इस अंधराष्ट्रवाद को रोको, सीमा पर तनाव घटाओ!
इस अंधराष्ट्रवाद को रोको, सीमा पर तनाव घटाओ!
इस अंधराष्ट्रवाद को रोको, सीमा पर तनाव घटाओ!
प्रकाश कारात
नियंत्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक करने की सरकारी घोषणा के एक सप्ताह बाद भी, इस कार्रवाई के संबंध में और इससे क्या हासिल हुआ है इसके संबंध में बहुत से सवाल बने हुए हैं। अनाधिकृत मीडिया ब्रीफिंगों के जरिए, यह बताया गया है कि इस कार्रवाई में विशेष फोर्सेज के दो ग्रुपों ने, सात आतंकवादी लांच पैडों को अपना निशाना बनाया था।
यह दावा भी किया गया है कि इस कार्रवाई में 38 आतंकवादी तथा उनके सहयोगी मारे गए हैं।
कार्पोरेट मीडिया के हिस्से और खासतौर पर टेलीविजन चैनल अंधराष्ट्रवादी उन्माद में बह रहे हैं।
बहरहाल, इस कार्रवाई के कई दिन बाद भी उस रात जो कुछ हुआ था उस पर धुंध का पर्दा ही पड़ा हुआ है।
बहरहाल, सैन्य कार्रवाई के पहलू से उस रात चाहे जो कुछ भी किया गया हो, अब तो उसे आरएसएस-भाजपा के घरेलू समर्थन-आधार को तुष्ट करने के लिए और प्रधानमंत्री के लिए ऐसी छवि का निर्माण करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है कि वह पाकिस्तान की तरफ से कोई भी गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं।
कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों के उन्मत्त बयान, बचकाने विजयवाद को ही दिखाते हैं।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने एलान किया है कि पाकिस्तान सर्जिकल स्ट्राइक की बेहोशी से अभी उबर नहीं पाया है।
वेंकैया नायडू ने पाकिस्तान के लिए चोर की उपमा दी है, जिसे बिच्छू ने काट लिया, मगर दर्द से चिल्ला भी नहीं सकता है।
ऐसा लगता है कि इस बयानों का मकसद पाकिस्तान को जवाबी कार्रवाई करने के लिए उकसाना है, ताकि उस जवाबी कार्रवाई का इस्तेमाल कर सैन्य हालात को और बिगाड़ा जा सके।
पाकिस्तान ने इसके जवाब में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के प्रतिनिधियों के एक ग्रुप को ले जा कर अपनी तरफ से नियंत्रण रेखा का इलाका दिखाया है और इसके जरिए, अपने इस रुख की पुष्टि करने की कोशिश की है कि भारत की ओर से सीमा पार कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हुई है।
सीएनएन, बीबीसी तथा अन्य पश्चिमी मीडिया संस्थानों ने इस आशय की रिपोर्टें प्रसारित की हैं कि जिन इलाकों में उक्त सैन्य प्रहारों का दावा किया गया है, वहां वातावरण एकदम शांत तथा सामान्य है।
दूसरी ओर मोदी सरकार ने इन प्रहारों तथा उनके प्रभाव को दर्शाने वाला कोई वीडियो फुटेज या अन्य साक्ष्य जारी नहीं किए हैं।
हालांकि, भारत और पाकिस्तान के मीडिया में वाक्ï युद्ध जारी है, सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि जो सैन्च कार्रवाई की गयी है, उसकी प्रकृति के बारे में जनता को बताए। ऐसा न होने से इसी के संदेह बढ़ रहे हैं कि सरकार तथा सत्ताधारी पार्टी द्वारा, जिसे निवारक आतंकवादविरोधी प्रहार बताया जा रहा है, उसे वास्तव में राजनीतिक नुमाइश के मौके में तथा उन्मत्त राष्ट्रवादी कट्टरता को भड़काने के साधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस बीच सीमा के दोनों ओर, किसी भी स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त सशस्त्र बल तैनात कर दिए गए हैं। उक्त सैन्य कार्रवाई के बाद से, नियंत्रण रेखा तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा के करीब स्थित गांवों को खाली करा लिया गया है। पंजाब में ही करीब एक हजार गांवों के लोगों को वहां से निकल जाने के लिए कहा गया है। इस कदम का स्थानीय लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं, जिन्हें विस्थापन तथा रोजी-रोटी की मुसीबत का सामना करना पड़ेगा।
सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा के दो-तीन दिन बाद ही बारामूला में सेना/बीएसएफ के शिविर पर हमला हुआ, जिसमें बीएसएफ के एक जवान की मौत हो गयी। यह बताता है कि पाकिस्तान की ओर से किस तरह का प्रत्युत्तर आने जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर में अतिवादी हमले बढ़ जाने वाले हैं। सुरक्षा बलों को एक कहीं कठिन तथा कहीं विरोधी माहौल में इस खतरे का सामना करना पड़ रहा होगा क्योंकि कश्मीर की घाटी में जनता का बड़ा हिस्सा अब भी, भारतीय शासन के खिलाफ जनांदोलन की अवस्था में है।
हमने यह तर्क दिया था कि उड़ी हमले का सैन्य कार्रवाई से जवाब देना निरर्थक होगा और उससे दोनों देशों के बीच की बुनियादी समस्या हल होने वाली नहीं है।
इसके लिए तो सुदीर्घ राजनीतिक व कूटनीतिक प्रयास की जरूरत होगी।
मोदी सरकार हमारे इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक सचाइयों को अनदेखा नहीं कर सकती है। उड़ी के हमले के तीन दिन बाद ही, इस्लामाबाद में अमरीका-पाकिस्तान प्रतिरक्षा परामर्शन ग्रुप की बैठक हुई। यह ग्रुप, भारत-अमरीका रक्षा नीति ग्रुप के समकक्ष है। उड़ी की घटना के बावजूद, इस बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में एक मजबूत रक्षा रिश्ते कायम करने की दोनों देशों की वचनबद्धता को रेखांकित किया गया। ये मजबूत रक्षा रिश्ते साझा रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने लिए कायम किए जाने हैं, जिनमें आतंकवादविरोध, क्षेत्रीय स्थिरता तथा रक्षा सहयोग के अन्य क्षेत्र खास हैं।
अफगानिस्तान में अशरफ गानी के नेतृत्ववाली राष्ट्रीय एकता सरकार घेराव में है और तालिबान सेनाएं लगातार आगे बढ़ रही हैं। ऐसे हालात में अमरीका, अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका की केंद्रीयता को पहचानता है। इसी प्रकार, उड़ी के हमले के चंद रोज बाद ही पाकिस्तान की धरती पर रूसी तथा पाकिस्तानी सेनाओं ने अपना पहला संयुक्त अभ्यास किया। इसे भारत और अमरीका के बीच बढ़ते सैन्य गठबंधन के संदर्भ में रखकर देखा जाना चाहिए।
अमरीका, रूस, चीन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ, सभी प्रमुख शक्तियों ने मोदी सरकार से कहा है कि संयम का परिचय दे और हालात को काबू से बाहर न जाने दे।
पाकिस्तान की सरकार को भी यही संदेश दिया गया है।
भारत के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के 30 सितंबर को अपने पाकिस्तानी समकक्ष से संपर्क करने तथ्य इसी की ओर इशारा करता है कि मोदी सरकार भी, अंतर्राष्ट्रीय राय से अछूती नहीं है। लेकिन, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के आने वाले चुनाव की क्षुद्र मजबूरियां, इस सरकार से बहुत ही कठोर तथा उग्र बोली का तकाजा करती हैं, जो तनाव घटाने के लिए उठाए जाने वाले सभी कदमों में पलीता लगाती है।
अगर मोदी सरकार को राष्ट्रीय हितों की रत्तीभर भी परवाह है, तो उसे पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध-युद्ध करना बंद करना चाहिए और अपनी ऊर्जाएं सीमा सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में लगानी चाहिए ताकि सीमा पार के आतंकवाद की काट की जा सके। उसे किसी अतिवादी गुट का नियंत्रण रेखा पार कर आना बहुत-बहुत मुश्किल कर देना चाहिए। इसके साथ ही साथ, कश्मीर के हालात पर फौरन राजनीतिक रूप से ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए सरकारी दमन रोकने और सभी संबद्ध लोगों से राजनीतिक संवाद शुरू किए जाने की जरूरत है।
इसके साथ ही साथ भारत को, पाकिस्तान से फलप्रद तरीके से संवाद करने के लिए, राजनीतिक व कूटनीतिक प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।


