चाहे अपनों की बलि चढ़ा दें या फिर देश विदेश सर्वत्र गुजरात बना दें!
पलाश विश्वास
उग्रतम हिंदुत्व के लिए कुछ भी करेगा संघ परिवार, है कोई शक? बांग्लादेश की लगातार बिगड़ती परिस्थितियों और पूरे महादेश में आतंक की काली छाया और अभूतपूर्व धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण की वजह से मुक्तबाजारी हिंसा के मद्देनजर हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करने के लिए केसरिया सुनामी और तेज करके निःशब्द मनुस्मृति क्रांति के कार्यकर्म में संघ परिवार को रियायत करने के मूड में नहीं है।
नेपाल में मुंह की खाने के बाद फिर हाथ और चेहरा जलाने की तैयारी है। भारत नेपाल प्रबुद्धजनों की बैठक फिर नेपाल को हिंदू राष्ट्र भारतीय उपनिवेश बनाने की तैयारी के सिलसिले में है। जाहिर है कि अब सिर्फ पाकिस्तान से हमारी दुश्मनी नहीं है और बजरंगी कारनामों की वजह से नेपाल और बांग्लादेश भी आहिस्ते-आहिस्ते पाकिस्तान में तब्दील हो रहे हैं और इस आत्मघाती उपलब्धि पर भक्त और देशभक्त दोनों समुदाय बल्लियों उछल रहे हैं।
आज ईद है और धार्मिक त्योहारों पर नेतागिरि की तर्ज पर बधाई और शुभकामनाएं शेयर करने का अपना कोई अभ्यास नहीं है। अपनी-अपनी आस्था जो जैसा चाहे, वैसे अपने धर्म के मुताबिक त्योहार मनायें। लेकिन खुशी के ईद पर अबकी दफा मुसलमानों के खून के छींटे हैं। हम चाहें तो भी बधाई दे नहीं सकते।
मक्का मदीना, बगदाद से लेकर यूरोप अमेरिका और बांग्लादेश में भी मुसलमान मजहबी जिहाद के नाम पर विधर्मियों की क्या कहें, खालिस मुसलमानों का कत्लेआम करने से हिचक नहीं रहे हैं।

आज गुलशन हमले के तुंरत बाद पाक त्योहार ईद के मौके पर भी बांग्लादेश में आतंकी हमला हो गया।
यह सबक होना चाहिए सनातन हिंदुत्व को मजहबी जिहाद की शक्ल देने वाले हिंदुत्व के बजरंगी सिपाहसालारों के लिए कि हम क्या बो रहे हैं और हमें काटना क्या है।
जिस संघ परिवार ने अटल बिहारी वाजपेयी और रामरथी लौहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी, संघ के खासमखास मुरलीमनोहर जोशी वगैरह की कोई परवाह नहीं की, वे किसी दक्ष अभिनेत्री की परवाह करेंगे, ऐसी उम्मीद करना बेहद गलत है।
हम लगातार भूल रहे हैं कि भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय से लेकर रिजर्व बैंक और तमाम लोकतांत्रिक संस्थान अब सीधे नागपुर से नियंत्रित हैं। सियासत और अर्थव्यवस्था, राजकाज, राजधर्म और राजनय सबकुछ अब नागपुर से नियंत्रित और व्यवस्थित हैं और इस संस्थागत केसरिया सुनामी में किसी व्यक्ति की कमसकम संघ परिवार के नजरिये से कोई खास महत्व नहीं है।
भाजपा कोई कांग्रेस नहीं है कि वंश वृक्ष से फल फूल झरेंगे और औचक चमत्कार होंगे। यहां सबकुछ सुनियोजित हैं। इस संस्थागत राजकरण की समझ न होने की वजह से हम व्यक्ति के उत्थान पतन पर लगातार नजर रखते हैं लेकिन संस्थागत विनाश के कार्यक्रम के प्रतिरोध मोर्चे पर हम सिफर है।
विनम्र निवेदन है कि हम माननीया स्मृति ईरानी के सोप अपेरा के दर्शक कभी नहीं थे और उनकी अभिनय दक्षता की संसदीय झांकी ही हमें मीडिया मार्फत देखने को मिली है।
स्मृति को मनुस्मृति मान लेने में सबसे बड़ी कठिनाई यहै है कि स्मृति से रिहाई के बाद ही यह जश्न बनता है कि मनुस्मृति से रिहाई मिल गयी है। ऐसा हरगिज नहीं है।

शोरगुल के सख्त खिलाफ है संघी अनुशासन और वह निःशब्द कायाकल्प का पक्षधर है।
शिक्षा का केसरियाकरण करके राजनीति या अर्थव्यवस्था या राष्ट्र के हिंदुत्वकरण तक ही सीमाबद्ध नहीं है संघ का एजेंडा।
संघ परिवार सारा इतिहास सारा भूगोल, सारी विरासत, संस्कृति और लोकसंस्कृति, विधाओं और माध्यमों, भाषाओं और आजीविकाओं, नागरिकता और नागरिक और मानवाधिकारों के केसरियाकरण के एजेंडे को लेकर चल रहा है।
जितना इस्तेमाल स्मृति का होना था, वह हो गया।
अब उनसे चतुर खिलाड़ी की जरूरत है जो खामोशी से सब कुछ बदले दें तो मोदी से घनिष्ठता की कसौटी पर फैसला नहीं होना था और वही हुआ।

