आन्दोलन की चेतावनी
दिनांक-28.01.2012
आज दिनांक 28 जनवरी 2012 को थारू आदिवासी महिला मजदूर किसान मंच के पलिया स्थित कार्यालय पर उत्तरदेश खीरी दुधवा नेशनल पार्क व् टाईगर रिज़र्व बनकटी रेंज प्रकरण पर गिरफ्तार आदिवासी तेजराम की रिहाई न होने और लोगों की ओर से रिपोर्ट दर्ज न किए जाने के मुद्दे पर बैठक की गई। इस बैठक में दुधवा के वन क्षेत्रों से आई सैकड़ों थारू आदिवासी और दलित वर्ग की महिलाओं ने पुलिस और प्रशासन द्वारा बरती जा रही ढिलाई का जमकर विरोध किया। हमले में घायल निबादा देवी ने कहा कि उसके माथे पर लगी चोट से वो बिल्कुल परेशान नहीं है, वनविभाग और पुलिस के द्वारा बहाया गया उनका खून बेकार नहीं जाएगा, मेरा खून बहा तो क्या हुआ लेकिन मेरे इतने गांवों ने अपना अधिकार तो पा रहे हैं। राज्य निगरानी समिति सदस्य रामचन्द्र राणा ने कहा कि जब हम सदियों से वनविभाग से पिटते और लुटते रहे तब कोई अधिकारी बीच में नहीं आया। अब जब लोगों ने संघर्ष करके अपना अधिकार लेना शुरू कर दिया है तो पुलिस और प्रशासन वनविभाग की मदद कर रहे हैं, प्रशासन कह रहा है कि हम लोगों को भड़का रहे हैं। प्रशासन यह बात भूल जाता है कि मामला अधिकारों का है, और हम जिम्मेदार लोग हैं, हमारी भी जनता और अपने संगठन के सामने जवाबदेही होती है। हमारी लड़ाई वनविभाग से है पुलिस प्रशासन से नहीं। लेकिन अगर ये विभाग लोगों के खिलाफ वनविभाग की मदद करेंगे तो हम इनके खिलाफ भी आंदोलन करेंगे। लीला देवी ने कहा कि वनविभाग हो या पुलिस इनके निशाने पर सबसे ज्यादा महिलाऐं ही रहती हैं। ये हमला सिर्फ निबादा देवी पर नहीं था, ये पूरे महिला समाज पर हमला था। और निबादा के एक आदिवासी महिला होने के नाते पूरे आदिवासी समाज पर था। इस मामले को अब बीच में नहीं छोड़ा जाएगा, पूरे थारू क्षेत्र में और राज्य और देश के अन्य इलाकों के आदिवासी समाज में भी इस घटना को लेकर गुस्सा फैल रहा है। अगर यहां के लोगों को न्याय नहीं मिला और हमारे अधिकारों का हनन किया तो हम इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन करेंगे, जोकि पूरी तरह से महिलाओं के नेतृत्व मंे होगा। इसके अलावा बाबूराम, रूकमा देवी, करूआ देवी, हरीचन्द, चित्रा देवी, रमाशंकर, अजय तिवारी, बत्तो देवी, अशोक आदि ने भी अपनी बात को रखते हुए यह ऐलान किया कि हम प्रशासन के इस असंवेदनशील रवैये के बावज़ूद वार्ता के रास्ते को बरकरार रखेंगे और यही सोच कर हम 10 दिन का समय और देंगे। अगर 10 दिन के अंदर हमें न्याय दिलाने की प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी तो वनविभाग, प्रशासन एवं पुलिस के इस गठजोड़ के खिलाफ बड़ा आंदोलन सड़क पर उतारा जाएगा, उ0प्र0 के कई जिलों के व देश के कई राज्यों के वनाश्रित समाज की महिलाऐं और पुरुष शामिल होंगे। बैठक का संचालन बन्दरभरारी वाले रामचंद्र राणा ने किया।
जैसा कि आपको विदित है कि 20 जनवरी 2012 को उत्तर प्रदेश के झिला लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र की बनकटी रेंज के जंगल से अपने पारम्परिक व वनाधिकार कानून-2006 में भी मान्यता दिये गये अधिकार के तहत जब सामूहिक तरीके से महिलाऐं जलौनी लकड़ी लेकर आ रही थीं, तब रास्ते में पोलहा फाटक के पास दुधवा वार्डन ईश्वर दयाल और कोतवाल गौरीफंटा शुभसूचित राम के नेतृत्व में वन एवं पुलिस कर्मियों ने उन पर वहशियाना तरीके से लाठीचार्ज किया। इस हमले में सूडा गांव की महिला निबादा देवी के माथे को निशाना बनाकर कोतवाल गौरीफंटा ने इतना तीव्र प्रहार किया कि निबादा देवी का माथा बुरी तरह से फट गया। प्रहार इतना तीव्र था कि कोतवाल का रूल भी दो टुकड़े हो गया। वहां मौजूद तेजराम को वनकर्मी व पुलिस जबरन उठा कर ले गये। इस घटना को लेकर 21 जनवरी को थारू क्षेत्र के समस्त गांवों की महिलाओं द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन में जब डिगनिया गौरीफंटा मार्ग पर लोगों ने वहां मौजूद एसडीएम पलिया और पुलिस अधीक्षक पलिया का घेराओ किया तो उन्होंने आश्वासन दिया कि सोमवार 23 जनवरी तक तेज राम को रिहा करा दिया जायेगा और दोषी पुलिस एवं वन कर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इससे पूर्व जब महिलाऐं बनकटी रेंज कार्यालय पर तेजराम का पता लेने पहुंची तो वहां मौजूद सभी अधिकारी कर्मचारी तो नदारद थे, मौजूद एक वनकर्मी जगदीश यादव ने छत पर चढ़कर बंदूक तान ली जिससे महिलाओं ने अपने आक्रोष का इजहार किया।
इस प्रकरण में वनविभाग द्वारा 21 तारीख को ही कोतवाली गौरीफंटा में ही रिपोर्ट दर्ज कर ली गयी लेकिन निबादा देवी व हमले का शिकार हुईं अन्य महिलाओं द्वारा दी गयी तहरीर की रिपोर्ट आज तक दर्ज नहीं हुई है। इस मामले में कल जिलाधिकारी खीरी से निबादा देवी, राज्य निगरानी समिति सदस्य रामचन्द्र राणा, सीमा देवी, रजनीश सहित कुछ लोग जब मिले तो उनका रवैया भी मामले को टालने वाला ही रहा।
निबादा देवी- महिला वनाधिकार एक्शन कमेटी
रामचंद्र राणा- संयोजक थारू आदिवासी महिला मजदूर किसान मंच
रजनीश- सदस्य नेशनल कमिटी -राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच
विज्ञप्ति