इतिहास केसरिया बनाने वाले चेहरे बेनकाब हैं जो दुनिया मनुस्मृति बनाना चाहते हैं!
इतिहास केसरिया बनाने वाले चेहरे बेनकाब हैं जो दुनिया मनुस्मृति बनाना चाहते हैं!
ग्रीक त्रासदी घात लगाये मौत की तरह सर पर खड़ी है!
स्वयंभू ब्राह्मण और नवब्राह्मण ब्राह्मणतांत्रिक गिरोह के सिपाहसालार मनसबदार से लेकर चक्रकर्ती महाराज कल्कि अवतार तक आदतन तानाशाह हैं।
वे इतिहास, ज्ञान विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र को वैदिकी बनाने चले हैं और दरअसल मिथकों को नये सिरे से रच रहे हैं। मसलन ताजातरीन मिथक विकास, सामायोजन, डिजिटल भारत और बोतल में कैद महाजिन्न के खूनसने हाथों के करतब, हाथ की सफाई के मिथक हैं।
Enter Hamlet! Kashmir all Over INDIA! BURNING!
पलाश विश्वास
इतिहास केसरिया बनाने वाले चेहरे बेनकाब हैं जो दुनिया मनुस्मृति बनाना चाहते हैं! वे चेहरे हमारे बीच तमाम मुखौटों के साथ हमें बरगलाने में लगे हुए हैं।
जैसे जहरीले जीव भी आखिरकार अपने बिलों से निकलकर कायनात और इंसानियत को डंसने के लिए कभी न कभी खुलकर सामने आ ही जाती हैं, वैसे ही वे लोग जिन्हें हमारे मित्र आनंद तेलतुंबड़े ब्राह्मण गिरोह बता रहे हैं, अब हमारे आमने सामने हैं। राजमार्ग पर उनके ही जुलूस हैं। मीडिया में वे ही हैं।
तामाम माध्यमों, विधाओं, भाषाओं और धर्म कर्म पर काबिज।
इन चेहरों को अब पहचान भी लीजिये।
सन सैंतालीस से यही हो रहा है कि हर चुनाव में जाति धर्म का खुल्ला खेल फर्रूखाबादी जारी रहता है और सरे देश को आग के हवाले कर दिया जाता है, जाति नस्ल वर्ग की सत्ता मनुस्मृति बहाल करने की खातिर।
यह धर्म नहीं है। सनातन हिंदू धर्म नहीं है और न वैदिकी धर्म है। वैदिकी धर्म और विज्ञान और इतिहास के नाम पर देश में गैरहिंदुओं के साथ साथ बहुजनों के सफाये कार्यक्रम की हैरतअंगेज मेधा खुद को ब्राह्मण बताती है लेकिन उन्हें धर्म कर्म के इतिहास के बारे में कितना मालूम है, इस पर शक है।
वे दरअसल मुकम्मल मनुस्मृति साम्राज्य की स्तापना कल्कि अवतार के करिश्मे के तहत करने की जुगत में हैं और धर्म और इतिहास केनाम पर उनका ज्ञान महकाव्यों, मिथकों और मिथकीय नानाविध पुराणों और स्मृतियों तक सीमाबद्ध है।
आज सुबह जलते हुए कश्मीर की तस्वीर पेश करते हुए पूरे देश में जलता हुआ कश्मीर दिखाते हुए हमने शेक्सपीयरन त्रासदी और ग्रीक त्रासदी की सिलसिलेवार चर्चा की।
ग्रीक त्रासदियां ही शेक्सपीअर की प्रेरणा है।
ग्रीक त्रासदी यूनानी सभ्यता और एशिया माइनर से यूरोपीय नवजागरण के जरिये यूरोपीय भाषाओं तक पहुंची।
ग्रीक त्रासदी का स्थाई भाव मिथकीय है और मिथकों में ही त्रासदी और कैथार्सिस अंतर्निहित हैं।
कैथार्सिस पाठकीय इंद्रियों को भावविभोर आप्लुत करने की प्रक्रिया है। यही भावविभोर लोकतंत्र और राष्ट्रीयता हमारे मुल्क की ग्रीक त्रासदियां हैं। बार-बार जिसका मंचन राष्ट्रीय मंच पर खास तौर पर सत्ता गिरोह के महातिलिस्म नई दिल्ली में मंचित हो रही हैं और हम मजा ले रहे हैं लेकि हमारी तमाम इंद्रियां मुक्तबाजारी यौन उत्तेजना के बावजूद विकलांग हैं।
