इस लोकतंत्र के निशाने पर हैं पर्यावरण और प्रकृति
इस लोकतंत्र के निशाने पर हैं पर्यावरण और प्रकृति
रामराज्य में निशाने पर फिर वहीं स्त्रियां।
डिजिटल देश की नालेज इकोनामी में नवजागरण के अवसान के मध्य स्थाई शाखा बंदोबस्त
पलाश विश्वास
लोकतंत्र हमारे लिए बस मताधिकार है।
चूंकि राजकाज में आम जनता की हिस्सेदारी और राजकाज पर जनता का नियंत्रण समता और न्याय के सिद्धांतों के मुताबिक जनप्रतिनिधित्व की मांग से हमारे लोकतंत्र को भारी खतरा हो जाता है। नक्सलियों से निपटने के नये सलवा जुड़ुम मोसाद की जरूरत पड़ जाती है और राष्ट्रद्रोह के मामले में फंसने से बेहतर खामोशी भली है।
पर्यावरण और प्रकृति इस लोकतंत्र के निशाने पर हैं तो नागिरकता, नागरिक और मावाधिकार सिरे से गैरप्रासंगिक है और इसीलिए हम आंतरिक सुरक्षा के नाम पर विधर्मियों और दीगर नस्लों, जातियों और समूहों के कत्लेआम से लोकतांत्रिक तौर तरीके सा गा गा ग्लाड थैंक यू मिस्टर ग्लाड हो जाते हैं। इसीलिए कश्मीर, पूर्वोत्तर, मध्य भारत, समूचे आदिवासी भूगोल और तमिलनाडु से हमारे दिलोदिमाग के तार किसी भी स्तर पर नहीं जुड़ते।
धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के आवह संगीत में किसी वध्य निर्दोष की चीखें हम तक नहीं पहुंचतीं।
तेल कुओं में खाक होती मनुष्यता और गाजापट्टी में निरंकुश नरसंहार के जश्न के तहत हम गायपट्टी को गाजापट्टी में तब्दील करके लोकतंत्र का उत्सव मनाते हैं।
त्योहारी माहौल में बाजार सजे हैं।
नेट पर धमाल है तो टीवी पर ब्रांडेड धारावाहिक महिषमर्दिनी है।
अनार्य जो तमाम असुर दैत्य दानव दस्यु किन्नर, राक्षस, प्रेत प्रजातियां है चिन्हित सहस्राब्दियों से, उनके वध के पुरातन इतिहास को दोहराने का यह ग्लोबल समय है। सारे मिथक नये सिरे से गढ़े जा रहे हैं। जैसे मोहनजोदोड़ो हड़प्पा का पौराणिक वैदिकी इतिहास।
सारे वेद पुराण उपनिषद महाकाव्यस्मृतियां ब्राह्मण नये सिरे से गढ़े जा रहे हैं।
क्षेपकों की बहार है।
पश्चिमी साहित्य में वह माँसलता है ही नहीं, जो संस्कृति साहित्य में हैं जहां स्त्री देह का चात्कारिक वैभव कालिदास है और देव देवियों, ऋषि मुनियों के उन्मुक्त संबंध हैं।नीली संस्कृति की ग्लोबल दुनिया की नींव दरअसल वही है।
रामराज्य में निशाने पर फिर वहीं स्त्रियां।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर और राजा राममोहन राय के नवजागरण से हिंदुत्व का म्लेच्छीकरण का शुद्धिकरण का समय है यह।
दिल्ली में अदालती फैसला बाल विवाह को वैधता देने का नामांतर है।
नाबालिग विवाहिता का पतिसंगे सहवास बलात्कार नहीं है, सिद्धातंतः गौरीदान की प्राचीन परंपराओं का पुनर्वास है तो रामराज्य में मनुस्मृति अनुशासन लागू करने की ऐतिहासिक पहल भी यह है।
वैसे ही धर्मगुरुओं का विचार है कि इस्लाम की तरह मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मंदिर बनवाते हुए कारसेवा के मध्य एक स्त्री एक पुरुष के जन्म जन्मातर के बंधन का परित्याग का समय है यह और हिंदु पुरुषों को भी बहुविवाह की इजाजत होनी चाहिए।
बापुओं और स्वामियों के मुक्ताबाजारी समय का चरमोत्कर्ष है यह।
