इस बलात्कारी हत्यारा दुःसमय में राष्ट्र का विवेक कहां है?
इस बलात्कारी हत्यारा दुःसमय में राष्ट्र का विवेक कहां है?
इस बलात्कारी हत्या के दुश्मन में राष्ट्र का विवेक कहाँ है?
अब कोई संदभंित पत्र बच्चा नहीं क्योंकिं मुक्क्त बाजार है।
इस कार्यामत के मंच में इंसानियत का जज्बा कहाँ है?
कहाँ खो गई है मुहब्बत?
सात सौ साल तक मुसलमान शासकों ने भारत पर राज किया। तो दो सौ साल तक हम अंग्रेजों के गुलाम रहे। फिर भी सनातन हिन्दू धर्म सही सलामत है और हिन्दुत्व के सिपाहियों के सफाय के लिए कुरुक्षेत्र और चक्रव्यूह रच रहे हैं!
जोदा अकबर ने मुगलीय सल्तनत के लिए धर्म को जोड़ने का माध्यम बनाया है और हम फासिज्म की राजनैतिक और सत्ता में धर्म को बंटवारे का हथियार बनाए हुए हैं? फिर फिर बंटवारे का हथियार!
पलाश विश्वास
सविता बाबू पूछती हैं कि बवंडर क्यों मचा है जबकि सरहदों के आर पार साजाह चूली अब भी सुलग रहा है?
मजहब भले अलग हो, हमारे दिल एक हैं। बंटवारा हुआ है, दिलों का बंटवारा नहीं हुआ है। दिलों का बंटवारा नामुमकिन है।
हम एक हैं। मिट्टी एक है। आसमान एक है। नदियाँ एक सी हैं। हमारे हिंदालय इक्लौता है। समुद्र भी एक सा है।
गोमांस को लेकर यह बवंडर क्यों और लोग बंटवारा पर क्यों आमादा हैं?
मिट्टी का रंग एक सा है। मिट्टी नहीं बदलती कंठीली तारों के बावजूद। पाकिस्तानी ड्रामा में भी फिर वही अखंड भारत। दिलों का बंटवारा हुआ तो कुछ नहीं बचेगा। इंसानियत तबाह हो जाएगी।
मेरे दंगों के दान से, नौचंदी मेले के दंगाइयों के फूंके देने के बाद, मलियाना और हाशिमपुरा नरसंहारों के बाद भाईचारा का माहौल जो किसान आंदोलनों में देखा, जो मुसलमान और हिंदुओं की किसानों का साझा चूल्हा से पकी रोटी और सब्जियों का जायका लेते रही हैं, वह जायका हर महादेव और अल्लाहो अकबर की धर्मोनमादी गूँज के आर-पार से सरहद के आर-पार सबसें।


