इजराइल हिटलर से अधिक जुल्म कर रहा है
फिलिस्तीन की पीड़ा को वैश्विक संवेदना की जरूरत है। जब तक जुल्म, अन्याय और अत्याचार जारी रहेगा, तब तक उसका प्रतिरोध भी बना रहेगा।

"प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना दिवस पर राष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता"
"मत रो बच्चे
तू मुस्काएगा तो शायद
सारे इक दिन भेस बदल कर
तुझसे खेलने लौट आएंगे- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़"
इंदौर। 10 अप्रैल, 2024। प्रगतिशील लेखक संघ की इंदौर इकाई (Indore unit of Progressive Writers Association) ने अपना स्थापना दिवस फिलिस्तीनी जनता के संघर्ष के नाम समर्पित किया। अभिनव कला समाज सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में कलाकारों ने फिलिस्तीन कवियों के गीत गाए, उनके संघर्षों पर केंद्रित कविताओं का वाचन किया, फिलिस्तीनी चित्रकारों के चित्रों का पावर पॉइंट प्रजेंटेशन और उसकी व्याख्या की। वक्ताओं ने इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर ढ़ाए जा रहे जुल्मों की तुलना हिटलर के अत्याचारों (Hitler's atrocities) से की।
प्रगतिशील लेखक संघ एवं भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की इंदौर इकाई द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत इप्टा इंदौर द्वारा अफ्रीकन क्रांतिकारी कवि पॉल रॉबसन (African revolutionary poet Paul Robeson in Hindi) पर केंद्रित गीत "वो हमारे गीत क्यों रोकना चाहते हैं" से हुई जिसे तुर्की कवि नाज़िम हिकमत ने लिखा एवं सलिल चौधरी द्वारा संगीतबद्ध किया। उजान, अथर्व एवं विनीत तिवारी ने इस गीत को प्रस्तुत किया। इप्टा के वरिष्ठ साथी विजय दलाल ने विश्व में शांति कायम हो इस पर केंद्रित दो गीत गाए।
क्यों हुई थी प्रगतिशाल लेखक संघ की स्थापना
कार्यक्रम की भूमिका रखते हुए प्रलेसं के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने अपने संबोधन में कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ का गठन शांति के पक्ष तथा विश्व में जारी युद्ध के विरुद्ध हुआ था। सज्जाद ज़हीर, प्रेमचंद सहित अनेक समकालीन लेखकों, कलाकारों द्वारा गठित इस संगठन का विस्तार पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से होता हुआ एफ्रो एशियाई लेखकों के संगठन के रूप में सामने आया।
उन्होंने बताया कि आज ही के दिन संगठन के वरिष्ठ साथी विख्यात लेखक राहुल सांकृत्यायन और क्रांतिकारी अफ्रीकी कवि, नाट्यकर्मी, फुटबॉलर एवं सामाजिक कार्यकर्ता पॉल रॉबसन का भी जन्म हुआ था।
फिलिस्तीन समस्या के बारे में (about Palestine Problem) विनीत तिवारी ने बताया कि इसराइल के गठन के बीज 1917 में अंग्रेजों द्वारा "फूट डालो राज करो" की नीति के तहत बोए गए थे।
प्रलेसं इकाई अध्यक्ष डॉ जाकिर हुसैन ने कहा कि इजरायल द्वारा बड़े पैमाने पर महिलाओं, बच्चों की हत्या की गई है। यूरोपीय देशों का दोगलापन सामने आया है। एक तरफ वे ग़जा में खैरात बांट रहे हैं दूसरी तरफ इसराइल को नित नए शास्त्र देकर फिलिस्तीनियों के कत्लेआम में मदद कर रहे हैं। भारत सदैव फिलिस्तीन जनता के पक्ष में रहा है लेकिन वर्तमान सरकार इसराइल के साथ खड़ी है। प्रो. ने फिलिस्तीन की जनता के संघर्ष पर केंद्रित स्वरचित नज़्म का पाठ किया।