हमारा यह हवा हवाई वर्ल्ड ब्राह्मण फेडरेशन, जिसे ब्राह्मण होने का दावा करते शर्म नहीं आती, लेकिन हर ज्ञानी ब्राह्मण के लिए उनका वजूद शर्मनाक है जिन्हें शर्म आती नहीं है। इस बेशर्म प्रजाति और उनकी बेशर्मी पर हमने अपने आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े का आलेख हिंदी और अंग्रेजी में यह आलेख शुरु करने से पहले जारी कर दिया है।
स्वयंभू ब्राह्मण और नवब्राह्मण ब्राह्मणतांत्रिक गिरोह के सिपाहसालार मनसबदार से लेकर चक्रकर्ती महाराज कल्कि अवतार तक आदतन तानाशाह हैं।
वे आदतन पितृसत्ता की बलात्कार संस्कृति के धारक वाहक हैं और उनका आचरण मानसिक रोगी जैसा है और व्यक्तित्व संकट के कारण नानाविध बाबा हैं जो वैदिकी वैदिकी जुगाली करते तो हैं, लेकि इन अंधियारे के तेज बत्तीवाले करोड़पति अरबपति कारपोरेट कारोबारियों को धर्म कर्म से कुछ भी लेना देना नहीं है। न उन्हें इस मुल्क से कुछ लेना देना है।
वे इतिहास, ज्ञान विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र को वैदिकी बनाने चले हैं और दरअसल मिथकों को नये सिरे से रच रहे हैं।
मसलन ताजातरीन मिथक विकास, सामायोजन, डिजिटल भारत और बोतल में कैद महाजिन्न के खूनसने हाथों के करतब, हाथ की सफाई के मिथक हैं।
मिथकों की यही मिथ्या लेकिन ग्रीक त्रासदी है जो हम पर घात लगाये मोत की तरह मंडरा रही है।
वे राष्ट्र के विवेक का कत्लेआम करने के फिराक में हिटलर और मुसोलिनी का इतिहास दोहराने की कोशिश कर रहे हैं, सभी धर्मो, समुदायों और नस्लों के सहिष्णु विविधता के भारत तीर्थ में जो असंभव है चाहे सारे लब काट लिए जायें या चाहे हर इंसान का सर कलम कर लिया जाये।
फिर भी बची रहेगी इंसानियत। क्योंकि कायनात की रहमतों, बरकतों और नियामतों का कत्ल कोई कर ही नहीं सकता। कायनात उसे ठिकाने लगा देती है।
यह विज्ञान और इतिहास का सबक जितना है, इस दुनिया के तमाम धर्मों का अंतर्निहित सचभी वही है, जिसे मिथ्या धर्म के झंडेवरदार झुठलाने की भरसक कोशिश सत्ता संरक्षण में कर रहे हैं। वे सत्ता की भाषा बोल रहे हैं। अभिव्यक्ति को कुचल रहे हैं। और नंगा तलवारे लेकर घूम रहे है सर कलम करने के लिए। फतवे भी वे ही जारी कर रहे हैं। कश्मीर समेत पूरे देश आग के हवाले।
कुछ चेहरे आज दिल्ली में राजपथ पर नजर आये, वे भी मिथकीय धर्म कर्म के, कर्मफल के सिद्धांत मुताबिक जाति व्यवस्था बहाली के मजहबी सियासत और सियासती मजहब के जाने माने सिपाहसालार मनसबदार वगैरह वगैरह है। सामाजिक यथार्थ बोध, इतिहास बोध और वैज्ञानिक दृष्टि से इनका उसीतरह कुछ लेनादेना नहीं है, जैसे भारतीय जनता, मेहनतकशों, बहुजनों, उत्पादन प्रणाली और अर्थव्यवस्था से उन्हें कुछलेना देना नहीं है। वैदिकी धर्म और मिथकीयधर्म के फर्क का अदब भी उन्हें नहीं है और असहिष्णुता को सहिष्णुता बताते हुए अन्याय और असमता को समरस वे बना रहे हैं।
