आप का गृहयुद्ध- केजरीवाल ने किला जीता, शेर गँवाकर
आप का गृहयुद्ध- केजरीवाल ने किला जीता, शेर गँवाकर
आप का गृहयुद्ध- जो आरोप योगेंद्र यादव पर लगाए गए हैं ठीक उसी तरह के आरोप अन्ना आंदोलन के समय से ही कई लोगों पर लगाकर किनारे किया गया। चाहे स्वामी अग्निवेश हों या मुफ्ती शमून अहमद काज़मी। सब पर एक ही तरह के आरोप और एक ही तरीका स्टिंग अपनाय़ा गया।
एनजीओ के प्रभुत्व वाली आम आदमी पार्टी में उठापटक तेज हो गई है, आप का गृहयुद्ध सतह पर आ गया है। पार्टी के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति से निकाल दिया गया है। बताया जाता है कि प्रशांत-योगेद्र को पार्टी की शीर्ष कमेटी से बाहर करने का फैसला बहुमत के आधार पर हुआ। केजरीवाल एंड कंपनी की लाइन के विरोध में 8 वोट पड़े बताए गए और पक्ष में 11 वोट। आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति से बाहर निकालने का फैसला लिया जा चुका है अब निष्कासन की तैयारी है। उन पर आरोप था कि वह अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध साजिश रच रहे थे।
इस निष्कासन से पहले आप नेता संजय सिंह, मीडियाकर्मी से राजनेता बने आशुतोष और आशीष खेतान और कोई दिलीप पांडे ने सार्वजनिक रूप से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पर छींटाकशी की और ठीक उसी तरह से बयानबाजियां कीं जिस तरह कांग्रेस में राहुल-सोनिया के गुलाम और भाजपा में मोदी के गुलाम करते हैं। इस अंदरूनी संघर्ष की जो परिणिति हुई उसने “आप” को भी सोनिया-राहुल की कांग्रेस और मोदी की भाजपा की कतार में लाकर खड़ा कर दिया।
प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव सिर्फ आप के संस्थापक सदस्य नहीं थे बल्कि एक अराजक जमावड़े को एक वैचारिक कवच पहनाने के लिए काम करने वाले आधार स्तंभ थे। केजरीवाल को शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि उन्होंने क्या खोया है। केजरीवाल के सिपाहियों संजय सिंह, कुमार विश्वास, मनीष सिसौदिया, आशुतोष या आशीष खेतान की पब्लिक इमेज भूषण-यादव के मुकाबले क्या है, कहने की आवश्यकता नहीं है।
जो सर्वाधिक चिंताजनक बात इस प्रकरण के दौरान उभरी है वह यह है कि आशुतोष और आशीष खेतान ने पत्रकारिता के पेशे को कलंकित करने का काम किया है। एक तरफ आशुतोष अपनी किताब के विमोचन के समय कहते हैं, उन्हें एक राजनेता नहीं बल्कि एक पत्रकार के रूप में ही याद किया जाए और दूसरी तरफ अपनी पार्टी के कद्दावर नेताओं के स्टिंग ऑपरेशन्स पर खुलकर अनैतिक होकर अरविन्द केजरीवाल के लिए बैटिंग करते हैं। हालाँकि आशुतोष और आशीष खेतान को पत्रकार न कहकर मीडियाकर्मी ही कहा जाए तो ज्यादा न्यायोचित होगा। देखने वाली बात यह है कि तीन मार्च को जब यह विवाद तेज हुआ ठीक उसी समय संसद् में मोदी सरकार की पहली बार बड़ी हार हो रही थी, राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में विपक्ष का संशोधन प्रस्ताव पास हो गया, लेकिन इतनी बड़ी खबर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की सुर्खी नहीं बनी बल्कि मीडियापुत्र आम आदमी पार्टी की आपसी कलह सुर्खी बन रही थी। जाहिर है यह मीडिया प्रसूत आप की मीडिया मंडली का ही कमाल था।
सवाल यह है कि अरविन्द केजरीवाल को प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव से परेशानी क्या थी? दरअसल अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और संजय सिंह का गुट आप पर हावी है और इस ग्रुप के कई एनजीओ बताए जाते हैं। यह ग्रुप धीरे-धीरे करके राजनीतिक सोच-समझ वाले लोगों का इस्तेमाल करके उन्हें डस्टबिन में फेंकता जा रहा है। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव का पहले से राष्ट्रीय स्तर का कद रहा है, वो कभी भी केजरीवाल या आप के मंच के मोहताज नहीं रहे हैं, एनजीओ गैंग को इन दोनों की यही खासियत परेशान कर रही है।
