी हमारे बीच नहीं हैं। गांधी भी नहीं हैं, विनोबा भी नहीं। नए समय का नया अर्थशास्त्र है, सब कुछ तेजी से बदल रहा है। नए समय में नए प्रकार की चुनौतियां/समस्याएं आ खड़ी हुई हैं। नई प्रकार की लड़ाई को हम नए तरीके से लड़ने होंगे। कार्लाइल के शब्दों में तो यही कहा जा सकता है कि महाराणा प्रताप की तलवारें संग्रहालय में शोभा की वस्तु हो सकती हैं न कि नए प्रकार की जंग को जीती जा सकती है। आज भूमंडलीकरण के इस दौर में साम्राज्यवादी ताकतें राष्ट्र-राज्य के अंत की घोषणा कर रही हैं। उनका मानना है कि इतिहास का अंत हो चुका है, राष्ट्र-राज्य का जमाना लद गया और याराना पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटिलिज्म) का दौर चल रहा है, विश्वयारी का नया युग आया है। दरअसल यह एक नवसाम्राज्यवादी साजिश है, जिसकी आड़ में दुनिया में बाजारवाद एवं उपभोक्तावाद का विचार फैलाया जा रहा है। साम्राज्यवादी ताकतों की यही कोशिश रहती है कि लोग क्षणिक भौतिक-सुखों के नशे में डूबे रहें। साथ ही ये चाहते हैं कि दुनिया की सभी देशों की सरकारें साम्राज्यवाद-पूँजीवाद के दलालों के हाथों में रहें, न कि राष्ट्रवादी-जनवादी नायकों के हाथों। ये ताकतें अदृश्य तरीके से बुद्धिजीवियों को भी अपना गुलाम बनाने की पुरजोर कोशिश करने में जुटे हैं। समाजवादी विचारक किशन पटनायक के शब्दों में, ‘जिन अधिकारों को हथियाने के लिए ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ को इतने सारे युद्ध करने पड़े थे, उन सारे अधिकारों को बेचने के लिए आज दिल्ली एक बाजार बना हुआ है।’ ऐसे में कहा जाना चाहिए कि नवसाम्राज्यवाद से मुकाबला करने और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की रक्षा के लिए भी गांधीय राष्ट्रवाद की जरूरत है। जिस प्रकार सन् 74 के आंदोलन के दौरान ‘अंधेरे में एक प्रकाश, जयप्रकाश’ का उदघोष हुआ ठीक उसी प्रकार लोग आज फिर एक बार अंधेरे में किसी नये ‘प्रकाश’ की खोज में निकल पड़े हैं और यकीन मानिए कि आज के नवयुवक जरूर इस बात को समझ कर गांधीवादी मूल्यों को अपनाकर आने वाली चुनौतियों का सामना करते हुए इसका हल ढूंढेंगे।
101 घंटे चले विमर्श में प्रो.नंदकिशोर आचार्य ने ‘अहिंसा का दार्शनिक आधार’ तथा ‘गांधीय आर्थिक सिद्धांत’, प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने ‘ग्राम विकास की शोध प्रविधि’, ‘यथार्थ आधृत सिद्धांत’, एस.एन. सुब्बाराव ने ‘गांधी कैसे गांधी बने’, अरुण कुमार त्रिपाठी ने ‘वैश्वीकरण की वर्तमान चुनौतियां’ तथा ‘गांधी की संचार दृष्टि’, प्रो.