इमरान रिज़वी हमारे नौजवान हीरो तुम्हें ऐसे तो हरगिज नहीं जाना था !
इमरान रिज़वी हमारे नौजवान हीरो तुम्हें ऐसे तो हरगिज नहीं जाना था !
इमरान रिज़वी की वाल आज दोस्तो के आंसुओं और दुःख से तर है। ऐसे चले गये कि सब दोस्त स्तब्ध हैं !
इतने लोग थे आपको चाहने वाले और आप चले गए !!
लेकिन हम पर भी बहुत दोष आता है दोस्त कि हममें से ही कुछ लोग इस दुनिया को आभासी कहते हैं। क्या आभासी है यहाँ ! बल्कि असल जिंदगी में तो कई बार अपने नजदीकी रिश्तेदारों से जितनी बातें और विचार शेयर नहीं होते उससे हज़ार गुना ज़्यादा यहाँ समवैचारिक दोस्तो से बातें होती हैं।
यह दुनिया वाकई आभासी होती तो क्या इमरान सच में जा सकते थे! क्या उनके जाने पर लोग एक आभासी दोस्त के लिए शोकग्रस्त हो रहे हैं !
यह सब सच है। तुम्हारा होना भी , तुम्हारा जाना भी। काश यह आभासी होता... पर है नहीं । हो सकता भी नहीं।
कितने दिल होंगे जिनमें ज्वार पल रहा होगा। कितने दिल होंगे जो डूब रहे होंगे। सच्चे और संवेदनशील लोग बहुत नाज़ुक होते हैं। जितनी जल्दी उद्वेलित होते हैं उतनी ही जल्दी टूटते भी हैं।
हम अक्सर डिप्रेशन भरे स्टेट्स पर मज़ाक भरे कमेंट्स कर देते हैं। कभी सीरियस कमेंट भी कर देते हैं। यह गुमान तक नहीं होता कि इनमे से कोई इमरान भी हो सकता है।
यह आभासी दुनिया इतनी भी खराब नहीं कि हम इमरान जैसे हीरे को सँभाल न पाएं। संभाला जा सकता था, बचाया जा सकता था। आज कई दोस्त इमरान से बातचीत का अपना स्टेट्स शेयर कर रहे हैं। इमरान ने टूटने से पहले हाथ पाँव मारे थे। बहुत संकेत दिए थे। उस समय उसे काउंसिलिंग और दोस्तो की बहुत ज़रूरत थी। पर सम्भवतः दोस्त एक सीमा के बाहर ही खड़े रहे जब कि इमरान को कुछ भरोसेमन्द दोस्तो के वास्तविक साथ की ज़रूरत थी।
फेसबुक पर हम सब अपनी लड़ाइयाँ लड़ रहे हैं। हम में से कई लोग कई बार अवसाद ग्रस्त होते हैं। हम रवीश कुमार जितना बड़ा नाम भी नहीं कि अपनी परेशानियों को बहुत इफेक्टिव तरीके से रख पाएं। बहुत लोग तो किसी संगठन से भी नहीं जुड़े हैं कि अपने जैसे लोगों से अपनी तकलीफ साझा कर पाएं और उसका निदान खोज पाएं। लेकिन जो रवीश नहीं हैं , उनका भी ज़िंदा रहना और लड़ना बहुत ज़रूरी है.
किसी भी संगठन से जुड़ना ज़रूरी है। यह अकेले रहने से लाख गुना अच्छा है। हम अकेले दुनिया नहीं बदल सकते। हाँ अकेलापन ज़्यादा हुआ तो अवसादग्रस्त ज़रूर हो सकते हैं।
इमरान की कमी बहुत बहुत खलेगी। हमारे इर्द गिर्द जो लोग व्यवस्था की ऐसी खरी आलोचना कर रहे हैं, जो अपने सामने बुरा होते देख दिल जलाते हैं, जो बुराई के खिलाफ चुप रह ही नहीं पाते, अकेले लड़ने चल देते हैं, उन्हें हर दिन धमकियाँ और गालियाँ दी जा रही हैं। गालियाँ देने वाले एकजुट हैं। पर हमने अपने इमरान जैसे साथियों को अकेला छोड़ दिया है।
उन्हें देखना और सराहना , उनके साथ खड़े होना ज़रूरी है। वास्तव में यह उनके साथ नहीं यह अपने साथ खड़े होना है। बुरे वक्त में साथियों का साथ ही एकमात्र उम्मीद है।
मैं बहुत व्यथित महसूस कर रही हूँ। काश ऐसा न हुआ होता। एक अच्छा इंसान, बुराई से लड़ने वाला इंसान कितनी मुश्किल से बनता है लेकिन कितनी आसानी से तोड़ दिया जाता है।
मैंने सुना है इमरान के परिवार में सिर्फ अम्मी और दादी हैं. वे दोनों से बहुत गहरे जुड़े थे, और माँ को लेकर वाल पर भी ज़िक्र करते थे. माँ पर क्या गुज़र रही होगी, कल्पना की जा सकती है.
अब कुछ कहने सुनने की बातें सिर्फ तसल्ली के लिए न रहें इसलिए ज़रूरी है कि थोड़ी ज़िम्मेदारी हम ही और उठायें। अपने समवैचारिक मित्रो से बहस कम करें , साथ ज़्यादा खड़े हों। अभी यह वक्त दूसरे को गलत साबित करने से ज़्यादा खुद को मजबूत करने का है!
अलविदा साथी इमरान रिज़वी .... यकीन नहीं होता कि अब तुम्हारा नाम चाहे जितनी ज़ोर से पुकारा जाए , तुम्हारी तरफ से अब कभी कोई जवाब नहीं आएगा !
संध्या नवोदिता


