इतिहास के झरोखे से 2 जनवरी - आज हुई थी पद्म विभूषण सम्मान की स्थापना
इतिहास के झरोखे से 2 जनवरी - आज हुई थी पद्म विभूषण सम्मान की स्थापना
इतिहास के झरोखे से 2 जनवरी
“तारीख गवाह है“ डीबीलाइव के साथ
DBLIVE | 2 JAN 2017 | TODAY’S HISTORY | AAJ KA ITIHAS
2 जनवरी 1954 को पद्म विभूषण सम्मान की स्थापना की गई थी।
पद्म विभूषण सम्मान भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला दूसरा उच्च नागरिक सम्मान है, जो देश के लिए असैनिक क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान के लिए दिया जाता है।
यह सम्मान भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है।
यह सम्मान भारत रत्न के बाद दूसरा प्रतिष्ठित सम्मान है।
पद्म विभूषण के बाद तीसरा नागरिक सम्मान पद्म भूषण है। यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। इसमें सरकारी कर्मचारियों द्वारा की गई सेवाएं भी शामिल हैं।
2 जनवरी 1971 में ग्लासगो के इब्रॉक्स पार्क में दो मज़बूत प्रतिद्वंदी टीमें सेल्टिक और रेंजर्स के बीच हुए फुटबॉल मुक़ाबले के बाद घटी घटना में 66 लोग मारे गए थे।
यह हादसा उस समय हुआ, जब मैच देखकर प्रशंसक सुरक्षा घेरे को तोड़कर स्टेडियम से बाहर निकल रहे थे। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार रेंजर्स टीम के सैकड़ों की संख्या में प्रशंसक इस आशंका में स्टेडियम छोड़कर भागने लगे कि सेल्टिक जीत जाएगी, लेकिन उनके सीढ़ियों से उतरते वक़्त ये हादसा हो गया था।
2 जनवरी 1973 को सेना के जवानों और देश के लिए प्रेरणा स्रोत जनरल एसएफए जे. मानिक शॉ को फ़ील्ड मार्शल बनाया गया।
देश के नागरिकों और नौजवान दिलों पर राज करने वाले फील्ड मार्शल एसएफ जमशेदजी मानेक शॉ का जन्म 1914 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके अंदर उच्च कोटि की प्रशासनिक क्षमता थी। अपने जीवन काल में पांच युद्धों में मानेक शॉ ने भाग लिया और अपनी बहादुरी से सबको अचंभित किया। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच भयंकर युद्ध सैम मानिक शॉ के नेतृत्व में ही लड़ा गया था।
इसी युद्ध में सैम ने पाकिस्तान को काटकर दुनिया के नक्शे पर एक नए देश को जन्म दे दिया था I
2 जनवरी 1989 को अद्भुत कलाकार, समाज के दंभ पर हल्ला बोलने की ताकत रखने वाले सफदर हाशमी को असमाजिक तत्वों ने बड़ी बेरहमी से पीटा था, जिस वजह से अगले ही दिन उनकी मौत हो गई थी।
वह एक क्रांतिकारी और हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल थे। वह 1976 में सीपीएम में शामिल हो गए थे। आम आदमी के दर्द को हाशमी के थियेटरों में जिस बेचैनी से उठाया जाता था, उसे देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। औरत, गांव से शहर तक, राजा का बाजा होते हुए, जब उनके थियेटर का सफर नुक्कड़ नाटक हल्ला बोल पर पहुंचा, तो सफदर ने इसे गाजियाबाद नगर निगम चुनाव के वक्त प्रस्तुत करने का फैसला किया।
जब वह इसे साहिबाबाद के झंडापुर गांव में पेश कर रहे थे, तभी असमाजिक तत्वों ने उन पर हमला कर दिया, जिस कारण उनकी मौत हो गई।
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2 जनवरी 1993 में बॉसनिया में शांति के लिए वार्ता हुई थी।
बॉसनिया के तीन अलग-अलग गुटों ने वहां नौ महीने से जारी लड़ाई को समाप्त करने और शांति स्थापित करने के मक़सद से यह बैठक की थी। युद्ध छिड़ने के बाद ऐसा पहली बार हुआ था, जब बॉसनिया के सर्ब, मुस्लिम और क्रोएट्स के नेताओं ने आमने-सामने बैठकर बातचीत की थी।
जेनिवा में इस बैठक को संयुक्त राष्ट्र के दो विशेष राजदूतों सायरस वनस और लार्ड ओवन ने इन तीनों गुटों को एक बैठक करने को कहा था।
इन दोनों राजदूतों ने बॉसनिया को 10 स्वायत्त प्रांतों में बांटने और विकेंद्रीकृत सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया था।


