उपचुनाव : 2019 के लिए जातिवादी सांप्रदायिक ताकतों को जनता का अल्टीमेटम
उपचुनाव : 2019 के लिए जातिवादी सांप्रदायिक ताकतों को जनता का अल्टीमेटम
उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता ने 2019 के आम चुनावों से पहले सामंती विचारधारा और साम्प्रदायिकता के सहारे सत्ता हथियाने वालो को अल्टीमेटम दे दिया है कि उनकी घृणा और दलित पिछड़ा विरोधी मानसिकता को जनता स्वीकार नहीं करेगी और लोकतंत्र के जरिये, विरोधाभासों का इस्तेमाल करके सामन्तशाही लादने के किसी भी प्रकार के प्रयासों को जनता कूड़ेदान में फेंक देगी. पड़ोसी बिहार ने तो ये सन्देश और भी मजबूती से दिया है और नितीश कुमार की अवसरवादिता को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है. दोनों राज्यों के इन उपचुनावों के परिणामो के बहुत सन्देश हैं, जिसके लिए हमें बहुत सावधानी से चलना पड़ेगा और अतिउत्साह में अपनी लड़ाई को गँवा नहीं देना है. चालबाजों से सावधान रहना है क्योंकि आतताई लोग जब सीधे नहीं जीत पाते तो पचासों किस्म की तिकड़मे करेंगे और टीवी चैनलों पे उनके पालतू जनता का ध्यान भटकाने के लिए खबरों को पकाते रहेंगे और जनता को दिग्भ्रमित करते रहेंगे इसलिए बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं और सामाजिक न्याय को समर्पित सामज सेवियों का कर्त्तव्य है कि जनता को तैयार करें और मनुवादी मीडिया की चाल को समझें और उसको नेस्तनाबूद कर दें.
इसलिए इस ऐतिहासिक अवसर पर गोरखपुर, फूलपुर, अररिया और जहानाबाद की जनता को बहुत-बहुत शुभकामनाएं. जनता ने एक सन्देश बहुत साफगोई से दिया है जिसे अगर हमारे नेताओं ने नहीं पढ़ा और यदि उन भावनाओं का आदर नहीं किया तो वे जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ करेंगे. देश के बहुजन समाज ने आज उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अन्य छोटे-मोटे दलों को सीधे सन्देश दिया है कि उन्हें अब साथ आना ही होगा और यदि वे साथ आते हैं तो भारत में मनुवादी व्यवस्था पर बहुजन समाज का सीधे प्रहार होगा. आज देश भर में मनुवादी पूंजीवादी से उत्पीड़ित समाज अपने नेताओं से आशा कर रहा है कि वे एक हों और साथ आएं. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा एक साथ आकर देश भर की राजनीति को एक नयी दिशा दे सकते हैं. देश की समृद्धि और विकास के लिए पूंजीवादी व्यवस्था के पोषको को धक्का देना जरूरी है.
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हम सब जानते हैं कि हिंदुत्व के प्रहरियो ने 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद को गिराया तो कल्याण सिंह ने गर्व से उसको स्वीकार किया और कहा कि भगवान् राम की अदालत से बड़ी कोई अदालत नहीं. उन्हें ये लगा कि बाबरी ध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में उनसे बड़ा रामभक्त कोई नहीं होगा और कहीं न कहीं कल्याण सिंह अपने को अटल बिहारी वाजपेयी का उत्तराधिकारी मानने लगे, लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता ने 1993 के चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन के हाथो में सत्ता सौंप दी. भारत के इतिहास में पहला मौका था जब दलित बहुजन समाज ने राजनैतिक गठबंधन कर सत्ता संभाली. मान्यवर कांशीराम और श्री मुलायम सिंह यादव ने गहरी राजनैतिक समझदारी दिखाते हुए हिंदुत्व की सारी ताकतों को ध्वस्त कर दिया. लेकिन सत्ता में आने के बाद से ही मनुवादी ताकतों ने अंतरविरोधों को मज़बूत कर इस सरकार को गिरवा दिया और जो हुआ वो देश के दलित बहुजन समाज के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हुआ. देश में मनुवादी तांडव केवल इसलिए हुआ क्योंकि बहुजन समाज बिखर गया और उसकी राजनैतिक शक्तियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए वैसे प्रयास नहीं किये जैसे संघ अपने तरीके से कर रहा है. किसी भी पार्टी का कोई सांस्कृतिक या बौद्धिक संगठन या थिंक टैंक नहीं है फलतः समाज के अन्दर संघी नैरेटिव पहुँच गए और उसने दलित पिछडो और मुसलमानों के अंतर्द्वंदो को और उभार कर अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करना शुरू कर दिया.
उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामो के लिए बहुजन समाज पार्टी को विशेष धन्यवाद देना होगा कि उसने स्थिति को देखकर निर्णय लिया. सपा बसपा और अन्य सभी दलों को साथ मिलकर चुनाव लड़ना होगा लेकिन अगर लम्बे समय में संघी प्रोपेगेंडा से लड़ना है तो सपा बसपा को अपनी वैचारिक धार मज़बूत करने वाले संगठनों को गाँव-गाँव भेजना पड़ेगा. सपा और बसपा जरूर राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी हैं और इसमें कोई बुरी बात नहीं लेकिन अभी देश पर संकट है और इसलिए उनका साथ आना जरूरी है. अपने व्यक्तिगत ईगो को भुलाकर नेताओं को साथ बैठना पड़ेगा क्योंकि ये नतीजे जनता का जनादेश है.
इसमें कोई शक की बात नहीं कि भाजपा के नेता इस तरीके से बर्ताव कर रहे हैं जैसे जिंदगी भर का पट्टा करवाके सत्ता में आये हैं. उसके प्रवक्ताओ को रोज आप टीवी पर आग उगलते और विरोधियों को गाली गलोज करते देख सकते हैं. टीवी पर उनके प्रवक्ता वैसे भी चैनलों ने ऐंकरो के रूप में रखे हुए हैं लेकिन इन सब के बाद भी भाजपा में पिछले कुछ महीनो में ये कोशिश की कि साम दाम दंड भेद से जैसे-तैसे कैसे चुनाव जीते, सरकार बनाए और फिर मीडिया से विरोधियो की मजाक बनवाएं. मीडिया के जरिये देश की जनता को भ्रमित करने की कोशिश को जनता जानती है. वैसे भी अब इन सभी पक्षकारों का पर्दाफाश हो चुका है जो नरेश अग्रवाल जैसे नेताओं का इतिहास नहीं बताते लेकिन जनता ने ऐसे पंछियों के लिए भी सन्देश दिया है कि पब्लिक सब जानती है. सपा बसपा नेतृत्व के लिए भी कि वो अपने ईमानदार कार्यकर्ताओं को तरजीह दे, उनकी कीमत पर उड़नछू किस्म के नेताओं को न लादे जो 'वोट' दिला सकते हैं. अगर सवर्णों को भी खुश रखना है तो उसका क्राइटेरिया निर्धारित करो कि कम से कम व्यक्ति की सामाजिक न्याय में आस्था हो.
बसपा ने इस मामले में बेहतरीन किया है कि पार्टी के मिशन के कार्यकर्त्ता को ही राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है. ये कार्यकर्ताओं के लिए अच्छा सन्देश है. जया बच्चन से कोई उम्मीद करना बेईमानी होगा लेकिन ये राजनीति की त्रासदी है जहाँ नाम चलता है. अमिताभ बच्चन जैसा व्यक्ति हर पार्टी को अपने कब्जे में रखना चाहता है जो बेहद खतरनाक है. पार्टियों के नेतृत्व को इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा कि क्या जया बच्चन वाकई में सामाजिक न्याय के प्रति कोई निष्ठां रखती भी है ?
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समाजवादी पार्टी को भी अपने कैडर को बहुजन समाज के नायको के इतिहास के बारे में जानकारी देनी पड़ेगी. लोहिया के जरिये कोई सामाजिक बदलाव की सोचना बेईमानी होगा. पिछड़ी जातियों में फुले आंबेडकर और पेरियार, रामस्वरूप वर्मा, छत्रपति शाहूजी महाराज आदि के प्रचार-प्रसार के बिना कोई सामाजिक क्रांति नहीं आती और हकीकत ये है कि इस दिशा में राजनैतिक तौर पर केवल बसपा ने कार्य किया है इसलिए सपा को अपनी अतीत की भूलों को स्वीकारना होगा आगे की सोच रखना होगा.
