उच्च न्यायालय ने भी तीन फर्जी आतंकवादियों को आरोपमुक्त किया
नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं कि क्या पुलिस निर्दोषों को फंसाकर फर्जी आतंकवादी तैयार करती है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को ट्रायल कोर्ट के उस फैसले को कायम रखा जिसमें दो कश्मीरियों और एक पाकिस्तानी नागरिक को आतंकवादी होने के आरोप से मुक्त किया गया था। अदालत ने अभियोजन पक्ष की कहानी में गंभीर खामियों की ओर भी इशारा किया। तीन साल पहले ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में इन व्यक्तियों को बरी करते हुए दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की जांच के तरीके को लेकर खिंचाई भी की थी।

इन तीनो लोगों को दिल्ली पुलिस ने अप्रैल 2007 में दिल्ली हाट से गिरफ्तार किया था। पुलिस का कहना था कि उन्हें खुफिया जानकारी मिली है कि एक पाकिस्तानी फिदायीन को लश्करे तैय्यबा हथियार और विस्फोटक मुहैया कराने वाला है ताकि 1857 के विद्रोह की 150वीं सालगिरह पर होने वाले आयोजनो को दहलाया जा सके।
अभियोजन पक्ष ने इनके ऊपर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने, आतंकवादी संगठन का सदस्य होने और यूएपीए और आईपीसी तथा अन्य कई मामलों में आरोप दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने तीनो ही आरोपियों को बरी कर दिया था लेकिन पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद हसन को पासपोर्ट के प्रावधानो का उल्लंघन करने का दोषी पाया था। इसके बाद पुलिस ने उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की परंतु बुधवार को अदालत ने उसे खारिज कर दिया।
पीयूसीएल दिल्ली के अध्यक्ष व दोनों कश्मीरी व्यक्तियों के अधिवक्ता एन. डी. पंचोली ने बताया कि अदालत ने अपने 29 पन्ने के फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत कमजोर हैं और कई जगह तो उनके दावों के संबंध में कोई पुष्टि भी नहीं होती। पुलिस द्वारा की गई बरामदगी भी संदेह के घेरे में है।
जम्मू के रहने वाले शफाकत इकबाल और शब्बीर अहमद तथा पाकिस्तानी नागरिक हसन ने कहा कि उन्हें जम्मू से अवैध तरीके से अपहृत किया गया और कई दिनो तक अवैध हिरासत में रखने के बाद उन्हें दिल्ली में गिरफ्तार करने का नाटक किया गया।
हालांकि उच्च न्यायालय ने आरोपियों के आरोपों पर कुछ नहीं कहा, लेकिन पुलिस और अभियोजन के पक्ष से कई खामियों का जिक्र किया।
अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस का दावा कि हसन को दिए जाने के लिए हथियार, आरडीएक्स, गोलाबारूद और धन जो शफाकत द्वारा लाए गए थे, को पुलिस ने किसी आम आदमी की उपस्तिथि में बरामद नहीं किया। अदालत ने ये भी कहा कि पुलिस के गवाह भी ये नहीं बता पाए कि आरोपियों के पास से क्या बरामद हुआ था, उधर जिन हैंड ग्रेनेड्स के बरामदगी का दावा पुलिस कर रही थी उन्हें पुलिस की तरफ से कभी भी अदालत में पेश नहीं किया और न ही इस बारे में कोई सफाई प्रस्तुत की गई।
दोनो कश्मीरी व्यक्तियों के वकील एन डी पंचोली ने कहा कि उनके परिवार वाले बहुत भयभीत हैं और उन्हें डर है कि उन्हें दुबारा जेल भेजा जा सकता है। इस प्रकरण में अभियुक्तों की तरफ से एन डी पंचोली व एम एस खान बहस की।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि आम आदमी, दमित-शोषित जनता और अल्पसंख्यकों के नागरिक व मानवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई में श्री पंचोली की अहम भूमिका है।
वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली, प्रसिद्ध स्तंभकार शम्सुल इस्लाम, सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी व जेवियर दास ने भी एन डी पंचोली का आभार जताया है।
- अवनीश राय