बाल विवाह को वैधता की पहल, बहुविवाह की धर्मपीठ से वकालत और सती प्रथा के पक्ष में संपादकीय, हिंदुत्व पुनरुत्थान और हिंदू राष्ट्र के लिए नवजागरण के कफन पर कीले ठोंकने के लिए अब हर स्त्री को नगरवधू आम्रपाली बन जाने या फिर शाश्वत वैधव्य का अनुशासित संयमित उपवासी विकल्प अपनाने का विकल्प चुनने के लिए बाध्य करने के ग्लोबल पुरुषतांत्रिक उपक्रम की ही गुंजाइश बाकी है।
नीतिगत विकलांगकता के अंत और लक्ष्यपूर्ति की सुनियोजित सर्जरी के मध्य अब भारत ही नहीं, आतंक के विरुद्ध अमेरिका के नये युद्ध के मध्य जापान सहयोगे इजराइल के बिना शर्त समर्थने अब नहीं बना अखंड हिंदू साम्राज्य तो फिर कभी नहीं। कभी नहीं।
विवाह मार्फते नाबालिग से बलात्कार को वैधता देने वाले अदालती फैसले से यूरोप, अमेरिका, मध्यपूर्व से लेकर बांग्लादेश पाकिस्तान के मीडिया में सुनामी आ जाने के बावजूद भारतीय मीडिया की पचनशील पाचन प्रक्रिया में किसी पत्थर का शोर भी नहीं है। कहीं कोई पत्ता भी नहीं खड़का है।
पश्चिम बंगीय मीडिया में उल्लेख भी नहीं है नवजागरण के अंत का तो बांग्लादेश में बाकायदा जश्न का माहौल है क्योंकि स्त्री सशक्तीकरण के उस नवजागरण के असर को मिटाने के लिए ही रक्तपात उपक्रम है बांग्लादेशी कट्टरपंथियों का, क्योंकि भारत मुक्त बाजार है तो इस्लामी राष्ट्र बांग्लादेश में अब भी बौद्धमय भारत के अवशेष मौजूद है।
और भारत के साथ बाल विवाह निषेध के ब्रिटिश कानून का 1929 का संस्करण बंग्लादेश में भी लागू है जो नाबालिग कन्याओं के साथ निरंकुश यौनाचार का निषेध करता है।
विरोधाभास विचित्र किंतु सत्य है कि हिंदू राष्ट्र का यह सिद्धांत हिंदुत्व के घोषित दुश्मन इस्लामी जिहादियों को सबसे ज्यादा आह्लादित कर रहा है। लेकिन भारत में धर्मनिरपेक्षता और स्त्री की देहमुक्ति के मंचों से अभी किसी तूफान का कोई अंदेशा है नहीं। सबको केसरिया कारपोरेट राज का गाजर भाने लगा है और बगुला भगत चोले का शबाबी हुस्न बहकाने लगी है।
गौरतलब है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत कारोबार के नियंत्रक जो राथचाइल्टस और राकफेलर परिवार रहे हैं, भारत में आर्थिक सुधारों के लिए अश्वमेध अभियान की कमान भी फिर उन्हीं हाथों में हैं।
उन्हीं के किराये के जो हाथ फोर्ट विलियम बनाकर लॉर्ड हेस्टिंग्स के सांढ़ को छुट्टा छोड़ रहे थे, वे ही हाथ अफ्रीकी देशों की तरह अखंड भारत के गर्भ से अश्वेत प्रजातियों के स्त्री पुरुष गुलामों को अमेरिका और लातिन अमेरिका भेज रहे थे।
और उन्हीं गुलामों के उत्तराधिकारी उत्तर आधुनिक अनिवासी भारतवंशी हैं। जिनके पुरखों को जानवरों की तरह बाड़ों में बंद रखा जाता था और सस्ते या मुप्त और बंधुआ श्रमिकों के लिए उनके पुरखे माताओं पिताओं से ब्रीडिंग करायी जाती थी।
भारत में भी सनातन जगत सेठों के वंशधरों के ही हवाले है राजकाज केसरिया कारपोरेट।
इसी संदर्भ ओ प्रसंगे सविनय निवेदन है कि संजोग से जापानी पूंजी को न्योता देने गये भारत के मुख्य स्वयंसेवक ने जापानी उद्योग को भारत में उपलब्ध सस्ते श्रम और कायदे कानून में पूंजी हित में जरूरी संशोधन का वादा किया है।
राष्ट्रव्यापी संबोधन में फिर उन्होंने पचास करोड़ के करीब युवाओं के समक्ष जापानी फासीवाद और नाजी परंपराओं का लगातार महिमामंडन किया है।
मामला बस इतना ही नहीं है।
प्रधान स्वयंसेवक के राजकाज में प्रकृति पर्यावरण नागरिक मानवाधिकार की आवाज उठा रहे गैरसरकारी गैर संघी स्वयंसेवी संगठनों, उन एनजीओ समूहों को नाथने का स्थाई बंदोबस्त भी कर लिया है जिनकी वजह से लाखों करोड़ की विदेशी पूंजी लंबित परियोजनाओं में फंसी हुई है।