इस बार भी बिहार यूपी जीतने के मकसद से अरब वसंत का आयात हुआ गोरक्षा आंदोलन के नाम पर जबकि हमारे गांवों में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और खेती कब्रिस्तान में तब्दील हैं। किसानों को निर्णायक तौर पर कत्ल करने के लिए सुधार अब कार्यक्रम है और संसदीय सहमति परदे के पीछे सच है।
खेत भी नहीं हैं। गायें भी नहीं है। धर्म की जड़ें जिस लोकजीवन में है, उस सहिष्णुता और साझे चूल्हे की विरासत की हत्या करके मुल्क को नरसंहारी मुक्तबाजार में तब्दील करने के अस्वमेधी अभियान के तहत गोरक्षा आंदोलन जारी है।
खेल अभी खत्म हुआ नहीं है। बिहार का जनादेश रविवार को आ जायेगा और तय हो जायेगा कि जाति जीती कि धर्म जीता।
आगे असली कुरुक्षेत्र यूपी का है, जहां मंडल-कंमंडल का फिर कुरुक्षेत्र होगा। इससे बदलता कुछ भी नहीं। धनबल बाहुबल से हासिल हर जनादेश आखिर मुक्तबाजार एक हवाले है।
खास बात है कि इस अंतराल में संसद का मानसून सत्र भी संपन्न होने वाला है।
मूडीज, रिजर्व बैंक के गवर्नर, नारायण मूर्ति और अरुण शौरी जैसे नवउदार सुधारक और निजीकरण विनिवेश के मसीहा को दरअसल इस संसदीय सत्र में अनिवार्य संसदीय सहमति को लेकर है, जिसकी परनाह न बिरंची बाबा टाइटैनिक को है, न संस्थागत फासीवाद के मुख्यालय को है और न धर्म के नाम देस के चप्पे-चप्पे में नफरत फैलाने वाले अंधियारे के कारोबारियों को है, न बजरंगी ब्रिगेड को है और न उस बहुजन समाज को है, जो हिंदुत्व की पैदल सेना है।
बिहार का नतीजा आ जायेगा। हम भारत विभाजन की साजिशों और सौदेबाजियों का खुलासा करते हुए बार-बार बता ही रहे हैं कि कैसे आजादी की लड़ाई का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पर लगातार फासीवादी ब्राह्मणवाद का वर्चस्व हो गया।
बार-बार बता ही रहे हैं कि कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थाई भू बंदोबस्त की कोख से पैदा हुआ भारत का रंगभेदी नस्ली यह सत्तावर्ग और बार-बार साफ कर रहे हैं कि इस महातिलिस्म की नींव लेकिन जाति व्यवस्था है।
बार-बार बता ही रहे हैं कि कि लाल नील एकता के बिना हम किसी भी हाल में जमींदारों और राजे रजवाड़ों का इस ब्राह्मण तंत्र को नानाविध जाति, धर्म, नस्ल, क्षेत्र, भाषा अस्मिताओं के मंडल-कमंडल गृहयुद्ध से अंत हरगिज हरगिज नहीं कर सकते।
हमारे पहले शिक्षक पीतांबर पंत ब्राह्मण थे और आज भी जो हमें दसों दिशाओं में सामाजिक यथार्थ की वैज्ञानिक दृष्टि से हांके जा रहे हैं, वे ताराचंद्र त्रिपाठी भी ब्राह्मण थे।
ताराचंद्र त्रिपाठी जीआईसी नैनीताल की अलग कक्षा को पढ़ाते थे, हमें नहीं। उस ब्रह्मराक्षस ने हमें चुन लिया और अपने घर बिठाकर साल दर साल मुझे अग्निदीक्षा दी।
मैं इलाहाबाद में एक और ब्राह्मण मशहूर कथाकार शेखर जोशी के परिवार में रहा। जो वैज्ञानिक दृष्टि और सामाजिक यथार्थ के सौंदर्यबोध के कारण ही जाने जाते हैं।
