अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद द्वारा चलायी जा रही वर्कशॉपों में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों को तैयार करने का काम रुक-रुककर चलता रहा है। बहरहाल, पत्थरों की इस खेप का अयोध्या पहुंचने पर बड़े समारोहपूर्वक स्वागत किया गया। आठ वर्ष के बाद, पत्थर की यह खेप अयोध्या पहुंची है।
विहिप द्वारा संचालित, रामजन्म भूमि न्यास के नेताओं का कहना है कि मोदी के सत्ता में आने के साथ उन्हें इसके ‘‘सकारात्मक संकेत’’ मिले हैं कि मंदिर बनने जा रहा है। इन सकारात्मक संकेतों में आरएसएस के मुखिया, मोहन भागवत की टिप्पणी को भी शामिल किया जा सकता है, जिन्होंने 3 दिसंबर को कोलकाता में कहा था कि, ‘‘मंदिर कब और कैसे बनेगा, यह कोई नहीं सकता है’’ फिर भी, ‘‘हमें तैयार रहना चाहिए।’’
उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर उनकी आंखों के सामने बनेगा।
अयोध्या में विहिप की सरगर्मियों के बढ़ऩे को एक राजनीतिक उद्देश्य को लेकर, मंदिर के मुद्दे का फिर से सुलगाने की संघ परिवार की तैयारियों के रूप में ही देखा जाना चाहिए। याद रहे कि 2017 की शुरूआत में उत्तर प्रदेश में विधानसभाई चुनाव होने हैं और आरएसएस-भाजपा गठजोड़, इन चुनावों की तैयारी में फिर सांप्रदायिक कड़ाह को आग पर चढ़ाने जा रहा है। अगर जरूरत पड़ी तो वह इस कड़ाह को उबालने की हद तक भी गर्म कर सकता है। बिहार के चुनाव से भाजपा के समर्थन में लगातार गिरावट की सचाई सामने आने के बाद, आरएसएस ने अपने तरकश के सांप्रदायिक तीर पैने करने शुरू कर
मंदिर के निर्माण के लिए अयोध्या में पत्थर इकट्ठे किए जाने को, इस न्यायिक आदेश के उल्लंघन के रूप में देखा जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिला अधिकारियों को सतर्क रहने के आदेश दे दिए हैं। लेकिन, यह काफी नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार को जिला प्रशासन को निर्देश देना चाहिए कि अयोध्या में बाहर से पत्थर लाने जैसी ऐसी सभी गतिविधियों को भी रुकवाए, जो यथास्थिति के साथ छेड़छाड़ करती हैं। जिस शरारत की तैयारी हो रही है, उसे शुरूआत में ही दबा देना जरूरी है।
प्रकाश कारात