आपातकाल : वह पूरा दौर बुद्धिजीवी तबके की बौद्धिक विफलता थी
आपातकाल : वह पूरा दौर बुद्धिजीवी तबके की बौद्धिक विफलता थी
आपातकाल : वह पूरा दौर बुद्धिजीवी तबके की बौद्धिक विफलता थी
जेपी आंदोलन, आपातकाल और बुद्धिजीवी
आपातकाल का भारतीय राजनीति पर असर
जेपी आंदोलन पूरी तरह से सड़क तंत्र पर निर्भर एक अराजकतावादी उद्वेलन था जिसमें तमाम मुद्दों को उभार कर केवल इंदिरा गांधी पर व्यक्तिगत हमले थे। यह लोहिया की गैर कांग्रेस वाद की अंध रणनीति का कार्यात्मक व्यवहार था।
यह समाजवादी शब्दावली जनित अराजकतावाद उसी तरह खतरनाक था जैसे सम्प्रदायिकता जनित अराजकतावाद खतरनाक होता है।
आपातकाल इंदिरा गांधी द्वारा इस अराजकता को रोकने की एक फौरी कोशिश थी जबकि वो इसे बेहतर तरीके से भी निपट सकती थीं।
बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका इस आंदोलन में उस समय खूब उम्मीदें देखता था। उन्हें सड़क पर उम्मीद देखने का पुराना अभ्यास था जो कि आज भी बरकरार है। विचारधारा को गौण कर बस हल्ला बोल में परिवर्तन देखना।
जबकि बुद्धिजीवी समुदाय को जेपी आंदोलन को एक अनुभवहीन प्री मैच्योर मूवमेंट के तौर पर देखना चाहिए था और उसकी आलोचना करनी चाहिए थी। इंदिरा गांधी पर नए चुनाव कराने के लिए दबाव बनाना चाहिए था। अराजकता के खतरे के प्रति आगाह होना चाहिए था। आर एस एस के प्रति चौकन्ना होना चाहिए था।
वह पूरा दौर बुद्धिजीवी तबके की बौद्धिक विफलता थी जिसका दीर्घकामी बुरा असर भारतीय राजनीति पर पड़ा।
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