पलाश विश्वास

नोटबंदी की वजह से बाजार में प्रचलित सारे नोट बैंकों में जमा हो जाने के बाद बैंकों के लिए भारी संकट खड़ा हो गया है। नोटबंदी और जीएसटी की दुहरी मार की वजह से बैंको से यह भारी नकदी निकल नहीं रहा है, जिसे निकालने के लिए सीधे बचत खाते पर हमला बोल दिया है कारपोरेट हिंदुत्व की जनविरोधी सरकार ने। बीमा बाजार से लिंकड है। अल्प बचत योजनाओं के ब्याज में पहले ही कटोती कर दी गयी है। अब बचत खाते पर इस कुठाराघात के बाद बचत खाते के ब्याज पर जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर बेरोजगार लोगों के लिए किसानों की तरह खुदकशी के अलावा बाकी कोई विकल्प बचा नहीं है।

संसद सत्र के दौरान इतने बड़े जनविरोधी राजकाज के खिलाफ सन्नाटा बताता है कि इस देश में जो करोड़पति नहीं हैं, उन्हें जीने का कोई हक नहीं है।

फिर दर्द होता है तो चीखना मजबूरी भी है

बहुजन, अल्पसंख्यक स्त्री उत्पीड़न ताड़न वध संस्कृति के मनुस्मृति नस्ली रामराज्य में भुखमरी और बेरोजगारी का विकसित डिजिटल इंडिया की मुनाफावसूली के सांढो़ं और भालुओं की मुनाफावासूली अर्थव्यवस्था अनंत बेदखली, निरंतर नरसंहार के हजारों आर्थिक सुधार के बावजूद नोटबंदी औरजीएसटी की वजह से मंदी का शिकार है। इस मंदी से उबरने के लिए वित्त और रक्षा मंत्रालयों के कारपोरेट वकील का नूस्खा है मरों हुओं पर निरंतर कुठाराघात और लाशों के बाल नोंचर कर्ज का बोझ हल्का करना ताकि लाखों करोड़ का न्यारा वारा पनामा पतंजलि कारोबार जिओ जिओ डिजिटल इंडिया मालामाल लाटरी बन जाये मुकम्मल कैसिनो।

करोड़ों छोटे व्यापारियों पर कॉर्पोरेटीकरण का संकट

डिजिटल इंडिया जिओ जिओ ओप्पो ओप्पो है तो चीन के खिलाफ अंखड युद्ध मंत्र जाप, होम यज्ञ वैदिकी अनुष्ठान के बावजूद उत्तराखंड में चीनी घुसपैठ पर मौन है और कहा जा रहा है कि यह मामूली दिनचर्या है भारत चीन सीमा की।

असंवैधानिक आहलूवालिया समय के बाद अब डोभाल राजनय है और विदेश मंत्रालय शोपीस है।

हवाई उड़ान का अमेरिकी इजराइली राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्रता है और जयश्रीराम राष्ट्रवाद की पनामा पतंजलि सुनामी का विशुध सवर्ण हिंदुत्व समय है।

जनता राष्ट्रद्रोही है और लोकतंत्र राष्ट्रद्रोह है। साहित्य संस्कृति इतिहास निषिद्ध है तो अभिव्यक्ति कारपोरेट।

अच्छे दिन : खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकुशी का मौसम

इस खंडित पहचान और खंडित राष्ट्रवाद की कोई नागरिकता नहीं होती है।

हम राष्ट्रवाद का ढोल नगाड़ा चाहे जितना पीटे, सच यही है कि अंग्रेज जो खंडित देश हमारे लिए छोड़ गये हैं, उस टुकड़ा-टुकड़ा करने का राष्ट्रवाद हम जी रहे हैं।

अब भी हम कोई राष्ट्र नहीं है।

डिजिटल इंडिया का मुक्तबाजार अब विकसित राष्ट्र है और विकसित राष्ट्र में बैंकों में जमा पर ब्याज के बदले टैक्स देना पड़ा है। वही हो रहा है। बहुत जल्दी बैंकों में जमा रखने के लिए आपको बैंको को भुगतान करना होगा। ब्याज की भूल जाइये

