ईस्ट इण्डिया कम्पनी का ही वंशज है मेक इन इण्डिया नामक शेर
ईस्ट इण्डिया कम्पनी का ही वंशज है मेक इन इण्डिया नामक शेर
'मेक इन इण्डिया(MAKE FOR INDIA)’ का खूंखार शेर
आपने शेर देखा होगा। जंगल में नहीं तो सरकस में, नहीं तो चिड़ियाघर में और वहाँ भी नहीं तो टीवी में जरुर देखा होगा। शेर की प्रकृति और प्रवृत्ति की कहानी भी आपने सुनी होगी। आप यह भी जानते होंगे कि शेर घास नहीं खाता। वह दूसरे जानवरों को मार कर खाता है। इंसान उसके सामने आ जाय तो वह उसको भी मारकर खा जाता है। यह तो रही ऐसे शेर की कहानी जिसके बारे में मुझसे ज्यादा जानते-समझते होंगे।
मैं अपने इस लेख में एक दूसरी प्रजाति के शेर के बारे में बताने जा रहा हूँ। यह अभी ताजा-ताजा पैदा हुआ है। यह किसी जंगल में नहीं बल्कि संसद में पैदा हुआ है। यह किसी शेरनी के गर्भ से पैदा नहीं हुआ है, इसे देश के प्रधानमंत्री ने पैदा किया है। आप तो जानते ही है हमारे सनातन धर्म में यह सब होता आया है। ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पैर से शूद्र और तमाम देवी-देवता भी हाथ, कान, हवा से पैदा हुये हैं। बहरहाल मैं प्रधानमंत्री द्वारा पैदा किये गये शेर के बारे में बता रहा था।
इस शेर का जन्म 25 सितम्बर, 2014 को हुआ। इसकी फ¨ट¨ देखने से लगता है यह बहुत विशाल है। इसके शरीर पर धारियां नहीं, बल्कि मशीनों के कल-पुर्जे हैं। वैसे तो खूंखार से खूंखार जानवर का नवजात बच्चा भी बेहद कोमल और मुलायम होता है, उसे दुलारने, सहलाने का मन करता है। लेकिन 25 सितम्बर वाले शेर से डर लगता है। हो सकता है आपको डर न लगे पर मुझे तो लगता है। खैर! जब इसका जन्म हो गया तो जन्म दिन भी मनाया गया। इस समार¨ह में इस प्रजाति के लोग भारी संख्या में पहुँचे। हाल खचा-खच भर गया था बहुतों को खड़ा रहना पड़ा। प्रधानमंत्री ने इसका नाम रखा ‘मेक इन इण्डिया’। यह नाम इस नयी प्रजाति के शेर के शरीर पर मोटे अक्षरों में लिख दिया गया। यह तो रही इसकी पैदाईश की कहानी। यह ‘मेक इन इण्डिया’ शेर अपने जीवन और शासन काल में क्या-क्या करेगा, यह जानना बेहद जरुरी है। तो चलिये सीधे चलते हैं देश के प्रधानमंत्री और इस शेर के जनक नरेन्द्र मोदी के पास। मोदी ने ‘मेक इन इण्डिया’ के जन्म दिन पर जो बातें कहीं, जो मकसद बताया उस पर गौर करना जरुरी है।
नरेन्द्र मोदी ने 25 सितम्बर को मेक इन इण्डिया को एक अभियान बताया, और कहा कि यह शेर का पहला कदम है। अभियान का मकसद भारत को विदेशी निवेश का केन्द्र बनाना है। भारत का स्थान विदेशी निवेश के लिए उपयुक्त देशों की सूची में 134 वाँ है। मोदी की योजना इसे 50वें नम्बर पर लाने की है। इसके लिये तीन साल का समय तय किया गया है। मोदी का इरादा इसे समय से पहले हासिल करने का है। इसके लिये वे विदेशी पूंजीपातियों को देश में पूंजी लगाने का आह्नान कर रहे हैं। इस सन्दर्भ में लालकिले से 15 अगस्त को अपने भाषण में कहा था ‘आप आइये, अपनी पूंजी लगाइये, यहाँ उत्पादन कीजिए और मुनाफा कमाने के लिये आप इसे दुनिया के किसी भी कोने में बेचिये’। उन्होंने विदेशी पूंजीपतियों की पूंजी और उनके मुनाफे को सुरक्षित करने का आश्वासन भी दिया और कहा कि आप द्वारा लगायी जाने वाली परियोजनाओं में आ रही बाधा को हर कीमत पर दूर किया जायेगा।
