इसलिए बाक़ी सब चंगा है जी!
इसलिए बाक़ी सब चंगा है जी!
— क़मर वहीद नक़वी
‘इंडिया टुडे’ के एक सर्वे के मुताबिक़ 71 प्रतिशत लोग मोदी सरकार के काम से ख़ुश हैं। अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएँ, तो बीजेपी पहले से भी 32 सीटें ज़्यादा जीतेगी. पिछले चुनाव में उसे 282 सीटें मिली थीं। आज वह 314 सीटें जीत लेगी। पिछले चुनाव में बीजेपी को महज़ 31 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था, आज 40 प्रतिशत लोग बीजेपी को वोट देने के लिए तैयार हैं. अभी तो सरकार के सौ दिन भी नहीं पूरे हुए. यह कमाल हो गया!
और इससे भी बड़ा कमाल यह है कि आज 46 प्रतिशत मुसलमान भी मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी विकास के प्रतीक हैं! छह-सात महीने पहले तक 22 फ़ीसदी मुसलमान मोदी को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ समझते थे, आज केवल नौ फ़ीसदी ही ऐसा मानते हैं! हालाँकि मोदी सरकार बनने के बाद से संघ की सक्रियता बड़ी तेज़ी से बढ़ी है और सरकार व बीजेपी में भी उसका दख़ल बहुत बढ़ा है, लेकिन फिर भी सर्वे के मुताबिक़ ज़्यादातर लोगों को उम्मीद है कि मोदी संघ के रास्ते पर नहीं चलेंगे! तो जनता के मन में मोदी की मनमोहनी मूरत बस गयी है, तो बस सब बढ़िया है।
वैसे तो सब ठीक है। घर में सब कुशल मंगल है। आशा है कि आप भी स्वस्थ, सानन्द होंगे। यहाँ भी अपना लोकतंत्र ‘सेवक सरकार’ को पा कर अति प्रसन्न है। ‘स्वामी’ प्रजाजन भी ‘सेवक’ के कार्य से अत्यन्त प्रभावित हैं। यत्र तत्र सर्वत्र सर्वजन परम आनन्दित हैं! ऐसा ताज़ा समाचार अभी-अभी एक सर्वे में मिला है कि 71 प्रतिशत लोग सरकार के अब तक के काम से बिलकुल सन्तुष्ट हैं। (‘India Today’ Mood of the Nation, August 2014) अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएँ, तो नमो के नेतृत्व में बीजेपी पहले से भी 32 सीटें ज़्यादा जीतेगी। पिछले चुनाव में उसे 282 सीटें मिली थीं। आज चुनाव हो तो बीजेपी 314 सीटें जीत लेगी। पिछले चुनाव में बीजेपी को महज़ 31 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था, आज 40 प्रतिशत लोग बीजेपी को वोट देने के लिए तैयार हैं। अभी तो सरकार के सौ दिन भी नहीं पूरे हुए। यह कमाल हो गया!
मुसलमानों के भी मोदी!
और इससे भी बड़ा कमाल यह है कि आज 46 प्रतिशत मुसलमान भी मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी विकास के प्रतीक हैं! छह-सात महीने पहले तक 22 फ़ीसदी मुसलमान मोदी को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी’ समझते थे, आज केवल नौ फ़ीसदी ही ऐसा मानते हैं! क्यों भई, ऐसा क्यों? जबकि जब से मोदी सरकार आयी है, संघ प्रमुख मोहन भागवत रोज़ ‘हिन्दू राष्ट्र’ का नया तराना छेड़ देते हैं। भाई अशोक सिंहल अब बिलकुल आश्वस्त हैं कि राम मन्दिर का निर्माण तो बस अति निकट है। वह अब यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड की डुगडुगी भी बजाने लगे हैं। दीनानाथ बतरा जी के पाठ गुजरात से चल कर मध्य प्रदेश में दस्तक देने लग गये हैं। वहाँ एक विज्ञान मेले में बतरा जी के ‘वैज्ञानिक चिन्तन’ से बहुत लोगों ने बड़ी ‘प्रेरणा’ ली। और ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’ के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब एक नये इतिहास लेखन की तैयारी में है! यह सब है, लेकिन फिर भी ज़्यादा नहीं तो 47 फ़ीसदी लोगों को पक्की उम्मीद है कि मोदी संघ के रास्ते पर नहीं चलेंगे! बाक़ी 31 फ़ीसदी लोग मानते हैं कि मोदी एक सन्तुलन बना कर चलेंगे। अब यह अलग बात है कि मोदी और नये बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दोनों ही बीजेपी को संघ की देन हैं और अमित शाह की नयी टीम बीजेपी में संघ से आये लोगों की भरमार है! लेकिन जनता के मन में मोदी की मनमोहनी मूरत बस गयी है, तो बस सब बढ़िया है।
क्या होगा लालू-नीतिश ‘महाफ़ार्मूले’ का?
