जगदीश्वर चतुर्वेदी

हमें आरएसएस की विचारधारा को कम करके नहीं आंकना चाहिए, खासकर दलितों और अल्पसंख्यकों पर उसके असर की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

भारत में हिन्दुत्ववादी विचारधारा का कितना गहरा असर है यह संघ-भाजपा के इन समुदायों पर असर को देखकर ही समझ सकते हैं,यह असर तब है जबकि आरएसएस ने दलितों-अल्पसंख्यकों के लिए कोई बुनियादी सुधार का काम नहीं किया। इसका अर्थ है साम्प्रदायिक विचारधारा सिर्फ हिन्दुओं को ही नहीं गैर हिन्दुओं को भी प्रभावित करती है।

अभी तक हिन्दुत्ववादी विचारधारा के असर से हमलोग शिक्षित मध्यवर्ग को मुक्त नहीं कर पाए हैं, ऐसे में अनपढ़ लोगों में उसके असर को हम इतनी जल्दी कैसे मुक्त कर पाएंगे इस पर सोचना चाहिए।

आरएसएस - भाजपा ने भय, लोभ और यथास्थितिवाद की त्रिकोणीय रणनीति के जरिए दलितों-अल्पसंख्यकों को पटाने में महारत हासिल की है। वे सब समय विचारधारा का उनको पटाने के लिए इस्तेमाल नहीं करते बल्कि लोभ और भय का व्यापकतौर पर इस्तेमाल करते हैं।

वे नोटों के खेल के जरिए अपना उल्लू सीधा करने में सफल रहे हैं। नोटों का खेल कारपोरेट घरानों की मदद के बिना खेलना संभव नहीं है। दलितों की राजनीति को तमिलनाडु में नोटों के खेल ने प्रदूषित किया और जयललिता नामक फिनोमिना को जन्म दिया, करप्शन को लोकतंत्र की आड़ में महान बनाया, करप्शन से नफरत करने की बजाय हम सब प्रेम करने लगे। यही दशा यूपी आदि में भी है।

यूपी में दलितों का सबसे बड़ा मसीहा नोटों का बादशाह है। करप्शन या करप्ट नेता यूपी में महत्वपूर्ण नहीं है,महत्वपूर्ण है उसकी दलित ताकत। यह तमिलनाडु से आया फिनोमिना है, जिसको मायावती से लेकर आरएसएस तक सब बड़े मजे में लागू कर रहे हैं।

मायावती सीमाबद्ध है, लेकिन आरएसएस ने इस फिनोमिना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने में सफलता हासिल की है।

दलितों-अल्पसंख्यकों को यह बात समझाने की जरूरत है कि वे लोभ-भय के चंगुल से निकलें, भ्रष्टनेता और नोटों के बादशाहों को पहचानें और हराएं। आरएसएस यूपी में नोटों की आंधी चलाकर सारे विपक्ष की गणित वैसे ही बिगाड़ सकता है जैसे जयललिता ने पिछले दिनों हुए तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में बिगाड़ी।

सावधान, यूपी में आरएसएस-भाजपा की नोटों की वर्षा होने वाली है, यह बर्फ की आंधी से भी ज्यादा खतरनाक और नुकसानदेह है।