मोदी ने मेक इन इण्डिया नामक शेर के अभियान के लिये देश के 25 मुख्य क्षेत्रों को चिन्हित किया है इसमें वाहन, रसायन, आईटी, दवा, कपड़ा, विमानन, चमड़ा, रेलवे, पर्यटन, रक्षा आदि क्षेत्र रखे गये हैं। इसके लिये 100 स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की गयी है। विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये सक्रिय एजेंसी इन्वेस्ट इण्डिया के साथ एक टीम लगायी गयी है जो निवेशकों को ऑनलाइन सूचना मुहैया करायेगी और अधिकारियों के साथ बैठक करवायेगी। विशेष रेल, इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के निर्माण, संचालन और रख-रखाव के लिये शत-प्रतिशत विदेशी निवेश के दरवाजे खोल दिये गये हैं, इनकी मंजूरी स्वतः मिल जायेगी। उद्योगों को भारी कर रियायते देने का प्रस्ताव भी रखा गया है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ।
यह रही शेर के अभियान के मकसद की रुप रेखा। इस मकसद को पूरा कैसे किया जायेगा, या किया जा रहा है? इसे जानना बेहद जरुरी है। तो आइये उसे जानने समझने की कोशिश करें।
पहली बात यह कि यह विदेशी पूंजी जो लायी जा रही है वह कहीं न कहीं जमीन पर ही लगेगी यानि परियोजनाओं के लिये फैक्ट्रियां किसी न किसी की जमीन पर ही लगेंगी। तो पहला सवाल तो यह कि यह विदेशी पूंजी जो लाई जा रही है, वह कहीं न कहीं जमीन पर ही लगेगी, यदि जमीन का मालिक किसान व आदिवासी इसे न देना चाहे तो क्या किया जायेगा? मोदी सरकार ने इसके लिये राज्यों के राजस्व मंत्रियों की 27 जून की बैठक में भू अधिग्रहण कानून 2013 में बड़े बदलाव का प्रस्ताव रखा। जिसमें कहा गया है कि परियोजनाओं के लिये जमीन लेते समय जमीन के मालिकों से मंजूरी लेने की अनिवार्यता हटा देनी चाहिये। छोटी परियोजनाओं के लिये अनिवार्य सामाजिक असर आकलन के प्रावधान को हटा दिया जाना चाहिये। यदि जमीन किसी परियोजना के लिये ली गयी और वह परियोजना नहीं लगायी गयी तो वह जमीन, जमीन के मूल मालिकों, उनके उत्तराधिकारियों को लौटा देने का प्रावधान थी। जिसे जून की बैठक में जमीन लौटा देने के प्रावधान को हटा देने का प्रस्ताव रखा गया। यह भी प्रस्ताव रखा गया कि विक्रय अभिलेखों के आधार पर जमीन मिल पाती है। इसके अलावा भू-अधिग्रहण के राज्यों से सम्बन्धित कार्रवाइयों को भी कानून की जद से हटा देने का प्रस्ताव रखा गया।
यदि इन प्रस्तावों के परिणाम पर गौर करें तो किसी भी कीमत पर किसानों, आदिवासियों से उनकी जमीनें छीन ली जायेगी। हरी-भरी जमीन पर कंकरीट के महल तैयार किये जायेंगे। इसमें मशीनें गड़गड़ायेंगी। इस देश की धरती से बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा का बेतहाशा द¨हन होगा और देशी-विदेशी कम्पनियों का मुनाफा दिन दूना-रात चौगुना बढ़ेगा। दूसरी तरफ लाखों किसान आदिवासी जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर दिये जायेंगे। उनकी जीविका का साधन छिन जायेगा और वे इस मशीनी कल-पुर्जे से बने शेर का शिकार बन जायेंगे।
