आजादी के बाद तिगुनी बढ़ी आबादी
आजादी के बाद तिगुनी बढ़ी आबादी

11 जुलाई, विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष (Special on 11th July, World Population Day)
आजादी के बाद देश की जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है। मसलन 64 वर्ष पूर्व व आज की जनसंख्या में तीन गुना अंतर आ गया है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश की जनसंख्या अगर तेजी से बढ़ती रही, तो देश वर्ष 2030 तक चीन से आगे हो जाएगा। भारत देश में जनसंख्या वृद्धि का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा और गरीबी है। गरीबी और अशिक्षा को दूर करने के लिए केन्द्र सरकार हर साल करोड़ो-अरबों रूपए पानी की तरह बहा रही है, लेकिन कई जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की वजह से सरकार की राशि व महत्वपूर्ण योजनाओं का धरातल पर सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
कब और क्यों मनाया जाता है विश्व जनसंख्या दिवस?
दरअसल, वर्ष 1987 से हर साल 11 जुलाई को जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। वैसे तो भारत देश में हर दिन को किसी न किसी दिवस के रुप में मनाया जाता है, जनसंख्या दिवस भी उन्हीं में से एक है।
भारत में विश्व की 17 फीसदी आबादी निवास करती है, जबकि उनके रहने के लिए विश्व की 3 फीसदी जमीन ही है। जनसंख्या वृद्धि का वास्तविक आकलन करने के लिए भारत में जनगणना-2011 की शुरुआत हो चुकी है, इसका शुभारंभ 10 अप्रैल 2010 को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी से किया गया है। आजादी के बाद से यह सातवीं और देश में होने वाली 15वीं जनगणना है।
भारत में सबसे पहले जनगणना कब हुई? When was the first census conducted in India?
आबादी की गणना करने के लिए भारत में सबसे पहले सन् 1872 में जनगणना हुई थी। जिसका मुख्य उद्देश्य था कि जनगणना से इंसान की संख्या के अलावा देश की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक एवं शैक्षणिक स्थिति की भी गणना हो सके। इसके बाद हर दस साल में जनगणना हो रही है।
जनगणना के मुताबिक, एक मार्च 2001 को भारत की जनसंख्या एक अरब 2 करोड़ 80 लाख (532.1 करोड़ पुरुष और 496.4 करोड़ स्त्रियां) थी। वहीं भारत के पास 1357.90 लाख वर्ग किलोमीटर भू-भाग है, जो विश्व के कुल भू-भाग का मात्र 2.4 प्रतिशत है फिर भी विश्व की 16.7 प्रतिशत आबादी का भार उसे वहन करना पड़ रहा है।
बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत की आबादी करीब 23 करोड़ 84 लाख थी, जो बढ़कर इक्कीसवीं शताब्दी में एक अरब 2 करोड़ 80 लाख तक पहुंच गई।
जनसंख्या वृद्धि का एक कारण यह भी माना जा सकता है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में आज 50 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। इसके अलावा देश में हर साल लगभग 35 लाख लड़कियाँ किशोरावस्था में ही माँ बन जाती हैं।
भारत में आंध्र प्रदेश ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां जनसंख्या नियंत्रित करने की दिशा में सरकार ने विशेष पहल की है और वह काफी हद तक सफल भी रहा है। इधर, भारत में आबादी इस तेजी से बढ़ रही है कि हर साल हम जनसंख्या की दृष्टि से आस्ट्रेलिया जैसे देश का निर्माण कर रहे हैं और दस सालों में ब्राजील का।
भारत के कई राज्यों की जनसंख्या विश्व के अनेक देशों से अधिक है। जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश और ब्राजील लगभग बराबर हैं। इसी तरह बिहार की जनसंख्या जर्मनी से अधिक है। जबकि पश्चिम बंगाल जनसंख्या के हिसाब से वियतनाम के बराबर है।
दो दशकों में जनसंख्या की वृद्धि दर सबसे अधिक नागालैंड में रही है। इस राज्य में 1981-91 के बीच 56.08 फीसदी की दर से वृद्धि हुई थी, जो कि 1991-2001 में बढ़कर 64.41 फीसदी हो गई। उत्तर प्रदेश में यह वृद्धि दर 1981-91 में 25.55 फीसदी रही, वहीं 1991-2001 में 25.80 फीसदी तक पहुंच गई।
इसी तरह बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर 1981-91 में 23.38 फीसदी थी, जो 1991-2001 में 28.43 फीसदी तक आ पहुंची। वहीं दिल्ली में जनसंख्या सन् 1975 से सन् 2010 तक में दुगनी से भी अधिक हो गई है।
वर्ष 1991-2001 की जनगणना अवधि के दौरान केरल में सबसे कम 9.43 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। दिल्ली में अत्यधिक 47.02 प्रतिशत, चंडीगढ़ में 40.28 प्रतिशत और सिक्किम में 33.06 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई। इसके मुकाबले, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में वर्ष 1991-2001 के दौरान जनसंख्या वृद्धि काफी कम रही। हरियाणा उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, नागालैंड, मणिपुर, गुजरात, दमन और दीव तथा दादरा और नागर हवेली आदी को छोड़कर शेष सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में वर्ष 1991-2001 के जनगणना दशक के दौरान पिछले जनगणना दशक की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर कम दर्ज की गई, जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जनगणना दशक के दौरान जनसंख्या के प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई, यह भारत की कुल आबादी का लगभग 32 प्रतिशत है।
