इतिहास को आज तक मिटाया नहीं जा सका है, कहीं भी - कभी भी...
इतिहास को आज तक मिटाया नहीं जा सका है, कहीं भी - कभी भी...

क्या इतिहास को मिटाया जा सकता है?
नेहरू पर हमले और गंगा ढाबा पर हमला एक ही रणनीति के हिस्से हैं।
स्मृतियों को मिटाते हुए स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं की हत्या की कोशिश है। इतिहास इन ताकतों को शर्मिंदा करता है। इसलिये वे इतिहास को झुठलाना या मिटाना चाहते हैं।
इतिहास को आज तक मिटाया नहीं जा सका है। कहीं भी - कभी भी।
सरकारी दबाव और मनमानी के ज़रिये वैज्ञानिक इतिहास लेखन व पठन-पाठन पर आंच भी नहीं आएगी। सारी कोशिशें नाकाम रहेंगी। हां, चंद सालों के लिये शोध का काम संकुचित हो जाएगा, जो एक भारी नुकसान है।
इतिहास विरोधियों का मुख्य क्षेत्र आम जनता के बीच इतिहास की समझ है।
वहां इतिहास के शोध व अध्ययन को बिल्कुल अलग रखा गया है और औरंगज़ेब के सामने रोज़ नौ मन जनेऊ पेश किया जाता है।
असली लड़ाई वहीं लड़ी जानी है। यहां भी दलित चेतना बेहद महत्वपूर्ण है।
वहां से इन इतिहास विरोधियों को चुनौती दी जा रही है, विद्नोह के नये प्रतीक बन रहे हैं। उसे और वैज्ञानिक बनाना है, वैज्ञानिक इतिहास लेखन पर भी सवाल उठाने हैं, उसकी सीमायें तोड़नी है।
पता नहीं भक्तों को किसने कह दिया कि वामपंथी और उदारवादी मिथकों को नकारते हैं।
नहीं, हम मिथकों को सांस्कृतिक संपदा के रूप में स्वीकारते हैं। लेकिन सिर्फ़ ब्राह्मणवादी मिथकों को ही नहीं। जिन मिथकों को दबा दिया जाता रहा है, उन्हें भी।
मिथकों में समाज के ऐतिहासिक द्वंद्वों की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। लेकिन वे इतिहास नहीं हैं।................................
उज्ज्वल भट्टाचार्या
(उज्ज्वल भट्टाचार्या की फेसबुक टिप्पणियों का समुच्चय)
History could not be erased until today. anywhere anytime.


