जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने के लिए आपदाएं भी अब कारपोरट आयोजन
नई दिल्ली। क्या उत्तराखंड के जंगल में लगी आग भी अब कारपोरट आयोजन है? ऐसा संदेह गहरा रहा है कि जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने के लिए आपदाएं भी अब कारपोरट आयोजन हो रही हैं और उत्तराखंड के जंगल में लगी आग भी दैवीय आपदा नहीं बल्कि जल जंगल जमीन से जनता को बेदखल करने का कारपोरेटीय रामबाण है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता राजा बहुगुणा ने फेसबुक पर लिखा है : -
उत्तराखंड के जंगल में लगी आग से मैं विचलित व आहत महसूस कर रहा हूं। इस भीषण आग से हुए नुकसान का रूपयों में आकलन करना हास्यास्पद है।
कड़े शब्दों में कहूं तो लुटेरे तंत्र की न यह औकात है और न ही उसके पास दिमाग है कि वह पूरी स्थिति का सही आकलन कर सके। अभी तक इस आग के लिए एक महिला व एक पुरूष को दोषी ठहराने की खबर आ रही है और लगता है कि गाज स्थानीय लोगों पर ही पड़ेगी।
इधर केन्द्र सरकार व गृहमंत्री के बयान से लग रहा है कि जैसे वह आग बुझाने के कार्य में युद्ध स्तर पर जुट गई है। इस पर मैं यही कहूंगा -सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ। देख लेना यह कवायद भी क्षणिक साबित होगी।
लगता है भीषण सूखे की संभावना के बाबजूद एडवांस में जरूरी सुरक्षा उपाय किए ही नहीं गए थे। दूसरा जंगलों को बचाने के लिए सक्षम उपकरण आज तक नहीं बना है। इसके लिए निश्चित रूप से नीति नियंता दोषी हैं।

वन कानूनों ने लगातार वनों के प्रति जनता के अलगाव को बढ़ाया है
यहां पर यह भी कहूंगा कि यदि जंगलों पर जनता का अधिकार हो तो तब ही उनका बेहतर विकास व सुरक्षा हो सकती है। केवल ऐसा करने से सक्षम उपकरण बन सकता है। वन कानूनों ने लगातार वनों के प्रति जनता के अलगाव को बढ़ाया है। उत्तराखंड राज्य की मांग में जल, जंगल, जमीन पर जनता का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण मांग थी जिसे लुटेरे शासकों ने जमींदोज कर दिया है।