इस परियोजनाओं के मकसद से सम्बन्धित दूसरा सवाल यह उठता है कि इसके लिये बिजली कहाँ से आयेगी? फैक्ट्रियाँ लालटेन से तो चलेगी नहीं और थर्मल पावर से बिजली के लिये कोयला और पानी की ज्यादा मात्रा चाहिये। साथ ही जमीन चाहिये जिस पर ये पावर प्लांट लगें। यह सब कुछ इस ‘शेर दिल’ अभियान के लिये किया जा रहा है। नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर पानी पावर प्लाण्ट को दिया जा रहा है। जिससे जलीय जीवों की जिन्दगी संकट में पड़ गयी है। नदियों के सहारे जीवन यापन करने वाले मछुआरों, किसानों की जीविका संकट में पड़ गयी है। ऊपर से इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला विषैला कचरा, नदियों को प्रदूषित कर रहा है। नदियों से जुड़ी छोटी-छोटी नहरें जिससे किसान अपना खेत सींचते थे, वह सूख गयी हैं। बरसात के मौसम में भी इन नहरों में पानी का नामो निशान तक नहीं है। पर्यटन के विस्तार की योजना भी इस शेर के अभियान में शामिल है। पहाड़ों को बारुदी विस्फ¨ट से तोड़ा जायेगा, सड़क बनायी जायेगी, होटल खोले जायेंगे और देशी-विदेशी पूंजीपतियों, परजीवियों के लिये ऐशगाहों का निर्माण भी किया जायेगा। इस अभियान का परिणाम तो हम देख ही रहे हैं। पिछले साल जून में आयी प्राकृतिक आपदा ने उत्तराखण्ड को तबाह कर दिया। हजारों की संख्या में लोग मारे गये और लाखों की सम्पत्ति पानी की तेज धारा में बह गयी या मलबों के नीचे दफन हो गयी। कश्मीर के बाढ़ की विभीषिका तो लोग झेल ही रहे हैं तब तक हुदहुद नामक समुद्री तूफान भी तहस-नहस करने पर आमादा होकर आ धमका। बहरहाल विकास के मुनाफा केन्द्रित विकास मॉडल के पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव से प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है। म्युनिख रे ग्लोबल इन्श्योरेंस नामक बीमा कम्पनी के द्वारा 2012 में जारी रिपोर्ट के अनुसार 1980 के बाद से मौसमी जलवायु से सम्बन्धित प्राकृतिक आपदाओं की घटनायें दो गुनी हो गयी हैं।
यदि यह अभियान तीन साल के अन्दर पूरा होगा, तब इस देश का मंजर क्या होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। अभी तो यह 1947 से अब तक के समय में जो विशालकाय शेर निर्मित हुआ था, उसके प्रभाव का प्रकोप देश की जनता झेल रही है। जब यह शेर दौड़ लगायेगा तब क्या होगा? देखना बाकी है।
इस परियोजना के मकसद को हासिल करने के लिए इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों की जरुरत होगी। बेशक यह बात सही है कि लाखों लोगों को उजाड़ा जायेगा और दहायी या सैकड़ों की संख्या में र¨जगार मिलेगा। एक अध्ययन के अनुसार देश भर में 1947 से 2006 तक विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित और प्रभावित होने वालों की संख्या 6 कर¨ड़ तक है। यदि आज तक के आकड़े का अनुमान लगायें तो यह संख्या 12 करोड़ से भी ज्यादा होगी। बहरहाल यहाँ तीसरा सवाल यह है कि परियोजनाओं और फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों, कर्मचारियों की स्थिति क्या होगी? श्रम सम्बन्धी नियम कानून जस के तस रहेंगे या इसे बदला जायेगा? इस सम्बन्ध में मोदी सरकार का काम प्रगति पर है। सरकार ने 20 श्रम कानूनों और नियमों की सूची तैयार की है जिसे बदल देने या खत्म कर देने की वकालत कर रही है। अभी के नियम के मुताबिक 100 से अधिक श्रमिकों वाली किसी भी इकाई को बन्द करने से पहले सरकार से अनुमति लेना जरुरी है। मोदी सरकार मंजूरी के प्रावधान को समाप्त करने जा रही है।
