असहमति के अधिकार के बिना लोकतंत्र का बने रहना संभव नहीं -सिटिज़न्स कमेटी फ़ॉर द डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी
नई दिल्ली। रोमिला थापर, कृष्णा सोबती, हरबंस मुखिया, हर्ष मंदर, नवशरण सिंह, नलिनी तनेजा, असद ज़ैदी, मंगलेश डबराल, सुभाष गाताडे, उमा चक्रवर्ती, सैयदा हमीद, सुकुमार मुरलीधरन, प्रवीर पुरकायस्थ जैसे देश के जाने-माने शिक्षाविदों और पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक सुर में कहा है कि असहमति के अधिकार के बिना लोकतंत्र का बने रहना संभव नहीं है।
-सिटिज़न्स कमेटी फ़ॉर द डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी (लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिक समिति) ने एक वक्तव्य जारी किया है, जो निम्नवत् है। -
सिटिज़न्स कमेटी फ़ॉर द डिफ़ेन्स ऑफ़ डेमोक्रेसी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जारी दमनचक्र की कड़े शब्दों में निन्दा करती है। हम छात्रों और शिक्षकों को निशाना बनाए जाने और सरकार द्वारा एकाधिकारवादी तरीक़े से आतंक पैदा करने की कार्रवाइयों की भर्त्सना करते हैं। हमारा यह पक्का विश्वास है कि असहमति को राष्ट्रद्रोह क़रार देना, और राष्ट्रद्रोह संबंधी क़ानूनों को छात्रों पर लागू करना, कैम्पस में पुलिस का घुसना और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से एक छात्र-नेता को गिरफ़्तार करना, अनेक छात्रों पर हिंसा भड़काने के आरोप दर्ज करना, छात्रों, शिक्षकों और एक गिरफ़्तार छात्र पर अदालत के परिसर में हमला करना — ये सब देश के नागरिकों के बुनियादी अधिकारों पर गंभीर हमले हैं। असहमति के अधिकार के बिना लोकतंत्र का बने रहना संभव नहीं है और हाल की घटनाचक्र ने लोकतंत्र की बुनियाद को ही हिला दिया है। हम असहमति के स्वर को दबाने के लिए राष्ट्रद्रोह के औपनिवेशिक-काल से चले आ रहे दमनकारी क़ानून के मनमाने इस्तेमाल की भी निन्दा करते हैं।
जे एन यू पर हमला हमारी बहुलता और अनेकता पर, सार्वजनिक संसाधनों से चलने वाले विश्वविद्यालयों पर और साधारणजन के उच्चशिक्षा पाने के अधिकार पर ही हमला है। इस अभियान में ’आयकरदाताओं के पैसे पर पलते राष्ट्रद्रोह के अड्डे’ जैसे प्रतिक्रियावादी दुष्प्रचार का भी सहारा लिया जा रहा है। जनता के पैसे और आरक्षण की नीतियों के कारण ही उच्च शिक्षा संस्थान जनता के विभिन्न तबक़ों, ख़ासकर ग़रीबी की पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों, और ख़ासकर छात्राओं की पहुँच के भीतर आ सके हैं। जनता के पैसे से ही बहुतों को उच्च शिक्षा नसीब हो पाई है।
हमें इस पर बहुत दुख और क्रोध है कि उच्च शिक्षा के सार्वजनिक संस्थानों पर नियोजित और सोचे समझे तरीक़े से वहशियाना हमले किए जा रहे हैं। जे एन यू एक ऐसी जगह है जहाँ तालीम हासिल करने, सवाल उठाने, और बुनियादी, ढाँचागत असमानताओं पर बहस-मुबाहिसे के माध्यम से समझ पैदा करने की जीवंत संस्कृति मौजूद है।
हमारे लिए यह भी अत्यंत चिंताजनक है कि छात्रों, कार्यकर्ताओं और शिक्षकों पर खुलेआम शारीरिक हमले होते हैं, गालियाँ दी जाती हैं, आंदोलनकर्ता छात्रों के विरुद्ध नफ़रत और हिंसा भड़काई जाती है, और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है। पुलिस ऐसे दुर्भावनापूर्ण वक्तव्य देती है जिनसे शांतिमय ढंग से रहने वाले नागरिकों को ख़तरा महसूस होता है। असहमत होना और सवाल खड़े करना हर नागरिक का अधिकार है और जे एन यू के छात्र सभ्य व शांतिपूर्ण तरीक़े से, संयत रहकर महज़ अपने इस अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं।
