ईवीएम : अमरीका से तय होते हैं भारतीय चुनाव के नतीजे
ईवीएम : अमरीका से तय होते हैं भारतीय चुनाव के नतीजे
राम नरेश गौतम
अब जबकि मध्यप्रदेश के भिंड में एक ईवीएम का कोई भी बटन दबाने पर वोट सिर्फ भाजपा को ही मिलने का खुलासा हो ही चुका है, तब यह बात सिर्फ कल्पना नहीं रह जाती कि ईवीएम को मनमुताबिक संचालित किया जा सकता है।
तथ्य और परिस्थितियां इस बात की गवाही देती हैं कि भारतीय चुनावों (लोकसभा, विधानसभा) के नतीजे अमरीका से तय होते हैं।
यह कारगुजारी शुरू हुई चौदहवीं लोकसभा के चुनावों (2004) से। यही वह चुनाव थे जबकि पूरे देश में अमरीकी जादुई की छड़ी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से मतदान हुए।
इससे ठीक एक साल पहले 2003 में अमरीका के कैलिफोर्निया के पालो अल्टो में एंडी रुबिन, रिच माइनर, निक सियर्स और क्रिस वाइट ने एंड्रायड कंपनी की स्थापना की थी।
ईवीएम मशीन को एंड्रायड के माध्यम आसानी से इस तरह सेट किया जा सकता है कि मनमाफिक प्रत्याशी को मनचाहे वोट प्रदान किए जा सकें।
हैदराबाद आधारित नेट इंडिया के विशेषज्ञ डॉ. जे एलेक्स हेल्डरमैन, हरि के. प्रसाद ने मिशिगन विश्वविद्यालय के ईवीएम विशेषज्ञों और हॉलैंड के सुरक्षा विशेषज्ञ रोप गोंगग्रिज्प ने भारतीय ईवीएम को लेकर यह शोध भी किया था कि इनके माईक्रोकंट्रोलर के जरिए इन्हें आसानी से ट्रैप किया जा सकता है।
अमरीका कैसे करता है ईवीएम पर कंट्रोल
दरअसल, कहने को तो ईवीएम का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया की हैदराबाद इकाई और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की बेंगलूरु इकाई करती है। मगर असलियत में देश की ये सार्वजनिक कंपनियां ईवीएम का ढांचा ही तैयार करती हैं।
ईवीएम को कंट्रोल करने वाला 'माईक्रोकंट्रोलर' अमरीकी कंपनी 'माइक्रोचिप टेक्नोलॉजी' और जापान की कंपनी 'रेनसास इलेक्ट्रॉनिक्स' मुहैया करवाती हैं। ये माइक्रोकंट्रोलर हरेक ईवीएम को संचालित करने के लिए उनके 'दिमाग' की तरह होते हैं। माइक्रोकंट्रोलर बनाने वाली दोनों कंपनियों के कार्यालय भारत में भी हैं।
एंड्रायड मोबाइल के जरिए इन माइक्रोकंट्रोलर को मनचाहे परिणाम देने लायक बनाया जाता है। एंड्रायड कंपनी भी गूगल ने 2005 में खरीद ली है। अमरीका के लिए सीआईए की जासूसी का सबसे अहम हथियार गूगल ही है।
क्या है अमरीका की जरूरत
तो हम आते हैं मुद्दे पर। 2004 में मुकाबले में थे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी। अमरीका ये जान चुका था कि पंथनिरपेक्षता के पक्षकार अटलबिहारी वाजपेयी को फिर से प्रधानमंत्री बनाकर वह अपने हित नहीं साध सकता। खासकर ईरान, चीन, रूस, अफगानिस्तान, पाकिस्तान के मामलों में। इसीलिए उसने कांग्रेस को इस लिहाज से 145 सीटें जितवाकर सर्वाधिक सांसद वाली पार्टी बनवाया।
किस पार्टी को सत्ता में लाना चाहिए, इसके पीछे काम करती है अमरीका की खुफिया ऐजेंसी सीआईए (सेंट्रल इंटेलिजेंस ऐजेंसी)। भारत के हरेक जिले में फैले सीआईए के जासूस यह सूचना लगातार अमरीका पहुंचाते हैं कि यहां अमरीकी कंपनियों के पैर जमाने की कहां-कहां और किसके मार्फत गुंजाइश बन सकती है।