जीएसटी : भाजपा और आरएसएस के लोग मरते लोगों को फिर से एक बार लड्डू खिलायेंगे

भविष्यनिधि का ब्याज चौदह प्रतिशत से गिरकर आठ फीसद हो गया है तो इस हिसाब से बैंकों में बचतखातों पर ब्याज तो शून्य हो जाना चाहिए।

हुआ नहीं तो खैर मनाइये। हो गया तो जयश्रीराम का नारा लगाकर अपने को देशभक्त साबित करने में देर न लगाइये, वरना राष्ट्रद्रोही समझे जाओगे। मारे जाओगे।

बैंकों के बचत खाते में एक करोड़ जमावाले कितने लोग हैं और कौन लोग हैं, पनामा सूची की तरह यह जानकारी सार्वजनिक हो जाये तो कोई नवाज शरीफ जैसा धमाका होने वाला नहीं है।

लम्पट विकास के दौर में खेती और किसानी - दशा और दिशा

भारत में करोड़पति और अरबपति कितने लोग हैं और उनमें कितने किसान, कितने मेहनतकश, कितने बहुजन, कितने अल्पसंख्यक, कितने आदिवासी, कितने पिछड़े और कितने दलित हैं, यह आंकड़ा मिल जाये, तो रामराज्य के सुनहले दिनों का तिलिस्म खुल जाये।

बहरहाल भारतीय जनता के वोटों से जनप्रतिनिधि ग्राम प्रधान, कौंसिलर, विधायक, सांसद, मंत्री, वगैरह वगैरह का समूचा राजनीतिक वर्ग करोड़ पतियों और अरबपतियों का है और विकसित मुक्तबाजार राष्ट्र का असल चेहरा यही है, जिसमें खेत खलिहान, जल, जंगल, जमीन, गांव, देहात, जनपद सारे के सारे सिरे से गायब है।

3 साल के 7 हजार सुधारों के बावजूद संविधान कितना बचा है, लोकतंत्र कितना बचा है और कानून का राज कितना बचा है?

जाहिर है कि बंगाल और केरल के अलावा संसद सत्र जारी रहने के बावजूद कहीं कोई हल्ला इसे लेकर उसी तरह नहीं हो रहा है जैसे दार्जिलिंग को लेकर भारत सरकार, भारत की सत्ता राजनीति और संसद मौन है।

फिर नीतीशे कुमार का दावा सही है कि प्रधान स्वयंसेवक को चुनौती देना वाला कोई माई का लाल हिंदी हिंदू हिंदुस्तान के इस अखंड हिंदुत्व समय में नहीं है। 56 इंच का सीना 16 मई, 2017 के बाद अब कुल कितना इंच चौड़ा हो गया है कि उसके घेरे में मुंह छुपाने के लिए हर क्षत्रप का मन आकुल व्याकुल है, यह भी शायद नीतीशे कुमार बता सकेंगे।

आरएसएस और मोदी सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ी

बहरहाल बुनियादी जरुरतें और बुनियादी सेवाएं बाजार के हवाले करने वाली, सारे कायदे कानून खत्म करने वाली , अनंत बेदखली के डिजिटल इंडिया की सरकार जय श्रीराम के नारे के साथ अपने अश्वमेध अभियान को कैसे नरसंहार उत्सव में बदल रही है, कल एक झटके के साथ बैंक बचत खाते पर ब्याज एक करोड़ से कम जमाराशि पर चालू चार प्रतिशत के बदले साढ़े तीन प्रतिशत करने और रसोई गैस सब्सिडी खत्म करने के लिए हर महीने सब्सिडी वाली रसोई गैस की कीमत चार रुपये की दर से बढाने के मरों हुओं पर कुठारा घात की कार्रवाई से साफ जाहिर है।

जी नहीं, इस पर ताज्जुब मत कीजिये। मुक्तबाजार की महिमा में मनुष्य सिर्फ आधार नंबर है। इस नंबर के बिना उसका कोई वजूद नहीं है।

नोटबंदी- हर मौत मोदी जी के राजनैतिक मौत की कड़ी बनेगी, जब गरीब की आह नारे में तब्दील हो जाएगी

हमारे बच्चों के पास आधार नंबर नहीं है, तो वह कभी भी कहीं भी मुठभेड़ या लिंचिंग में मारा जायेगा और जिंदा भी रहा तो पुरखों की संपत्ति से बेदखल हो जायेगा क्योंकि उसका बाकी कोई पहचान आधार के सिवाय मान्य नहीं है।

आप उसे कुछ भी हस्तांतरित नहीं कर सकते।

आदिवासियों के खिलाफ युद्ध क्यों जारी है? अब क्या ताजमहल भी तोड़ देंगे?