आप तक हमारा लिखा हर शब्द पहुंचाने वाल अमलेंदु भी ब्राह्मण हैं जनम से। मेरा लिखा हस्तक्षेप पर न छपें तो आप शायद ही पढ़ सकें क्योंकि हमारी कड़ी निगरानी जारी है।
मेल वेल तो हम भेज भी नहीं सकते। रोज हमें तड़ीपार करके हमारा वजूद मिटाया जाता है।
फिरभी हम लड़ाई के मैदान में हैं, तो असंख्य ब्राह्मणों के सक्रिय सहयोग से है।
इतिहास में देखें तो चंद्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक का जश्न मनानेवाला बहुजनसमाज खास कर गौर करें कि चंद्रगुप्त को चंद्रगुप्त बनाने वाले भी आखिर एक ब्राह्मण चाणक्य थे।
वैज्ञानिक दृष्टि की विरासत हमें चार्वाक दर्शन से मिली है, जिसके रचनाकार भी ब्राह्मण थे। तो जिन उपनिषदों का खंडन बाबासाहेब ने नहीं किया और जो उपनिषद अछूत रवींद्र का दलित विमर्श है, उसके रचनाकर्मी भी जाहिरा तौर पर ब्राह्मण थे, गौतम बुद्ध की क्रांति और मनुस्मृति प्रतिक्रांति से पहले के भारत का यह इतिहास है।
बाबासाहब ने महाकाव्यों और मनुस्मृति के मिथकों, मिथ्याओं और रंगभेदी, जन्मजात असमानता और अन्याय का पर्दाफाश सिलसिलेवार किया है।
बाबासाहब ने मनुस्मृति दहन किया है और भारत का इतिहास नहीं बदला है और न वेदों और उपनिषदों औरचार्वाक दर्शन को जलाया है। उनके अनुयायी लेकिन उसी मनुस्मृति के झंडेवरदार हैं और मजहबी औरजाति पहचान को मजबूत करते हुए पल छिन पल छिन अपने लिए नर्क रच रहे हैं।
बाबासाहेब ने जाति उन्मूलन का एजंडा बनाया तो इसकी वजह यह थी कि वे जानते रहे हैं कि फासीवादी मनुस्मृति, असमता और अन्याय की नींव बुद्धमय भारत के पंचशील के खिलाफ हुई प्रतिक्रांति के जरिये मेहनतकशों के जनमजात हजारों जातियों में बांटने वाली यह जातिव्यवस्था है, जिसे खत्म किये बिना स्वतंत्रता, समानता और न्याय की मंजिल कभी हासिल की नहीं जा सकती।
अंबेडकरी आंदोलन लेकिन बाबासाहेब के महाप्रस्थान के बाद लगातार ब्राह्मणों को गरियाते हुए मनुस्मृति शासन की केसरिया पैदल फौजें और उनके राम से हनुमान में तब्दील सिपाहसालार बनाता रहा है और उसी ब्राह्मण मनुस्मृतिबाज गिरोह को मजबूत करता है, जिसमें जनमजात ब्राह्मण कोई वैज्ञानिक दृष्यिवाला ब्राह्मण शामिल हो ही नहीं सकता।
हमारे उस बहुजनसमाज के लोग, बाबसाहेब के अनुयायी घनघोर बतौर जाति ब्राह्मणों का विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ, मनुस्मृति को राजकाज, राजनय और मुक्तबाजार, ग्लोबल आर्डर में तब्दील करने वाले गिरोह को मंडल कमंडल गृहयुद्ध, मजहबी सियासत और सियासती मजहब से लगातार मजबूत कर रहे हैं।
क्योंकि हम दोस्त और दुश्मन की पहचान, रिश्तों की परख भी जाति अंध दृष्टि से कर रहे हैं और इसीलिए जमींदारों और रियासतों के मालिकान जैसे नेताजी, गांधी, अंबेडकर, सीमांत गांधी, फजलुल हक, गुलाम नबी आजाद जैसे राष्ट्रीय नेताओं को किनारे लगाकर या उनकी और गुरु गोविंद सिंह, संत तुकाराम, चैतन्य महाप्रभु, संत कबीर की तरह हत्या करके बंटवारे का सिलसिला जारी करके देश और देश के सारे संसाधनों और सत्ता पर काबिज हो गये। हम गोडसे बने हैं।
