आज VVPAT वाली सुनवाई के सिलसिले में मैंने कई घंटों तक DB Live पर राजीव रंजन श्रीवास्तव और अमलेन्दु उपाध्याय की लाइव कवरेज़ को देखा-सुना और वहाँ जाकर रोका, जहाँ बताया गया कि अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी।

सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर से चुनाव आयोग की दलीलों को देखते हुए ऐसा अहसास हो रहा है कि मोदी सरकार की ओर से चुनाव आयोग को VVPAT की सभी पर्चियों की गिनती को लेकर उसी तरह के इशारे मिले हैं जैसा इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को दिया गया था।

इस सिलसिले में कुछ बातें आप लोगों से साझा करना चाहूँगा....

1. मैंने DB Live पर एक दफ़ा कहा था कि 2019 से पहले चुनाव आयोग किसी विधानसभा में सिर्फ़ एक मशीन की पर्चियों की अलग से गिनती भी किया करता था। तब याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से माँग की थी इस गिनती को 50 प्रतिशत किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ठीक है पर्चियों की गिनती को 1 से बढ़ाकर 5 किये देते हैं। वो भी प्रत्येक विधानसभा के लिए।

2. संसदीय चुनाव में एक लोकसभा क्षेत्र में कम से कम 6 से लेकर अधिकतम 32 विधानसभाएँ (सिक्किम) हो सकती हैं। पुडुचेरी की इकलौती सीट के पीछे 30 विधानसभा सीटें हैं। लिहाज़ा, अलग-अलग लोकसभा सीटों में पर्चियों की गिनती की संख्या का भी अलग-अलग होना लाज़िमी है।

3. मतदाताओं के हिसाब से देखें तो सबसे ज़्यादा यानी क़रीब 33 लाख मतदाता तेलंगाना के मलकाजगिरि क्षेत्र में हैं तो लक्षद्वीप का सांसद महज 51-52 हज़ार मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। दिल्ली की भी हरेक संसदीय सीट में औसतन 10 विधानसभाएँ हैं।

4. मतदान के लिए पोलिंग स्टेशन और पोलिंग बूथ के गठन के लिए चुनाव आयोग अलग-अलग मापदंड अपनाता है। एक पोलिंग स्टेशन में अनेक पोलिंग बूथ हो सकते हैं। लेकिन एक बूथ में आमतौर पर 1,000 से ज़्यादा मतदाता नहीं होते हैं। आमतौर पर प्रति बूथ 800 के आसपास मतदाता रखे जाते हैं।

5. पोलिंग बूथ के मामले में चुनाव आयोग को ध्यान रखना होता है कि किसी भी मतदाता के घर से इसकी दूरी किसी भी दशा में 2 किलोमीटर से ज़्यादा नहीं हो। इसीलिए दुर्गम इलाकों में मुट्ठीभर लोगों के लिए भी बूथ बनाना पड़ता है।

6. पोलिंग बूथ को सरकारी स्कूल में ही बनाने को प्राथमिकता दी जाती है। दूसरी प्राथमिकता अन्य सरकारी भवन की होती है। तीसरे स्तर पर सामुदायिक इमारत को चुना जाता है।

7. लगे हाथ बूथ की आन्तरिक प्रक्रिया को भी समझते चलते हैं। पोलिंग का समय आमतौर पर गर्मियों में सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक और सर्दियों में सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक का रखा जाता है। यानी, कम से कम 9 घंटे या 540 मिनट मतदान के लिए रखे जाते हैं। मतदान के वक़्त तक पोलिंग स्टेशन के भीतर आ चुके लोगों को मताधिकार सुनिश्चित करवाना अनिवार्य है। भले ही इसकी वजह से मतदान की अवधि लम्बी हो जाए।

8. मतदानकर्मियों के लिए 540 मिनट में क़रीब 800 मतदाताओं का मतदान करवाना कोई मामूली काम नहीं है। क्योंकि यदि बूथ के कुल मतदाताओं में से 70 प्रतिशत ने भी औसतन मतदान किया तो 560 मत EVM में पड़ेंगे। प्रति मतदाता के लिए ये अवधि 1 मिनट से भी कम बैठती है। इसीलिए उत्तर पूर्व के राज्यों में जहाँ 80 से 85 प्रतिशत तक मतदान करने की परम्परा है वहाँ बूथों की संख्या बढ़ाकर प्रति बूथ मतदाताओं की संख्या को कम रखा जाता है।

कैसे होता है मतदान ?