आधार नंबर हुआ तो जिस सब्सिडी के हस्तातंरण के ट्रिकलिंग विकास के लिए आधार औचित्य बताया गया है, वह सब्सिडी अब पूरी तरह खत्म है। बाकी रोजगार की कोई सूरत नहीं है। भविष्य अंधकार है। नीले शार्क के शिकार का खेल ही उसका बचा खुचा जीवन है या फिर बजरंगी सैनिक बनकर लिंचिंग उसका एकमेव रोजगार है।

भालुओं और सांढों के उछलकूद की अर्थव्यवस्था नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार से मंदी का शिकार है। पंद्रह लाख बेरोजगार सिर्फ नोटबंदी की वजह से। अमेरिका परस्ती के विनिवेश, निजीकरण और आटोमेशन से बाकी फिजां छंटनी छंटनी है। जीएसटी के कारपोरेट एकाधिकार के बाद कारोबार में कितने आम लोग जिंदा बचेंगे, कहना मुश्किल है। उत्पादन प्रणाली ठप है।

विकास का मतलब बाजार का अनंत विस्तार।

मोदी सरकार के तीन साल : प्रजातंत्र सिकुड़ रहा, मीडिया नहीं रहा प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ

बाजार का मतलब निरंकुश मुनाफावसूली है।

हिंदुत्व के इस कारपोरेट राज में जयश्रीराम के नारों के साथ मुनाफावसूली का चाकचौबंद इंतजाम ही राजकाज और वित्त प्रबंधन, राजनय है।

डोकलाम पर चीन के मुकाबले युद्ध की चुनौती खड़ा करने के बाद देहरादून से सिर्फ 140 किमी दूर उत्तराखंड के चमोली जिले में 25 जुलाई को बाराहोती में चीनी घुसपैठ पर अखंड मौन है डोभाल राजनय है। भारत चीन सीमा के इस इलाके में 1962 की लड़ाई के वक्त भी चीन का दावा नहीं था। सन् 2000 के भारत चीन द्विपक्षीय समझौते के बाद इस इलाके की सुरक्षा भारतीय अर्द्ध सैनिक बल भारत तिब्बत सीमा पुलिस के हवाले है। अब चीनी घुसपैठ तब हो रही है जब डिजिटल इंडिया जिओ जिओ अप्पो अप्पो है और कारपोरेट कंपनियों की सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता कारपोरेट हितो की राजनय है।

अच्छे दिन : रोजगार नहीं मिलेगा क्योंकि लाखों स्वयंसेवक जो भर्ती किये जा रहे हैं

मजे की बात यह है कि सरकार ये मानने को तैयार नहीं है कि नोटबंदी की वजह से इकोनॉमी की रफ्तार धीमी हुई है। और ना ही ये मानने को तैयार है कि रोजगार के मोर्चे पर सरकार नाकाम रही है। तीन साल में सरकार की उपलब्धियां बताते समय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी को लेकर भी कई बातें साफ कर दीं।

भले ही जीडीपी की रफ्तार सुस्त पड़ गई हो। भले ही लगातार छंटनी की खबरें आ रही हों, लेकिन सरकार मानती है कि तीन साल में उसने अच्छा काम किया है। वित्त मंत्री के मुताबिक सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर लोगों और निवेशकों का भरोसा फिर कायम हुआ है। वित्त मंत्री ये भी मानने को तैयार नहीं कि नोटबंदी ने चौथी तिमाही में ग्रोथ घटा दी।

ये अच्छे दिन आपको मुबारक हम अपने बच्चों के कटे हुए हाथों और पांवों का हम क्या करेंगे?