महापंजीयक कार्यालय के आंकड़ों पर गौर करे तो, लिंगानुपात में सबसे अधिक फर्क संघ शासित प्रदेश दमन और दीयू में है, जहां प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 615 है। दादरा और नगर हवेली में लिंगानुपात 775 है। वहीं, केरल में प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1,084 दर्ज की गई है। पुडुचेरी में लिंगानुपात 1,038 है। चिंताजनक तथ्य यह है कि छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों में लिंगानुपात में आजादी के बाद से सर्वाधिक गिरावट देखी गई है। पिछली गणना में यह लिंगानुपात 927 था, जो अब घटकर 914 हो गया है।
सरकार द्वारा साक्षरता की स्थिति को लेकर भी आंकड़े जारी किए गए है, जिसकी बात करें तो अब देश में 74 फीसदी आबादी पढ़ना-लिखना जानती है। साक्षर लोगों की संख्या में बीते एक दशक में 38.8 फीसदी और साक्षरता की दर में 9.2 फीसदी का इजाफा हुआ है। साक्षर पुरुषों की संख्या 44.42 करोड़ और साक्षर महिलाओं की संख्या 33.42 करोड़ है।
बीते एक दशक में साक्षर पुरुषों की संख्या में 31 फीसदी, जबकि साक्षर महिलाओं की संख्या में 49 फीसदी का इजाफा हुआ है। उत्तर प्रदेश की आबादी सबसे ज्यादा 19.95 करोड़ है, जबकि लक्षद्वीप में आबादी सबसे कम यानी 64,429 है। सर्वाधिक आबादी वाले पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र 11.23 करोड़, बिहार 10.38 करोड़, पश्चिम बंगाल 9.13 करोड़ और आंध्र प्रदेश 8.46 करोड़ शामिल है।
दूसरी ओर अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने के बाद भारत देश की जनसंख्या में साल दर साल भारी इजाफा हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं, जो जान बूझकर कई बच्चे पैदा करते हैं। वे मानते हैं कि यदि एक या दो बच्चे पैदा करते हैं और उसकी किसी बीमारी से मौत हो जाती है तो फिर मुश्किलें हो जाएगी। वे बच्चे पैदा होने की प्रकृति को भगवान का उपहार मानते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि ऐसे लोगों को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारी उचित सलाह देना भी जरूरी नहीं समझते। वहीं लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार से मोटी रकम लेने वाले सामाजिक संगठन केवल कागजों में ही अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
भारत में ‘परिवार नियोजन’ कार्यक्रम की शुरुआत कब हुई? When was the 'Family Planning' program started in India?
सन् 1970 में जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए इंदिरा गाँधी की सरकार ने ‘परिवार नियोजन’ कार्यक्रम की शुरुआत की, यह कार्यक्रम स्वास्थ्य अमले की लापरवाही के चलते पूरी तरह से असफल रहा। इस असफलता के बाद सरकार ने बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जाहिर करते हुए सन् 2006 में जनसंख्या स्थिरता कोष भी बनाया, जिसका हाल भी परिवार नियोजन कार्यक्रम की तरह हुआ।
दोनों क्रार्यक्रमों में असफलता मिलने के 2 साल बाद सन् 2008 में सरकार ने संतुष्टि परियोजना की शुरूआत की, लेकिन इस कार्यक्रम का अपेक्षित परिणाम अब तक सामने नहीं आया है।
जनसंख्या वृद्धि दर को घटाने या जनसंख्या को नियंत्रित करने सरकार योजनाएं तो बना रही है, लेकिन उन योजनाओं का सरकारी तंत्र में ऊपर से नीचे तक बैठे लोग ही बंटाधार कर रहे हैं। वे नहीं चाह रहे कि सरकार किसी भी स्थिति में जनसंख्या को नियंत्रित कर सके। हाल ही में हुई जनगणना के दौरान कई सरकारी मुलाजिमों ने घर बैठकर अपनी मनमर्जी से डाटा शीट भर दी है, जिससे जनसंख्या का वास्तविक आंकड़ा भी सरकार तक नहीं पहुंच पा रहा है।
सरकार की व्यवस्था में कई तरह की खामियां हैं, जिसके कारण जनसंख्या वृद्धि दर काफी हद तक नियंत्रित नहीं हो पा रही है।
बहरहाल, जनसंख्या वृद्धि को रोकने में अगर हम असफल रहते हैं, तो आगे चलकर हमारी स्थिति क्या होगी? इसकी कल्पना भी दुःस्वप्न के समान है।
राजेन्द्र राठौर
World Population Day in Hindi (विश्व जनसंख्या दिवस)
World Population Day is an annual event, observed on July 11 every year, which seeks to raise awareness of global population issues. The event was established by the Governing Council of the United Nations Development Programme in 1989.