सीधे नागपुर स्थानांतरित हो गया है शिक्षा मंत्रालय।
हमारी मर्दवादी सोच फिर भी स्मृति के बहाने स्त्री अस्मिता पर हमलावर तेवर अपनाने से बाज नहीं आ रही है।
देशी विदेशी मीडिया में उनके निजी परिसर तक कैमरे खुफिया आंख चीरहरण के तेवर में हैं। मोदी से उनके संबंधों को लेकर भारत में और भारत से बाहर खूब चर्चा रही है और फिर वह चर्चा तेज हो गयी है। यह बेहद शर्मनाक है।
मानव संसाधन मंत्रालय में अटल जमाने में आदरणीय मुरली मनोहर जोशी के कार्यकाल में भी सीधे नागपुर से सारी व्यवस्था संचालित होती थी और तब किसी ने उनका इस तरह विरोध नहीं किया था।
जोशी जमाने की ही निरंतरता स्मृतिशेष है और आगे फिर कार्यक्रम विशेष है।
भारतीय सूचना तंत्र का कायाकल्प तो आदरणीय लालकृष्ण आडवाणी ने जनता राज में सन 1977 से लेकर 1979 में ही कर दिया था, जिसके तहत आज मीडिया में दसों दिशाओं में खाकी नेकर की बहार है। संघ का कार्यक्रम दीर्घमियादी परिकल्पना परियोजना का है, सत्ता में वे हैं या नहीं, इससे खास फर्क नहीं पड़ता।

इसे कुछ इस तरह समझें।
अब पहली बार इस देश में श्यामाप्रसाद मुखर्जी और बाबासाहेब अंबेडकर की मूर्तिपूजा सार्वजनीन दुर्गोत्सव जैसी संस्कृति बनायी जा रही है।
हिंदू महासभा या संघ परिवार के इतिहास में महामना मदन मोहन मालवीय की खास चर्चा नहीं होती। मुखर्जी की भी अब तक ऐसी चर्चा नहीं होती रही है और अंबेडकर को तो उनने अभी अभी गले लगाया है।
मुखर्जी और अंबेडकर कार्यक्रम भिन्न भिन्न हैं।
मुखर्जी को गांधी का विकल्प बनाकर नाथूराम गोडसे की हत्या को तार्किक परिणति तक ले जाना है तो अंबेडकर का विष्णु अवतार का आवाहन दलितों के सारे राम के हनुमान बना दिये जाने के बाद महिषासुर वध का आयोजन है।
खास महाराष्ट्र में सारे संगठनों का कायाकल्प हो गया है और उनकी दशा बंगाल के मतुआ आंदोलन की तरह है, जिसपर केसरिया कमल छाप अखंड है।
बाबासाहेब ने जिन खंभों पर अपना मिशन खड़ा किया था और अपनी सारी निजी संपत्ति विशुद्ध गांधीवादी की तरह ट्रस्ट के हवाले कर दिया था, वे सारे खंभे और वे सारे ट्रस्टी अब केसरिया हैं और अंबेडकर भवन के विध्वंस के बाद महाराष्ट्र के दलित नेता रामदास अठवले को राज्यमंत्री वैसे ही बना दिया गया है जैसे ओबीसी शिविर को ध्वस्त करने के लिए मेधावी तेज तर्रार अनुप्रिया पटेल को एकमुश्त प्रियंका गांधी और मायावती के मुकाबले खड़ा किया गया है।
यूपी में संघ परिवार का चेहरा मीडिया हाइप के मुताबिक स्मृति ईरानी नहीं है। होती तो उनकी इतनी फजीहत नहीं करायी जाती।
यूपी देर सवेर जीत लेने के लिए संघ ने अनुप्रिया की ताजपोशी कर दी है।
इसलिए जितनी जल्दी हो सके, हम स्मृति ईरानी को भूल जायें और आगे की सोचें तो बेहतर। स्मृति को हटा देने से निर्णायक जीत हासिल हो गयी, यह सोचना आत्मघाती होगा।
बंगाल में फजलुल हक मंत्रिमंडल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जिस दक्षता का राष्ट्रव्यापी महिमामंडन किया जाता है, उसका नतीजा भी महिषासुर वध है।

तब महिषासुर बनाये गये अखंड बंगाल के पहले प्रधानमंत्री प्रजा कृषक पार्टी के फजलुल हक।
इन्हीं मुखर्जी साहेब की दक्षता से बंगाल से सवर्ण जमींदारों के हितों की हिफाजत के लिए प्रजा कृषक पार्टी का भूमि सुधार का एजेंडा खत्म हुआ तो एकमुस्त हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग का उत्थान हो गया क्योंकि प्रजाजन हिंदू और मुसलनमानों ने प्रजा समाज पार्टी के भूमि सुधार एजेंडा की वजह से ही न हिंदू महासभा और न मुस्लिम लीग को कोई भाव दिया था।
यह सारा खेल साइमन कमीशन की भारत यात्रा से पहले हो गया और इसी की वजह से जिन्ना ने अलग पाकिस्तान का राग अलापना शुरु किया। तो बंगाल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में हिंदू महासभा का एकमात्र एजेंडा था कि दलित मुसलमान एकता को खत्म करके भारत विभाजन हो या न हो, बंगाल का विभाजन करके बंगाल को दलितों और मुसलमानों से मुक्त कर दिया जाये। मुसलमान मुक्त भारत और गैर-मुसलमान मुक्त बांग्लादेश इसी की तार्किक परिणति है।
इसी के मुताबिक बंगाल विभाजन के बुनियादी एजेंडा के तहत भारत विभाजन हुआ और तब से लेकर बंगाल में संघ परिवार का दलितों और मुसलमानों के महिषासुर वध का दुर्गोत्सव जारी है लेकिन न हिंदू महासभा सत्ता में थी और न अबतक संघ परिवार सत्ता में है।
राजकाज फिरभी हिंदुत्व का एजेंडा का है। ऐसा होता है हिंदुत्व का एजेंडा।
स्मृति किसी आंदोलन की वजह से हटा दी गयी है, ऐसी गलतफहमी में न रहें कृपया।