प्रलेसं की वरिष्ठ साथी सारिका श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले दिनों से इजराइल जिस तरह फिलिस्तीन की जनता खासकर बच्चों एवं महिलाओं का जनसंहार कर रहा है, पूरी दुनिया उसे लाइव देख रही है। तबाह होते स्कूलों, मकानों और उनके मलबों के नीचे दबे बच्चों के रोने की आवाजों को हम लाइव देख रहे हैं। हम लाइव देख- सुन रहे हैं अस्पताल में घायल बच्चों की बिना एनसथीसिया दिए की जा रही सर्जरी में उनकी दर्द भरी चीत्कार, भूख से तड़पते और खाने के लिए हाथ फैलाते बच्चों को हम लाइव देख रहे हैं, मलबे के नीचे से सड़ी-गली लाशों का निकाला जाना भी लाइव देख रहे हैं और ऐसे में याद आती हैं कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता- यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों, तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो? और बरबस कहने का मन करता है, नहीं, हम सब यह लाइव देख रहे हैं। हिटलर के गैस चैंबर तो चुनिंदा थे, इसराइल ने तो संपूर्ण फिलिस्तीनी बस्तियों को गैस चैंबर में बदल दिया है। त्रासदी तो यह है कि फिलिस्तीनियों का टॉर्चर होते सारी दुनिया 'लाइव' देख रही है। रमजान के महीने में रोजेदार सेहरी और इफ्तारी करते हैं, फिलिस्तीनियों के रोज़े तो न जाने कब से चल रहे हैं, उन्हें जब भी, जो भी खाने को मिल जाए वही समय उनका सेहरी-इफ्तारी का होता है। सारिका ने अनुराधा अनन्या की कविता "फिलिस्तीन को छोड़ दो" का पाठ किया।
वरिष्ठ साथी रामआसरे पांडे ने कहा कि प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे जलने वाली मशाल बताया था। हमें उन कारणों को खोजना होगा जिनके कारण दुनिया में अंधेरा है। इस अवसर पर उन्होंने अपनी स्वरचित रचना का पाठ किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साथी चुन्नीलाल वाधवानी ने तौफीक जायद की कविता का पाठ किया।
आयोजन की केंद्र बनी विनीत तिवारी द्वारा फिलिस्तीन के चित्रकारों के रंगीन, ऊर्जावान एवं जीने और आजादी की चाहत लिए बनाए गए चित्रों की पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन से। जिसमें विनीत ने सिलसिलेवार चित्रों के संयोजन, फ़िलिस्तीन के संघर्ष को दिखाया। इसमें विनीत ने फ़िलिस्तीन के चित्रकार: नबील अनानी, इस्माइल शाम्मूत, हेबा ज़गूत (2023 में बम विस्फोट में दो बच्चों सहित मारी गईं), मालक मत्तार (24 वर्षीय युवा चित्रकार लड़की) के संघर्ष और उनके चित्रों को दिखाया। इजराइल द्वारा फ़िलिस्तीन और इजराइल के बीच बनाई दीवार पर फ़िलिस्तीनी चित्रकारों द्वारा बनाए चित्रों का वर्णन करने और समझाते हुए बेहद रोचक एवं प्रभावी प्रस्तुति दी।
विनीत ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म "मत रो बच्चे", महमूद दरवेश की कविताएं "रीटा और राइफल, लिखो -मैं एक अरब हूँ" का प्रभावी पाठ किया।
पटना (बिहार) से आईं प्रलेस की साथी सुनीता ने रेफ़ात अल अरीर की कविता "अगर मुझे मरना ही है" का पाठ किया जिसका अंग्रेज़ी से अनुवाद अर्चिष्मान राजू ने किया था। 8 दिसम्बर 2023 को एक इज़राएली बम ने कवि रेफ़ात अल अरीर की हत्या कर दी। रेफ़ात एक बहुत ही साहसी कवि थे जो इज़राइल के नरसंहार के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठा रहे थे। इज़राइल ये युद्ध फ़िलिस्तीनी जनता के साथ साथ उनकी संस्कृति और सभ्यता के ख़िलाफ़ लड़ रहा है। मरने से कुछ दिन पहले रेफ़ात ने यह कविता लिखी थी-
"अगर मुझे मरना ही है
तो मेरे न रहने से भी
एक उम्मीद तो जगे
एक दास्ताँ तो बने।"
आयोजन के अंत में आभार व्यक्त करते हुए प्रलेसं इकाई सचिव हरनाम सिंह ने कहा कि फिलिस्तीन की पीड़ा को वैश्विक संवेदना की जरूरत है। जब तक जुल्म, अन्याय और अत्याचार जारी रहेगा, तब तक उसका प्रतिरोध भी बना रहेगा।
इप्टा इकाई सचिव प्रमोद बागड़ी, अशोक दुबे, विवेक मेहता, अंजुम पारेख, विजया देवड़ा, अनुराधा तिवारी, हेमलता, रुद्रपाल यादव, दिलीप कौल, भारत सिंह, पत्रकार दीपक असीम, युवा साथी, मानस, विवेक, नितिन, आदित्य, विकास की उपस्थिति महत्त्वपूर्ण थी।
Israel is committing more atrocities than Hitler


