आसमान चूमती खरीद क्षमता की अर्थव्यवस्था में कालनिद्राय जनगण, जनतंत्र!

वे अग्निदेव साधकों द्वारा नित्य नमनपूर्वक सम्पत्र किये जाने वाले यज्ञों को जानते हैं। वे श्रेष्ठ सत्यवान् तथा आहुतियों को ग्रहण करने वाले हैं। याजकगण प्रात: काल निद्रा को त्यागकर यज्ञादि श्रेष्ठ कर्म करते हुए उन अग्निदेव को हर्षित करते …ऋग्वेद का आख्यान है यह।

तो काल निद्रा का बांग्ला लोक में भयंकर प्रयोग है जब आपदा की घड़ी में कालनिद्रा की वजह से कोई बचाव का रास्ता होता ही नहीं है।

वैदिकी सभ्यता की प्रकृति पूजा हिंदुत्व की मूर्तिपूजा है अब। जिस वनस्पति की उपासना से शुरु होता है मंत्र, उस वनस्पति जगत का ध्वंस ही मुक्तबाजारी केसरिया कारपोरेट एजेंडा है।

कल हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े से फोन पर लंबी बातचीत हाईकस्ट इकोनामी पर हुई। यानी आसमान चूमती खरीद क्षमता की अर्थव्यवस्था पर। मुक्त बाजार में क्रयक्षमता ही निर्णायक है। क्रयक्षमता नहीं है तो न बुनियादी जरुरतें आपको मिलेंगी और न बुनियादी सेवाएं।

जब हवा पानी तक खरीदने की नौबत है और देश में सुखीलाल का राज है और आपदाओं की श्रृंखला मुनाफावसूली है और विदेशी पूंजी में देश की इंडस्ट्री और कारोबार तक ओ3म स्वाहा है, तब जाहिर है कि आसमान चूमती क्रय क्षमता के मुकाबले निनानब्वे फीसद जनता निःशस्त्र है और उनके पास कोई सरवाइवल किट नहीं है।

इस पर हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे क्योंकि आज 154वीं रवींद्र जयंती के मौके पर बंगाल के महाश्मशान से जारी होंगी मंकी बातें। वे ज्यादा जरूरी हैं।

समयांतर के ताजा अंक में झूठे अंबेडकर प्रेम का विखंडन शीर्षक से तेलतुंबड़े का आलेख छपा है। रियाज जब यह आलेख भेजेंगे तब हम भी लगा लेंगे। इस आलेख को अवश्य पढ़ें।

समयांतर के ताजा अंक में हाशिमपुरा का आंखों देखा हाल रुबीना सैफी की जुबानी है तो स्वास्थ्य नीति की सेहत की पड़ताल की है आतिफ रब्बानी ने। प्रदूषित एवरेस्ट पर एक अनिवार्य आलेख लवराजसिंह धर्मशक्तू का है। एदुआर्दो गालेआनो और गुंटर ग्रास का स्मरण है तो देश बर से जमीनी रपटें भी हैं। पूरा अंक पठनीय है।

छत्तीसगढ़ के रंगकर्मी निसार वली जबर्दस्त परफार्मर हैं। वे कहते बहुत कुछ हैं निःशब्द और फेसबुक वाल पर आज सवेरे भी उनने एक जबर्दस्त परफर्म किया है। पेश है वह निःशब्द मंतव्यः

"बवंडर"

और

पत्थर में

धंसती

आहें .......

हम निसार अली की तरह परफर्मर नहीं हैं। मजबूरन अपने दिलोदिमाग से जो रक्त नदियां निकलती रहती हैं पल छिन पल छिन, उन्हीं के कुछ छींटें उलीचना मेरी दिनचर्या है और इससे विशुद्धता के धर्मोन्मादी मुक्तबाजार के मलाईदार लोगों की नींद में खलल जरूर पड़ती होगी, लेकिन जनगण और जनतंत्र की कालनिद्रा भंग होने के आसार नहीं है।

जनतंत्र की लू से झलसते हुए बंगाल में प्रचंड उमस के बीच इस कालनिद्रा का जायजा बहुत आसानी से लिया जा सकता है।

आज रवींद्र जयंती है, जो भयमुक्त विवेक का आजीवन आवाहन करते रहे हैं, जबकि रवींद्रोत्सव मध्ये बंगाल में जो दहशत का माहौल है, वह मध्यभारत के सलवाजुड़ुम अंचल में भी नहीं है। यहां सत्ता की मर्जी के बिना लोग हगना मूतना भी भूल चुके हैं।

इस रवींद्र जयंती का मुख्य आकर्षण फिर वही हरिदास पाल हुए, जिसकी कमर में रस्सी डालकर जेल में डालने का ऐलान करके दीदी तब से लेकर अब तक तमाम बूथों को लूट कर अपराजेय हैं।