इसके अलावा मजदूरों को अपनी मांग के लिए हड़ताल करने का अधिकार है। इसके लिये सिर्फ सार्वजनिक उपयोग से जुड़े उद्योगों के लिये ही पूर्व सूचना देनी जरुरी होती है। मोदी का प्रस्ताव यह है कि यह सारे व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर लागू किये जाय और भी बहुत सारे प्रावधान लाने की तैयारी है जिससे मजदूरों, कर्मचारियों के अधिकारों पर कुठाराघात किया जायेगा। इसके बिना शेर का कदम आगे नहीं बढ़ पायेगा, इसलिये भी मोदी सरकार के लिये यह जरुरी है।
वैसे तो ‘मेक इन इण्डिया’ की ख्वाहिशें और भी है जिस पर बातें की जा सकती है, सवाल खड़े किया जा सकते हैं। अभी तो शेर का यह पहला कदम है। दूसरे, तीसरे कदम का इंतजार करते हैं। वैसे पहले कदम के रेखा चित्र से इस लेख में एक आकृति तो बनी होगी? यदि न बन पायी हो तो आप भी शेर की चाल को देखिये तस्वीर जरुर दिखेगी।
एक सवाल और मन में है वह यह कि क्या दुनिया के पूंजीपति भारत को बनायेंगे या भारत की मेहनत करने वाली जनता अपने देश को बनायेगी? वैसे तो प्रकृति के अलावा दुनिया में जो भी भौतिक, बौद्धिक संपदा पैदा हुई है उसे वहाँ की मेहनत करने वाली जनता ने ही पैदा किया है। पूंजीपति तो उनकी मेहनत को लूटते हैं, प्राकृतिक संपदा को लूटते हैं और यह लूट लगातार बढ़ती रहे, इसके लिये दुनिया के अन्य देशों में जाते हैं। कुछ सालों पहले इंग्लैण्ड की ईस्ट इण्डिया कम्पनी भी देश में आयी। यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों और मेहनत की लूट की। देश 200 वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम बन गया। इस गुलामी के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी गई। हजारों शहादतें हुई। अंग्रेज चले गये लेकिन 200 वर्षों की गुलामी के दौरान अपनी कुछ औलादौं को छोड़ गये। मेक इन इण्डिया नामक शेर, ईस्ट इण्डिया कम्पनी का ही वंशज है। अन्तर सिर्फ इतना है कि भारत की धरती पर पैदा होने से, यहाँ की आबो-हवा में पहलने बढ़ने से रंग थोड़ा देशी लगता है। भाषा भी देसी है।
पहचान जल्दी कीजिये नहीं तो देर हो जायेगी। यह शेर पहला कदम रख चुका है। दूसरे, तीसरे के बाद सीधे दौड़ लगायेगा। हमारी हरी-भरी धरती को रौंदेगा। लहलहाती फसलों वाली जमीन को कंकरीट के जंगल में तब्दील कर देगा। नदियों का सारा पानी पी जायेगा। प्राकृतिक संपदा को लील जायेगा। फिर हम क्या खायेंगे? क्या पीयेंगे? कहा रहेंगे? क्या करेंगे?
यह शेर धारीदार नहीं है। न ही बब्बर शेर है। यह पैदाईशी जवान है। यह जंगल में नहीं रहता, झरने का पानी नहीं पीता। इसका पूरा शरीर मशीनी कल-पुर्जों से बना है। यह मुनाफा केन्द्रित विकास का प्रतीक है।
O- विश्वविजय
विश्वविजय, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।


