इतिहास की कोई नहीं सुनता, कम से कम ताराचन्द्र त्रिपाठी की तो सुनो!
इतिहास की कोई नहीं सुनता, कम से कम ताराचन्द्र त्रिपाठी की तो सुनो!
याद रहे कि इतिहास किसी का पक्ष नहीं लेता, केवल सावधान करता है
भारतीय इतिहास की नियति
भारत के ज्ञात इतिहास को देखें तो इसमें एकीकरण की अवधि कम और विघटन की अवधि अधिक दिखाई देती है। आज हम फिर उसी खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। केन्द्रीय सत्ता लगातार जनता का विश्वास खोती जा रही है और क्षेत्रीय क्षत्रप शक्तिशाली होते जा रहे हैं। सत्ता के लिए नीति अनीति के विचार को ताक पर रख दिया गया है।
भारत का इतिहास बताता है कि विदेशी आक्रमण के बाद ही इसमें एकता की लहर उठती है, पर वह देर तक टिकती नहीं। और संघटन की लहर के 100 वर्ष भी नहीं बीतते कि केन्द्रीय सत्ता लड़खड़ाने लगती है और कुछ ही वर्षों बाद संघ पूरी तरह बिखर जाता है। उदाहरण के लिए मौर्य साम्राज्य 323 ई.पू. में उगा और अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. के साथ ही विघटित होने लगा. प्रभावी शक्ति 89 वर्ष।
गुप्त साम्राज्य 319 ई. में जन्मा, समुद्रगुप्त के अभ्युदय के साथ 335 ई. में सुदृढ़ हुआ और चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद ही 413 ई. अस्ताचल की ओर उन्मुख हो गया। प्रभावी शक्ति केवल 94 वर्ष।
मुगल सम्राज्य 1526 में बाबर के राज्यारोहण से आरम्भ हुआ, पर प्रभावी शक्ति के रूप में 1605 में अकबर के साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँचा और उसके बाद 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही बिखरने लगा. कुल प्रभावी 102 वर्ष।
ब्रिटिश प्रभुता की स्थापना 1798, असहयोग आन्दोलन 1817 कुल प्रभावी 119 वर्ष।
स्वाधीन भारत 1947- सावधान 69 वर्ष हो गये हैं। देश के वातावरण में बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
यदि अब भी नहीं चेते तो भारतीय संघ में बिखराव की प्रवृत्तिया्ँ देश की राजनीतिक एकता को ले डूबेंगी। याद रहे कि इतिहास किसी का पक्ष नहीं लेता, केवल सावधान करता है। पर इतिहास की कोई नहीं सुनता। कम से कम ताराचन्द्र त्रिपाठी की तो सुनो!