धर्मोन्मादी जिहाद अब सर्वदलीय संसदीय मिलियनर बिलियनर सत्तावर्ग की सहमति है, जिसके तहत दो तिहाई बहुमत से संविधान संशोधन विधेयक तक अबाध पूंजी प्रवाह के निमित्त पास हो रहे हैं। वोट बैंक नूरा कुश्ती के संसदीय ऐरेना में तो संसद से बाहर गिरीश कर्नाड के नाटक पर भी रोक है।

कल्कि अवतार ने मां माटी मानुष की सरकार के साथ खड़े होकर सामाजिक तीन राष्ट्रीय परियोजनाएं सारे देश में एक साथ शुरू करके जनधन अटल परियोजना का विस्तार करके अपने पंद्रह लाख टकिया सूट की चमक और चकाचौंधी बनाने का विकल्प चुना है तो इसी के मध्य रोजाना बंगाल के अखबारों में अराजक हिंसा और राजनीतिक दुर्घटनाओं का महाभूकंप जारी है।

नमो महाराज के आगमन से ऐन पहले दीदी के अभयारण्य मेदिनीपुर के पिंगला में नाबालिग बारह बच्चों की लाशें पटाखा कारखाने में हुए धमाके की उपज है। तो लाशे कहां और कितनी छितरा गयीं, उसका अता पता नहीं है।

आस-पास के गांववालों का कहना है कि वहां बम बनाने का ठिकाना था और पुलिस को बार बार इत्तिला दी जाने के बावजूद राजनीतिक संरक्षण में घनी आबादी के बीच यह सिलसिला जारी रहा।

तुरत फुरत मामला सीआईडी हवाले है और इवाके की नाकेबंदी कर दी है पुलिस और प्रशासन ने। चीखतीं सुर्खियों के बीच केंद्रीय एजेंसियां शारदा फर्जीवाड़ा में तब्दील हैं।

दीदी के खिलाफ सारे संघी आरोप सलमान खान की पांच मिनट में जमात पर रिहाई है तो मासूम बचपन के उस कत्लगाह में जाने की कोई तकलीफ नहीं की संघ परिवार और भाजपा के बड़े नेताओं ने और न पार्टी की ओर से बर्दवान धमाके की कोई गूंज कहीं है ताकि देश के प्रथम स्वयंसेवक के बंग विजय अभियान और केसरिया हानीमून का माहौर रवींद्र प्रेम में बसंतबहार हो।

हम आज तक यह पहेली समझ नहीं सकें है, आज आपसे ही मदद मांग रहे हैं, जरा बताइये, रामकृष्ण मिशन के महाराजवृंद यह कहते अघाते नहीं हैं कि भारत के प्रधानमंत्री ने दो-दो बार रामकृष्ण मिशन की दीक्षा लेने का आवेदन किया था और मिशन की इजाजत न मिलने से स्वामी विवेकानंद बनते बनते रह गये, तो क्यों नहीं उन्हें मिशन ने दीक्षा का योग्य समझा।

सविताबाबू ने रामकृष्ण मिशन की दीक्षा के लिए परीक्षा पास कर ली है और इन दिनों वे रामकृष्ण कथामृत का पाठ कर रही हैं। 16 मई को उनकी दीक्षा है। हमने उनसे यही सवाल पूछा था। हमने यह भी पूछा था रामकृ्ष्ण को रामकृष्ण बनाने वाली मछुआरे की बेटी रानी रासमणि के बारे में मिशन में कोई साहित्य तो क्या चित्र भी क्यों नहीं उपलब्ध है।

इस पर उनने जवाबी सवाल किया कि उनके मिशन की दीक्षा लेने पर मुझे कोई ऐतराज तो नहीं है। हम उस तरह के पति तो कभी नहीं रहे हैं, जो पत्नी को दासी मानते हों। उनका फैसला उनका फैसला है। वे चाहे दीक्षा लें या चाहे बाकी जीवन मिशनरी बन जाये, यह फैसला उनका होगा। हम हस्तक्षेप करने से रहे।

अब दूसरी पहेली बूझने के लिए न हम उनसे कोई सवाल करने जा रहे हैं और न आम लोगों से। हम संघ परिवार और हिंदुत्व ब्रिगेड के प्रतिबद्ध सवयंसेवियों से पूछना चाहते हैं कि उनमें से कितने स्वयंसेवक देश के प्रथम स्वयंसेवक की तरह पंद्रह लाख का सूट दिन में चौबीसों बार बदलने के अभ्यस्त हैं।

यह सवाल बहरहाल जनतंत्र का नहीं है। विकास गाथा हरिअंनत खात का है, जिसके विशेषज्ञ संघी ही हैं और कोई नहीं।

जनतंत्र में तो सुविधाओं के सवाल मुहूर्त बांचकर विद्वतजन स्तंभन करते हैं, कुत्तों की तरह जीने मरने वाले हम जैसे दो कौड़ी के लोगों के वास्ते इस जनतंत्र में कोई स्पेस नहीं है।