ठीक उसी तरह जैसे उनने अपनी जमींदारियों और रियासतों को सही सलामत रखने के लिए इस महादेश के करोड़ों लोगों को धर्म के नाम पर बांटकर हिंदुत्व महागठबंधन के जरिये हमारी आजादी की कीमत पर सत्ता हासिल करके हमें अनंत बेदखली और कत्लेआम का सिकार बना दिया, उसीतर उनने हमें मनुस्मृति तंत्र मंत्र यंत्र तिलिस्म में हमें ऐसे बंधुआ गुलामों में तब्दील कर दिया।
हिंदुत्व के नाम, राम के नाम, धर्म और जाति के नाम हम लगातार मनुस्मृति की इस अखंड, अनंत नर्क को मजबूत करते जा रहे हैं पुश्त दर पुश्त, पीढ़ी दर पीढ़ी और यही हमारी जनमजात नियति है, जिसे हम जीतने की कोई कोशिश ही नहीं करसकते क्योंकि जाति की पहचान, धार्मिक पहचान हमारी नियति है। यही मजहबी सियासत है, सियासती मजहब है जो इस अभूतपूर्व हिंसा और बलात्कार सुनामी की ग्रीक त्रासदी है।
हम खुद अपने दुश्मन हैं। दुश्मनों की गुलामी कर रहे हैं और उनके बेनकाब चेहरों को पहचान लेने से अपनी चुकडखोर हैसियत खोने के डर से, मलाई का हिस्सा कम पड़ जाने के आतंक से और अपनी अपनी खाल बचाकर कुत्तों की तरह जीने मरने की हमारी आदत हो गयी है।
गौरततलब है कि आज संघ परिवार के शाखा संगठन वर्ल्ड ब्राह्मण फेडरेशन ने इतिहास केसरिया बनाने के अभियान का ऐलान कर दिया है और आज के इकोनामिक टाइम्स के पहले पन्ने पर पूरा ब्योरा छपा है। देख लें।
ब्राह्मणों को गरियाने वाली बहुजन राजनीति को इस रंगभेदी ब्राह्मणतंत्र और मनुस्मृति शासन की गुलामी में जीना मरना मंजूर है, हिंदुत्व का नर्क जीना मंजूर है, लेकिन बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे से कोई मतलब नहीं है।
आनंद तेलतुंबड़े ने लिखा हैः
मुसोलिनी की राह पर चलनेवाले सिर्फ असहमत लोगों की हत्या करने की भाषा ही जानते हैं. इसलिए सिर्फ एक ही जवाब है जो इन कायरों के गिरोह को उनकी मांद में धकेल सकता है और वह है अवाम की मजबूत ताकत, उस अवाम की ताकत जो ब्राह्मणवाद की सताई हुई है और जो जटिल अक्लमंदी से दूर है. लेखकों को यह समझना ही होगा कि हिंदू राष्ट्र बुनियादी तौर पर ब्राह्मणों के एक गिरोह की पुनरुत्थानवादी परियोजना है, जो अपनी श्रेष्ठता को स्थापित करने के बेवकूफी भरे सपने देख रहे हैं. इसे बस मिनटों में हराया जा सकता है, अगर इन लेखकों में सिर्फ कुछेक दलीलों की बजाए अपनी मुट्ठी तान कर खड़े हो जाएं!
ग्रीक त्रासदी घात लगाये मौत की तरह सर पर खड़ी है!
इतिहास केसरिया बनाने वाले चेहरे बेनकाब हैं जो दुनिया मनुस्मृति बनाना चाहते हैं!
स्वयंभू ब्राह्मण और नवब्राह्मण ब्राह्मणतांत्रिक गिरोह के सिपाहसालार मनसबदार से लेकर चक्रकर्ती महाराज कल्कि अवतार तक आदतन तानाशाह हैं।
वे इतिहास, ज्ञान विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र को वैदिकी बनाने चले हैं और दरअसल मिथकों को नये सिरे से रच रहे हैं। मसलन ताजातरीन मिथक विकास, सामायोजन, डिजिटल भारत और बोतल में कैद महाजिन्न के खूनसने हाथों के करतब, हाथ की सफाई के मिथक हैं।
पलाश विश्वास