आईए आगे बढ़ते हैं। साल दर साल 5 साल गुजरे और आ गया 15वीं लोकसभा का चुनाव साल 2009। इस बार लालकृष्ण आडवाणी भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार घोषित किए गए। चूंकि मनमोहन सिंह की सरकार ने अमेरिकी-यूरोपीय कंपनियों को भारत में निवेश करने में कोई मुश्किलें खड़ी नहीं कीं, अलबत्ता बढ़ावा ही दिया। इसलिए अबकी बार अमरीका ने कांग्रेस को 206 सीटें जिताकर अपने उद्योगपतियों के भारत में अपना बाजार बनाने का रास्ता साफ किया।
इसी बीच भाजपा और आरएसएस ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को अपनी ओर से प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में पेश करने की जमीन तैयार करने की कवायद शुरू कर दी।
सीआईए ने की भाजपा नेताओं की जासूसी
जैसे ही अपने जासूसों के माध्यम से अमरीका को भनक लगी कि अगली बार नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने की आरएसएस तैयारी कर रहा है तो सीआईए ने 2010 में भाजपा नेताओं की जासूसी करनी शुरू कर दी।
इस बात का खुलासा निर्वासित जीवन जी रहे अमरीकी खुफिया तंत्र के कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन के मार्फत विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने किया। बाद में अमरीका ने भी इस बात को माना कि जासूसी करवाई गई है। जासूसी के दरमियान सीआईए के हाथ लगी नरेंद्र मोदी के बारे में बेहत संवेदनशील गोपनीय जानकारी।
नरेंद्र मोदी को बनाया मोहरा
नरेंद्र मोदी के बारे में खुफिया जानकारी मिलते ही अमरीका को जैसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी मिल गई। स्थिति साफ हो गई कि अगर पाकिस्तान को अपने साथ मिलाने वाले चीन पर दबाव बनाना है तो नरेंद्र मोदी से अच्छा मोहरा और कोई नहीं हो सकता। जिसका नतीजा रहा कि अमरीका ने ईवीएम के जरिए 2014 में भाजपा को 282 सीटें जितवाईं और अपनी कठपुतली नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवा दिया।
नमो ने आते ही खोला इंडिया का गेट
26 मई 2014 को भारत का प्रधानमंत्री बनने के ठीक चार महीने बाद 25 सितंबर 2014 को नरेंद्र मोदी ने अमरीका के दबाव में 25 सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को खुली छूट दे दी। इस कारगुजारी को छिपाने के लिए सरकार ने भारतीयों को 'मेक इन इंडिया' का झुनझुना दिखाया।
मोदी ने विदेशी कारोबारियों को रेलवे, वाहन, दवा, सेवा, रसायन, कपड़ा, हवाई क्षेत्र के साथ ही टाउनशिप के विकास के लिए एफडीआई की 100 प्रतिशत कर दिया।
नोट - Hari K. Prasad, is a Hyderabad-based technologist working at a research and development company. In 2009, the Election Commission of India publicly challenged Prasad to demonstrate that EVMs could be tampered with, only to withhold access to the EVMs at the last minute.
Dr. J. Alex Halderman is a professor of computer science at the University of Michigan. A noted expert on electronic voting security, Professor Halderman demonstrated the first voting machine virus and helped lead California's "top-to-bottom" electronic voting review. He holds a Ph.D. from Princeton University.
Rop Gonggrijp is a technology activist from Holland who was instrumental in having EVMs banned in the Netherlands. In 1993, Gonggrijp cofounded XS4ALL, the first ISP in the Netherlands to offer Internet service to the general public.