तो भइया सब बढ़िया है! जनता मगन है। हमको तो लालू-नीतिश जैसों की चिन्ता सता रही है। ‘कम्यूनल फ़ोर्सेज़’ को हराने के लिए बिहार उपचुनाव में दोनों बरसों की रंजिश छोड़ कर गले मिल लिये। पर लगता नहीं कि जनता का मूड अभी कुछ कम्यूनल-सेकुलर टाइप है! और इस गलबहियाँ के बावजूद जनता ने अगर ‘कम्यूनल फ़ोर्सेज़’ को ही चुमकार लिया तो? एमवाई और अति पिछड़ा के ‘महाफ़ार्मूले’ की संयुक्त सेना अगर कहीं हार गयी, तो? तो दोनों को राजनीति के प्राइमरी स्कूल में फिर से पढ़ने जाना होगा!
वैसे भाईसाहब, ख़ैरियत यही है कि लालू-नीतिश का तो उपचुनाव का मामला है, हार भी गये तो बस ज़रा-सी नाक कटेगी! सरकार तो किसी न किसी प्रकार घिसटती ही रहेगी। ख़ैर तो काँग्रेस मनाये, यूपीए मनाये। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहाँ रिज़ल्ट तो अभी से आउट है। अमित शाह को महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा की कुछ ज़्यादा फ़िक्र नहीं। वह तो इस बार जम्मू-कश्मीर में बीजेपी सरकार बनवा कर नया इतिहास रचना चाहते हैं। और ऐसा होना नामुमकिन लगता भी नहीं है! दिल्ली में भी अगर विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी इस बार ‘आप’ पर भारी ही पड़ेगी, क्योंकि ‘आप’ के पास इस बार हाथ में कोई ‘सुदर्शन चक्र’ नहीं दिखता! और दिखने से याद आया कि काँग्रेस की चुनौंधी तो अभी तक ठीक ही नहीं हुई है! वह रतौंधी जानते हैं न आप, जिसमें रात होने पर साफ़ दिखना बन्द हो जाता है। तो काँग्रेस को चुनाव के बाद चुनौंधी हो गयी है। कुछ साफ़-साफ़ दिखता नहीं। एंटनी कमेटी ने भी बहुत देखने की कोशिश की कि पार्टी इतनी बुरी तरह क्यों हार गयी? लेकिन कुछ दिखा ही नहीं। अब जब कुछ दिखा ही नहीं तो कार्रवाई क्या हो, क़दम क्या उठायें, क्या बदलें, क्या सुधारें? जो बदलना है, वह बदल नहीं सकते। तो आँखे मूँदे रहने में ही भलाई है! ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा। कुछ विधानसभा चुनाव और हार जायेंगे!