मजे की बात यह है कि जिस जनलोकपाल को मुद्दा बनाकर आम आदमी पार्टी बनी उस जनलोकपाल का ड्राफ्ट योगेंद्र यादव ने तैयार किया है। जिस अंबानी के विरुद्ध ईमानदारी का ढोल पीटा गया, उस अंबानी के विरुद्ध सारे बड़े मामले प्रशांत भूषण ने उठाए और कानूनी लड़ाई लड़ी। इन दोनों ही मामलों में अरविन्द केजरीवाल या उनके समर्थक एनजीओ गैंग या मीडियाकर्मियों का क्या रोल है, किसी को मालूम हो तो बताया जाए। हां इतना जरूर लोगों को मालूम है कि आशुतोष अंबानी के मुलाजिम रहे हैं। स्वयं अरविन्द केजरीवाल अपने लगभग एक दशक की नौकरी के कार्यकाल में यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि उन्होंने कभी 10 पैसे का भी काला धन या भ्रष्टाचार पकड़ा हो। अब भूषण और यादव से केजरीवाल की खुन्नस की असल वजह समझी जा सकती है।
समाजवादी जन परिषद् की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य अनुराग मोदी लिखते हैं- जब आम आदमी पार्टी बन रही थी तब योगेन्द्र यादव ने सुनील भाई (समाजवादी जन परिषद् के दिवंगत महासचिव) से कहा : आपकी जरूरत है, पार्टी बन गई है, माहौल है, हमें पॉलिटिकल लाइन देने के लिए शामिल होना है! इस पर सुनील भाई ने कहा था, पहले राजनैतिक दिशा तय होती है, फिर पार्टी बनती है; यह उल्टी गंगा नहीं बह पाएगी! और, वही हुआ। सुनील भाई आज हमारे बीच नहीं है।
सुनील भाई ने जो कहा वह आज साबित हो गया। नई राजनीति करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी के चेहरे का नकाब कुछ जल्दी ही उतर गया, जिसकी उम्मीद स्वयं अरविन्द केजरीवाल ने भी न की होगी। उल्टी गंगा बहाने की कोशिशें नाकामयाब हुई हैं। अब यदि आप को वास्तव में स्वयं को एक राजनीतिक दल के रूप में साबित करना है तो उसे अपनी राजनैतिक दिशा तय करनी होगी, वरना अरविन्द केजरीवाल और आप के खाते में एक प्रचण्ड बहुमत वाले दल के रूप में पाँच साल मुख्यमंत्री बने रहने के अलावा कोई उपलब्धि नहीं होगी। इतिहास उन्हें कूड़े के ढेर पर फेंक देगा।
अरविन्द केजरीवाल खुश हो सकते हैं कि उन्होंने उनसे नाइत्तेफाकी रखने वाले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया है लेकिन वह ये भूल गए हैं कि उन्होंने किला तो जीत लिया है लेकिन शेरों को गँवाकर। उधर प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव अंदरूनी लड़ाई में हार भले ही गए हों लेकिन वो अपने मकसद में कामयाब रहे। केजरीवाल के फासिस्ट-तानाशाह चेहरे पर पड़ा आम आदमी का नकाब खींचकर उतारने में वो कामयाब रहे। अतीत उठाकर देखिए जो आरोप योगेंद्र यादव पर लगाए गए हैं ठीक उसी तरह के आरोप अन्ना आंदोलन के समय से ही कई लोगों पर लगाकर किनारे किया गया। चाहे स्वामी अग्निवेश हों या मुफ्ती शमून अहमद काज़मी। सब पर एक ही तरह के आरोप और एक ही तरीका स्टिंग अपनाय़ा गया। लेकिन केजरीवाल भूषण-यादव की जोड़ी से मात खा गए।
इस प्रकरण का एक फायदा यह हुआ कि जनपक्षधर मोर्चा बनने की राह प्रशस्त हुई है, केजरीवाल को मोदी का फर्जी विकल्प बनाने का संघपरिवारी मंसूबा ध्वस्त हो गया है। दरअसल कॉरपोरेट फंडिंग से चलने वाले भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन और आम आदमी पार्टी ने वैकल्पिक राजनीति के प्रयासों को भारी नुकसान पहुँचाया है। इस संदर्भ में वह मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से ज्यादा खतरनाक है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब मोदी सरकार को टक्कर देने के लिए एक जनपक्षधर मोर्चा सही आकार लेगा।
कभी अरविन्द केजरीवाल के समर्थक रहे मीडिया क्रटिक - जगदीश्वर चतुर्वेदी की इस टिप्पणी से असहमत होने की कोई वजह बनती नहीं है- केजरीवाल ने योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण की " आप" की सर्वोच्च कमेटी से विदाई करके मैसेज दिया है कि अब प्रतिक्रियावादी रुझानों की ओर "आप" जा सकती है ! यह "आप" की ईमानदार राजनीति के दाएं बाजू की ओर जाने का संकेत है !
अमलेन्दु उपाध्याय