9. अब ज़रा ये सोचिए कि मतदान कर्मियों को एक मिनट के भीतर क्या-क्या काम सुनिश्चित करना होता है? सबसे पहले वो मतदाता पर्ची की जाँच करते हैं। वोटर लिस्ट में उनके नाम के आगे टिक करते हैं। फिर एक छोटी सी पर्ची पर उसका सीरियल नम्बर लिखकर मतदाता को अगले चुनाव कर्मी को देने के लिए दिया जाता है जो एक अन्य लिस्ट पर मतदाता के लिंग यानी स्त्री या पुरुष की एक अन्य शीट में समुचित ढंग से टिक करता है तथा पर्ची को सुई-धागे से जुड़ी एक स्पाइक में नत्थी करता चलता है। इसी लिस्ट से मतदान के प्रतिशत का पता चलता है। इसकी संख्या को हर घंटे पीठासीन अधिकारी को SMS के ज़रिये चुनाव आयोग को एक प्रक्रिया के तहत भेजना पड़ता है। इसी से हमें ये पता है कि कितने घंटे में कितने प्रतिशत मतदान हुआ?

10. उधर, मतदाता से छोटी पर्ची पाने के बाद एक चुनाव कर्मी उसकी अँगुली पर निशान लगाता है। इसके बाद पीठासीन अधिकारी ईवीएम की कंट्रोल यूनिट को मतदान दर्ज़ करने के लिए सक्षम (enable) बनाता है और मतदाता वोटिंग मशीन (balloting unit) पर जाकर अपने पसन्दीदा बटन को दबाना होता है। बटन दबाने के बाद एक ओर बीप की आवाज़ सुनाई देती है तो दूसरी ओर, वहीं बग़ल में रखे VVPAT में मतदाता को अपनी पर्ची की एक झलक को देखने के लिए 7 सेकेंड का वक़्त मिलता है।

11. मतदान ख़त्म होने के बाद सभी मशीनों को निर्धारित प्रक्रिया पूरी करके सील किया जाता है। इन्हें स्ट्रॉग रूम में जमा करवाया जाता है।

कैसे होती है मतगणना ?

12. मतगणना के दिन स्ट्रॉग रूम से बारी-बारी करके पोलिंग बूथ की कंट्रोल यूनिट वाली मशीन को लाया जाता है। गिनती के लिए हरेक विधानसभा के लिए 14 टेबल बनाये जाते हैं। हरेक कंट्रोल यूनिट से विभिन्न उम्मीदवारों को मिले मत एक अलग शीट पर लिखें जाते हैं और एक बार सभी 14 टेबल के आँकडों मिल जाने के लिए एक दौर का आँकड़ा उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट और चुनाव आयोग के लिए जारी किये जाते हैं।

अब बात सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई से जुड़े कुछ अहम तथ्यों की।

13. VVPAT में सिर्फ़ थर्मल पेपर इस्तेमाल होता है, क्योंकि इसकी प्रिंटिंग बहुत तेज़ होती है। लेकिन थर्मल पेपर की सबसे बड़ी कमज़ोरी ये है कि इसकी छपाई कुछेक महीने में ही अपने आप ग़ायब हो जाती है। इसीलिए हम लोगों को थर्मल प्रिंटिंग वाले बिल आदि को यदि लम्बे अरसे तक सहेजना हो तो उसकी फ़ोटोस्टेट करने की सलाह दी जाती है।

14. चुनाव आयोग ने 2019 में महज 4 महीने बाद VVPAT की पर्चियों को शायद इसीलिए Shredders में डालकर नष्ट कर होगा क्योंकि उसके बाद उसके पठनीय रहने के आसार बेहद घट जाते हैं। हालाँकि, जन प्रतिनिधित्व क़ानून में VVPAT की पर्चियों को कम से कम साल भर तक सुरक्षित रखने का प्रावधान है, बशर्ते कि तब तक कोई निर्वाचन किसी अदालत के विचाराधीन नहीं हो।

15. संविधान सभा के सदस्य केएम मुंशी ने चुनाव की पवित्रता और अहमियत की बात की थी। उस ज़माने में 50 प्रतिशत VVPAT गणना जैसी कोई बात नहीं थी क्योंकि VVPAT ही नहीं था।

16. जस्टिस खन्ना और जस्टिस दत्ता के सभी सवाल ये सुनिश्चित करने से जुड़े थे कि उनके जजमेंट में किन-किन बातों का ख़्याल रखा जाना चाहिए जिससे कोई ambiguity नहीं पैदा हो?

17. चुनाव आयोग हमेशा से VVPAT की पर्चियों की गिनती करने से कन्नी काटता रहा है। कभी ज़्यादा वक़्त लगने की दलील पर तो कभी किसी अन्य ढकोसले के आधार पर।

मुकेश कुमार सिंह

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं, टीवी चैनलों में संपादक रहे हैं)

Elections will change due to Supreme Court's decision on EVMs