हमें ख़ासकर हमारे युवा छात्र-छात्राओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित है जिन्हें कि विश्वविद्यालय प्रशासनऔर पुलिस डरा-धमका रहे हैं और विश्वविद्यालय परिसर के इर्द-गिर्द, अदालतों के अहातों में जहाँ छात्रों के मुक़दमों की सुनवाई हो रही है ग़ुंडा तत्वों ने खुले-आम घेराबन्दी कर रखी है।
हम बहुमतवादी रूढ़ियों को चुनौती देने के लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने वालों को “राष्ट्रद्रोही” या “देशद्रोही” घोषित किए जाने की भर्त्सना करते हैं। हमारा मानना है कि आलोचनात्मक विचार रखने वालों को दुश्मन मानने वाले लोग इस देश को बौद्धिक दरिद्रता के गड्ढे में धकेल रहे हैं।
हम उन टेलीविज़न चैनलों, अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं की निन्दा करते हैं जिन्होंने पक्षधरतापूर्ण और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना ढंग से ख़बरें दी हैं, दुष्प्रचार से दर्शकों, श्रोताओं और पाठकों को गुमराह किया है और छात्रों के विरोध प्रदर्शन को ब्लैक आउट किया है।
हम यह महसूस करते हैं कि शहर के सभी विचारशील लोग संकट की इस घड़ी में एक साथ होकर विचार की आज़ादी और असहमति के अधिकार के पक्ष में आवाज़ उठाएं और लोकतांत्रिक विरोध की हर जगह रक्षा करें।
हम एक स्वर से मांग करते हैं कि —
१. जे एन यू के सभी छात्रों पर लगाए गए सारे आरोप और मुक़दमे फ़ौरन और बिना शर्त वापस लिए जाएँ।
२. जे एन यू प्रशासन अपने कर्तव्यों का पालन न करने, पुलिस से मिलकर छात्रों के विरुद्ध झूठे आरोप गढ़ने, अपनी जाँच प्रक्रिया पूरी करने करने और शिक्षक समुदाय या पदाधिकारियों को सूचित किये बिना के बजाय पुलिस को विश्वविद्यालय परिसर में बुलाकर जगह जगह और छात्रावासों की तलाशी लेने और उन्हे गिरफ़्तार करने के के लिए पूरी तरह जवाबदेह है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने सरकार के दबाव में आकर विश्विद्यालय की स्वायत्तता को क्षति पहुँचाई है और इसका प्रभाव छात्रों की शिक्षा और उनके कैरियर पर पड़ सकता है।
३. पुलिस को परिसर में घुसने की अनुमति बिल्कुल न दी जाए और सभी सादी वर्दी वाले पुलिसकर्मियों और भेदियों को कैम्पस से हटाया जाए।
४. छात्रावासों सहित विश्विद्यालय परिसर के किसी भी हिस्से में तलाशी या जाँच का काम विश्विद्यालय प्रशासन के अलावा कोई दूसरा न करे, और यह भी वार्डनों की उपस्थिति में किया जाए।
५. जे एन यू के आसपास के इलाक़ों में छात्रों, शिक्षकों और उनके पक्ष में खड़े लोगों को डराते धमकाते और ग़ुंडागर्दी करते गुटों को पुलिस क़ाबू में ले। हमारी मांग है कि इन ग़ुंडा तत्वों को विश्वविद्यालय समुदाय पर हमले के लिए उकसाने के बजाय पुलिस इन तत्वों की हरकतों को प्रभावी ढंग से रोके।
६. पुलिस ज़िम्मेदारी से अपना कर्तव्य का पालन करते हुए विश्वविद्यालय से बाहर, अदालतों में और सार्वजनिक स्थलों पर छात्रों शिक्षकों और जे एन यू के साथ एकता रखने वाले लोगों की सुरक्षा करे और अपने सरोकारों को अभिव्यक्त करने के उनके क़ानूनी अधिकार का सम्मान करे।
रोमिला थापर, कृष्णा सोबती, हरबंस मुखिया, हर्ष मंदर, नवशरण सिंह, नलिनी तनेजा, असद ज़ैदी, मंगलेश डबराल, सुभाष गाताडे, उमा चक्रवर्ती, सैयदा हमीद, सुकुमार मुरलीधरन, प्रवीर पुरकायस्थ, पुनीत बेदी, राहुल राय, सबा दीवान, उर्वशी बुटालिया, तपन बोस, नंदिता नारायण, पैगी मोहन, फ़राह नक़वी, नीरज मलिक, जावेद मलिक, जवरीमल पारख, देवकी जैन, दिनेश मोहन, प्रभात पटनायक, भारत भूषण, दुनू राय, ज्याँ द्रेज़, तनिका सरकार, सुमित सरकार, वरीशा फ़रासात, सीमा मुस्तफ़ा, फ़रीदा ख़ान, सलिल मिश्र