इसमें कोई सन्देश नहीं कि अखिलेश यादव के विकास के कार्यों को लोग याद करते हैं क्योंकि प्रदेश में घूमने में ये पता चलता है, लेकिन प्रशासक के तौर पर लोग सुश्री मायावती को ही याद रखते हैं. हमने पिछले चुनावों के बाद ये भी कहा था कि सपा-बसपा गठबंधन को सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर तो मज़बूत करना ही होगा, लेकिन इसको और मज़बूत करने के लिए दोनों पार्टियों में मायावती जी को प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाने की घोषणा होनी चाहिए और अखिलेश जी को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए. ब्राह्मणवादी राजनीति के सिपहसालारों ने महत्वाकांक्षाओं का इस्तेमाल कर दलित बहुजन पार्टियों को तोड़ा है इसलिए ये आवश्यक है कि फुले आंबेडकर पेरियार की सांस्कृतिक क्रांति को आज पुनर्जीवित किया जाए.
मार्च 15 मान्यवर कांशीराम जी का 84 वां जन्मदिन है. देश के बहुजन समाज को एक नयी दिशा देने वाले, उन्हें अपनी शर्तों पर राजनीति के गुर सिखाने वाले इस महान शख्सियत ने उत्तर प्रदेश से मनुवादी ताकतों का सफाया कर दिया था. समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की ये जीत मान्यवर कांशीराम जी सही अर्थों में सच्ची श्रद्धांजलि है. ये बेहद अच्छी बात है कि श्री अखिलेश यादव स्वयं सुश्री मायावती से मिलने गए. उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर के दलित बहुजन समाज के लोग इस भावना को बहुत उम्मीद से देख रहे हैं और हम उम्मीद करते हैं कि पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व लोगो को निराश नहीं करेगा.
लेकिन उत्तर प्रदेश की जीत की ख़ुशी में मै बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की जीत को कतई कम करके नहीं आकूँगा. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार को दूसरी पीढ़ी का नया, उर्जावान नेतृत्व मिल चुका है. ये बात भी जरूरी है देश भर में भाजपा के विरुद्ध महागठबंधन में माननीय लालू यादव की भूमिका अहम् रहेगी और उनको जेल भेजकर, बदनाम कर जो साजिश की गयी वो कम से कम जनता द्वारा पूर्णतः ख़ारिज कर दी गई है. लालू यादव ने जिस साहस, संयम और दूरदर्षिता से काम किया उससे उनके राजनैतिक कौशल का पता चलता है और हम उम्मीद करते हैं कि सपा-बसपा उनकी राय का सम्मान करेंगे. सपा-बसपा के नेताओं को भी ध्यान रखना है कि मनुवादी मीडिया उनके बीच के अंतर्द्वंद्वों को बढ़ाने की कोशिश करेगा ताकि इन दोनों पार्टियों के बीच में समझौता न हो इसलिए आवश्यक है हिंदुत्व के इन पक्षकारों से ज्यादा लम्बी बातचीत न हो ताकि एक मज़बूत गठबंधन बन सके.
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उत्त्तर प्रदेश और बिहार की जनता ने बता दिया है हवा का रुख क्या है. उन्होंने नफरत और झूठ की राजनीति को नाकारा है और ये भी कि सामाजिक न्याय के साथ कोई समझौता नहीं होगा. जनता ने 2019 के लिए अपने नेताओं को खबरदार कर दिया है कि अवसरवादियों के लिए कोई जगह नहीं है और ये कि अब सामाजिक न्याय से जुड़ी शक्तियों को जनता की मैंडेट का सम्मान करना है और यदि ये ताकते ईमानदारी से साथ आई तो मनुवाद की हार निश्चित है और मानववादी समाज की स्थापना की दिशा में हम आगे बढ़ेंगे. एक ईमानदार पहल देश से सांप्रदायिक शक्तियों का खात्मा कर सकती है जो देश में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है. ये चुनाव देश के भविष्य की राजनीति की ओर संकेत कर रहे हैं और यदि हमारे नेताओं ने इन्हें ठीक से समझ लिया तो वे वाकई में लोगों के अच्छे दिन वापस ला सकते हैं.