राजनीति का तो यही हाल है। पिटी हुई पार्टियाँ अभी तक वैसी ही पिटी हुई हैं। आगे भी शायद अभी कुछ दिनों तक ऐसी ही मरियल पड़ी रहें। बाक़ी देस में सब अच्छा चल रहा है। सिवा इसके कि सरकारी समारोहों में प्रधानमंत्री के सामने एक के बाद एक करके तीन ग़ैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों की ख़ूब लिहाड़ी ली गयी। ये मुख्यमंत्री बड़े नाराज़ हैं। ये कहते हैं कि लिहाड़ी लेनेवाले बीजेपी के लोग थे। बीजेपी कहती है कि मुख्यमंत्रियों से जनता नाराज़ है तो बीजेपी क्या करे! अब कारण जो भी हो, इसके पहले ऐसे नज़ारे आमतौर पर नहीं दिखते थे।
ईमानदारी का मतलब, अक़्लमंद को इशारा काफ़ी!
तो भइया, राजकाज में ऐसी छोटी-मोटी बातें तो चलती ही रहती हैं। इनका क्या रोना? हम तो ख़ुश हैं कि सरकार बहुत मज़े में चल रही है। सारे मंत्रीगण ‘सरकार’ के आगे हाथ बाँधे खड़े रहते हैं। अफ़सरों से कह दिया गया है कि वह बिलकुल निडर हो कर ईमानदारी से काम करें। किसी राजनीतिक दबाव में न आयें। इसीलिए अशोक खेमका को हरियाणा से और दुर्गाशक्ति नागपाल को उत्तर प्रदेश से केन्द्र में ले आये। इन दोनों को वहाँ इनकी सरकारें परेशान कर रही थीं! देखिए न, सरकार ईमानदार अफ़सरों का कितना ख़याल रखती है! लेकिन अब हर मामला एक जैसा नहीं होता। मजबूरन संजीव चतुर्वेदी नाम के एक अफ़सर को एम्स से हटाना भी पड़ा! उसने वहाँ भ्रष्टाचार के कई मामलों की पोल खोली थी। बीजेपी के मौजूदा महासचिव जे. पी. नड्डा बहुत दिनों से उस अफ़सर के ख़िलाफ़ चिट्ठी-पत्री कर रहे थे। सुना है कि पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी नहीं चाहते थे कि वह अफ़सर वहाँ रहे। लेकिन तबके प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और संसदीय समिति ने तय किया कि अफ़सर नहीं हटेगा। यह भी तय किया कि अफ़सर कम से कम कितने दिन वहाँ रहेगा। नड्डा साहब की आपत्ति तब नहीं मानी गयी। अब मान ली गयी! अफ़सर ने हिमाचल काडर के एक अफ़सर को लपेटे में ले लिया था। सरकार ने उसको ईमानदारी से काम करने का मतलब समझा दिया! दूसरे अफ़सरों को भी ज़रूर समझ में आ गया होगा! अक़्लमंद को इशारा काफ़ी!
बाक़ी तो सब ठीक ही है। अब थोड़ा जज लोग भी सरकार से नाराज़ हैं। सरकार ने कालेजियम सिस्टम ख़त्म करने के लिए नया क़ानून बना दिया। जजों की भर्ती में अब जज मनमानी नहीं कर पायेंगे। छह मेम्बरों का एक आयोग भर्ती करेगा। इसमें एक क़ानून मंत्री भी होगा और दो ‘सम्मानित’ व्यक्ति भी। अब किसी दो ने किसी नाम पर आपत्ति कर दी, तो वह जज नहीं बन पायेगा। कहने का मतलब यह कि सरकार की ‘मर्ज़ी’ के बिना आप चुने नहीं जा सकेंगे। वैसे सरकार चाहती है कि न्यायपालिका पूरी तरह ‘स्वतंत्र’ रहे, बशर्ते कि चुनने की चाबी सरकार के हाथ में हो!
तो भइया कुल जमा सब हालचाल ठीक ही है। अब जजों की भर्ती वाला मामला और राज्यपाल को हटाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। देखते हैं कि वहाँ क्या होता है। जैसा होगा, बतायेंगे। चिट्ठी-पत्री लिखते रहना। अभी मन में सपनों की गंगा है। इसलिए बाक़ी सब चंगा है जी!
(लोकमत समाचार, 23 अगस्त 2014)