बहरहाल सवितावबाबू मिशनरी अगर बन सकें तो हमारे लिए अच्चा ही रहेगा क्योंकि तब हमें सर छुपाने की जगह की जरूरत नहीं होगी क्योंकि हम तो जुते हुए खेंतों और पहाड़ी चट्टानं पर खुले आसमान के नीचे सोने को अभ्यस्त हैं और पूरा देश, पूरा महादेश, इंसानियत का पूरा भूगोल मेरा घर है और शायद इसीलिए मेरा कोई घर नहीं है।

हम तजिंदगी दूसरों के रोजगार, आजीविका की लड़ाई लड़ते रहे तो यह शायद सामाजिक न्याय है कि हमारे बच्चों के लिए कहीं कोई रोजगार नहीं है और न हम उनके लिए कोई सुरक्षित भविष्य छोड़ पा रहे हैं और न इस देश का जो वर्तमान है, उसमें हमारे बच्चों के लिए कोई सुरक्षा की गारंटी है।

क्योंकि हमारी पारिवारिक दीक्षा जन सरोकारों से और सामाजिक यथार्थ से लबाबलब वजूद बनाने की है। बच्चों पर होने वाले हमलों को हम रोक नहीं सकते क्योंकि हम दूसरों पर हो रहे हमलों के लिए ज्यादा बड़ी लड़ाई की तैयारियों में हैं।

हमारे बच्चों पर निरंतर हमले हो रहे हैं। निरंतर वे लहूलुहान हैं लेकिन हम देख रहे हैं कि इस देश का हर बच्चा लहूलुहान है और हम मुक्त बाजार के चप्पे चप्पे में झलसते बजपन की बेइंतहा लाशों के मध्य हाईवे के ट्रेफिक जाम में फंसे हैं और विषैली गैस हमारे देहमन को जहर से खत्म कर रही है पल छिन पल छिन।

रवींद्र जयंती पखवाड़ा का उद्बोधन दीदी रवींद्र सदन में कर रही हैं मोदी के संग पीपीपी विकास की मशालें जलाने के बाद लेकिन बंगाल पहले ही रवींद्रमय है और इसके लिए शायद चौराहों पर लाउडस्पीकर पर रवींद्रसंगीत की अनिवार्यता नहीं है, यह हमारी समझ है।

क्योंकि बंगाल के मनोजगत में रवींद्र छाप अमिट है और रवींद्र संगीत के बिना किसी बंगाली कन्या या गृहवधू की दिनचर्या न शुरु होती है और न खत्म होती है।

सविता बाबू के कार्यक्रम रोज हो रहे हैं।

इस रवींद्रमय बंगाल में हमारे बच्चों को न रोजगार है और न उनको शिक्षा मिल पा रही है और बिना सत्ता संरक्षण के उनकी कोई सुरक्षा भी नहीं है। सत्ता दल से न जुड़े होने के अपराध में रोज हमले और हत्याएं हो रही हैं। पटाखा कारखाने की अंतर्कथा यही है।

इस अंतर्कथा की कथा लेकिन सीमाओं के आर पार है।

कोलकाता के अखबारों में खबरें छपीं कि सोनागाछी में नेपाली यौनकर्मी जो बड़े पैमाने पर हैं, वे महाभूकंप में अपने स्वजनों के हाल चाल जानने को बेचैन है। देश भर की देहमंडियों में हिमालयी सुंदरियों की खपत आबादी के पैमाने पर सबसे ज्यादा है।

पहाड़ों के चायबागानों से निकल रहे मृत्युजुलूस के मध्य भी नारीमांस का कारोबार खूब चल रहा है तो अब नेपाल की सबसे बड़ी खबर यही है कि वहां राहत और बचाव अभियान में धर्मांतरण अभियान और हिंदुत्वकरण अभियान के साथ साथ दुनियाभर के चकलों के लिए दाखिला अभियान भी तेज है।

बंगाल में सीमाओं का आर पार यह कुटीर उद्योग है।

गौरतलब है कि माननीय कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार बाल श्रम उन्मूलन के लिए मिला है जबकि देहव्यापार में झोंकी जानेवाली नई फसल में कच्ची कलियों की तादाद सबसे ज्यादा है तो देशभरमें पटाखा कारखानों में झुलसने वाली देह इस देश के बचपन की है।

इसी तरह देश भर के होटलों, रेस्त्रां, दुकानों में जो बालश्रम बंधुआ है, अवैध खदानों से जो बचपन की लाशें निकलती हैंं, इसके आंकड़े हमारे पास नहीं है।

कल हमने अपने बांग्ला आलेख में सुर्खियों का कोलाज धनलक्ष्मी की पूरी व्रतकथा के साथ बंगाल की बांग्ला राष्ट्रीयता और बंगीय राविंद्रिक संस्कृति सभ्यता के केसरिया कारपोरेटीकरण की आराजक हिंसा के माहौल के सामाजिक यथार्थ को चित्रार्पित करने के लिए पेश किया था।
पलाश विश्वास