उन लाखों करोड़ की बहुराष्ट्रीय लंबित परियोजनाओं का वृद्धि दर में बाधक और वित्तीयघाटा का अहम कारक बताया जा रहै है, जिन्हें हरी झंडी देने का कार्यभार किसी और को नहीं, माननीय कारपोरेट एकमुश्त रक्षा वित्त मंत्री अरुण जेटली को भी नहीं, बल्कि नागपुर मुख्यालय के ध्वजावाहक प्रकाश जावड़ेकर को सौंपा गया है।
उन्हीं एनजीओ समुदाय को विदेशी फंडिंग से वंचित करने की राजनयिक तत्परता के साथ साथ सीधे पीएमओ मंत्रालय के माध्यम से प्रोजेक्ट मार्फत ग्राउंड वर्क के लिए फंडिंग बजरिये समांतर केशरिया नेटवर्क बनाना शुरु कर दिया है।
इस पर हमने पहले भी विस्तार से लिखा है।
जो लोग मानवसंसाधन विकास हेतु शिक्षामंत्री की योग्यता की खिल्ली उड़ाने में वक्त जाया कर रहे हैं, उनसे निवेदन है कि उनकी नागपुर संबद्ध निर्णायक भूमिका को आंकिये कम नहीं। सीरियल की बहू यूं ही देश की शिक्षा मंत्री बनी नहीं हैं। वे कोई व्यक्ति नहीं, संस्था है। जिसका संचालन भी संस्थागत है। इसे समझिये।
प्रधान स्वयंसेवक ने जो मेधा वर्ग से शैक्षिक संस्थानों में पीरियड निःशुल्क लेकर स्वयंसेवी शिक्षकों का नया वर्ग खड़ा करने का उपक्रम शुरु कर दिया है, उसके गुणात्मक परिणाम पर भी फुरसत में सोचिये। यह भी संघी संस्थागत उपक्रम है।
डिजिटल देश की नालेज इकोनामी में संघप्रतिबद्ध स्वयंसेवक इन नवशिक्षकों के माध्यमे मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के अंत हेतु हिंदुत्व की दीक्षा और तदुपरांत दीक्षांत का स्थाई बंदबस्त है यह अति संस्थागत।
हर शैक्षिक संस्थान में नियमित शाखा लगाने का स्थाई बंदोबस्त है यह दरअसल।
मतलब यह कि तकनीक समृद्ध डिजिटल बायोमैट्रिक नई पीढ़ी नीली उपभोग संस्कृति के तहत मुक्त बाजार के धारक वाहक तो होंगे ही, उसके साथ ही वे हिंदू राष्ट्र के सिपाहसालार बनाये भी जायेंगे, ऐसा स्थाई संस्थागत बंदोबस्त हो गया।
कांग्रेस के तदर्थ प्रबंधन के मुकाबले ये संस्थागत परिवर्तन दीर्घ स्थाई होने को हैं। इसीलिए पहले चरण का मुलम्मा उतरने का साथ ही मनमोहन की विदाई और द्वितीय चरण के सुधारों का कार्यभर यह संघ समय।
नवजागरण के अवसान के मध्य स्थाई शाखा बंदोबस्त के इस आयोजन का असर क्या होना है, इसे अब आप समझते रहिये।
दास प्रथा के तहत ब्रीडिंग की पद्धति तो बहुचर्चित सेवाक्षेत्र में लागू कर ही दी गया है, जहां लगातार 72 घंटे से भी अधिक काम के लिए बंधुआ मजदूरों की दैहिक आवश्यकताओं का ख्याल रखते हुए रैव पार्टी, डेटिंग से लेकर फ्रीसेक्स तक के लिए भुगतान का बहुराष्ट्रीय इंतजाम है, जो दरअसल सनातन हिदुंत्व अधर्म का उत्तर आधुनिक मनुस्मृति मूल्यबोध है।
वैदिकी साहित्य में पन्ना दर पन्ना ऐसे अभिज्ञान शंकुतलम उदाहरण प्रचुर हैं। नियोग अपरंपार है और अप्सराओं का मुकम्मल सौंदर्यशास्त्र है जो इस धरा पर देवदासी प्रथा है।
पीएफ पेंशन को बाजार में झोंके जाने पर जो सन्नाटा है, उसके मद्देनजर संघ परिवार के संस्थागत राजकाज के स्थाई भाव के उपभोक्ता बाजार में कौन सी सोने की छड़ी से लोगों की नींद में अततः खलल डाल सकते हैं हम,बस अब उसकी ही खोज करनी होगी।
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