आर.पी. द्विवेदी ने ‘सात सामाजिक पाप का सामाजिक विश्लेषण’, प्रो.रामजी सिंह ने‘सत्याग्रह संघर्ष और सेवा’, ‘भूमंडलीकरण और गांधी’, ‘गांधी के बाद गांधी विचार’, प्रो.मनोज कुमार ने ‘समकालीन चुनौतियां और गांधी दर्शन’, प्रो.एस.एन. पांडे ने ‘गांधी और तुलसी’, प्रो.पी.सी. जोशी ने ‘आपदा और ग्रामीण विकास’, प्रो.अवधेश प्रधान ने ‘गांधी की विकास दृष्टि’, ‘गांधी की सौंदर्य दृष्टि’, ‘गांधी की भाषा दृष्टि, प्रो.आनंद कुमार ने ‘गांधी की दिशा और हमारा राष्ट्रनिर्माण-कुछ अंतर्विरोध, कई संभावनाएं’, ‘21वीं सदी के भारतीय किसानों के सवाल और गांधी का ग्राम स्वराज’, ‘चंपारण से शुरु एक प्रतिरोध पद्धति के सौ बरस’, प्रो.टी. करुणाकरन ने ‘वर्तमान आर्थिक विकास की चुनौतियां एवं गांधी विमर्श’, प्रो.परमानन्द सिंह ने ‘विकास का विभ्रम और गांधीय विकल्प’,‘आर्थिक विकास का गांधीवादी प्रतिमान’, ‘किन्स का क्रांतिकारी अर्थशास्त्र, वैश्वीकरण और गांधी’, लक्ष्मीदास ने ‘सहकारिता और गांधी’, डॉ.वी. मिश्रा ने ‘सूक्ष्म योजना एवं परियोजना निर्माण’ एवं ‘ग्रामीण विकास के लिए परियोजना कैसे बनाएं’, प्रो.प्रदीप देशमुख ने ‘साहित्य पुनरावलोकन’, डॉ.जॉन मीनाचेरी ने ‘शोध पद्धति और शोध उपकरण’ तथा ‘ग्रामीण विकास शोध’, प्रो.अजीत कुमार ने ‘ग्राम विकास की सैद्धांतिकी’ तथा ‘ग्राम विकास के अंतर्विरोध’, प्रो.पी.वी. सेनगुप्ता ने ‘समाज कार्य की सैद्धांतिकी’, डॉ.शुक्ला मोहंती ने ‘कृषि एवं ग्रामोद्योग’तथा ‘ग्रामीण विकास की गांधीय दृष्टि’, प्रो.पूर्णिमा कुमार ने ‘गांधी का राजनैतिक दर्शन’ दीपंकर श्री ज्ञान ने ‘अंतिम व्यक्ति का सत्य’,प्रो.विद्युत चक्रवर्ती ने ‘गांधी की संकल्पनात्मक समझ’ तथा ‘ग्रामीण विकास की गांधीय दृष्टि’, प्रो.दीपक मलिक ने ‘गांधी का मार्क्सवादी विश्लेषण’, प्रो.आनंद प्रकाश ने ‘सहभागी शोध प्रविधि’ तथा ‘आख्यान विश्लेषण विधि’, प्रो.अभय मुडे ने ‘ग्रामीण विकास एवं स्वास्थ्य’,प्रो.शंभू गुप्त ने ‘साहित्य में गांधी’, प्रो.आनंद वर्धन शर्मा ने ‘यंग इंडिया एवं गांधी साहित्य’, डॉ.गोपाल कृष्ण ठाकुर ने ‘गांधी एवं शिक्षा दर्शन’, डॉ.नृपेन्द्र प्रसाद मोदी ने ‘दक्षिण अफ्रीका में गांधी’, डॉ.गिरिराज किशोर ने ‘ट्रस्टीशिप’, बसंतभाई ने ‘ग्राम विकास और गांधी के प्रयोग’, जे.एल. चौधरी ने ‘सामुदायिक विकास एवं गांधी दर्शन’, अशोक कुमार ने ‘गांधी दर्शन तथा ताना भगत’ तथा ‘पंचम अनुसूची के पालन की वास्तविकता’, और डॉ.एम.एल. कासारे ने ‘ग्राम विकास में गांधी और अंबेडकर की देन’ विषय पर विचार व्यक्त किए।


