विक्की कुमार
क्या हो गया है मेरे मिट्टी के सपूतों को। वो लाखों करोड़ों की बात कर रहे हैं। क्या वो नहीं जानते उनके 65 प्रतिशत भाई-बंधु आज भी सैकड़ों में जी रहे हैं और तो कुछ वो भी न रहने के कारण अपनी जिंदगी समाप्त कर रहे हैं।
क्या करें बेचारे, लाखों - करोड़ों की होड़ में उनका कोई सुनने वाला नहीं। कोई यह नहीं पूछता उनसे कि कल रात तुमने खाना खाया था या नहीं।
कोई उनके बच्चों से यह नहीं पूछता कि बाबू तुम कितने दिनों से आधा पेट खाकर सिर्फ जिन्दा रहने के लिए जी रहे हो।
कोई यह नहीं पूछता उस बूढ़े बाप से कि तुम्हारी जवान बेटी की शादी कैसे होगी।
कोई उस बेबस माँ से नहीं पूछता कि क्यों अपने बच्चों को भूखा सुला रही हो।
तुम्हारी तकलीफों की टीआरपी नहीं .....
तुम्हारी तकलीफ को क्यों पूछे भाई ?
रेडियो पर तुम्हारी तकलीफ को कोई सुनने वाला नहीं और तो और आज का नौजवान अपने हाथों में मोबाइल लेकर सिर्फ हिन्दू- मुसलमान की बात कर रहा है। उसे मेट्रो, फ्लाईओवर, राममंदिर, गंगा सफाई ( जो सिर्फ नाम की है ), डेबिट कार्ड, पेटीएम, इ वॉलेट और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से आगे कुछ सोचता ही नहीं।
उन्हें कोई यह नहीं बताता कि आज हम जो शान -ए- शौकत से भोजन का जो दो निवाला अपने पेट में डाल पा रहे हैं, उसे उत्पन्न करने वाला भूखा है। लाखों के कर्ज में डूबा है साथ ही रोज सैकड़ो तकलीफे झेल रहा है।
कई तो अपनी असहनीय तकलीफ के कारण अपनी आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।
बीते
नई दुनिया में छपी खबर के मुताबिक कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने बताया कि 2014 में 5650 किसानों के साथ करीब 6 हजार से ज्यादा कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या कर ली थी, जबकि साल 2015 में ऐसे मामलों की संख्या 8 हजार के करीब पहुँच गई है। कृषि श्रीमिकों का आंकड़ा तो जोड़ा ही नहीं गया है।
महाराष्ट्र में 2014-15 के दौरान किसानों के आत्महत्या के मामलों में 18 फीसदी का इजाफा हुआ है। वहीं कर्नाटक में 2014 में 321 किसानों ने आत्महत्या की थी जो 2015 में बढ़कर 1300 हो गई है।
सरकार ने 2015-16 के बजट को किसानों के फायदों के मद्देनजर बनाया था।
सरकार फसल बीमा, नाबार्ड से करोड़ों का कर्ज जैसी कई योजनाएं चला रही है।
सरकार की इन योजनाओं के बावजूद किसान आज भी आत्महत्या करने पर मजबूर है।
5 अक्टूबर की एनडीटीवी की खबर बताती है कि लुधियाना (पंजाब) का एक किसान कर्ज में डूबा था, जिसने अपने 5 साल के बेटे के साथ नहर में कूद आत्महत्या कर बैठा है।
वहीं 17 नवम्बर की खबर बताती है कि तेलंगाना(हरियाणा) में एक किसान अपने परिवार के साथ जहर खाकर आत्महत्या कर बैठा।
यह तो एक दो घटना है ऐसी सैकड़ों घटना आपको हर न्यूज़ पोर्टल पर मिल जाएंगी, जिसे कोई पढ़ने वाला नहीं और न ही ऐसी खबरें टेलीविजन के लिए टीआरपी बटोर पाती हैं।
मेरा सवाल सीधा और सरल है। हमने -आपने हमेशा किसानों की आत्महत्या की खबरें सुनी है। जो कर्ज में डूबा होता है। क्या आपने कभी ऐसी खबर सुनी है कि फलाने बिल्डर, फलाने नेता, फलाने बड़े बिज़नेस मैन का बेटा या खुद वो कर्ज के कारण आत्महत्या किया हो।
नहीं आपने कभी नहीं सुना होगा। (जबकि उनके कर्ज हजारों करोड़ में होते हैं) मैंने भी नहीं सुना है। क्योंकि हमारी सरकार और हमारे सरकारी बैंक उनके टैक्स और कर्ज को माफ़ ही कर देती है, साथ ही विदेशों में मौज-मस्ती करने की छूट भी उपहार में देती है।
सोचने वाली बात है दोनों लेते कर्ज ही है। फर्क बस इतना होता है एक हजारों में लेता है तो दूसरा हजार करोड़ में।
उसके बाद होता है क्या ? एक अपने आप को मौत के हवाले कर देता है तो वही दूसरा विदेशो में मौज मस्ती करता है। क्यों भाई ? क्यों ?
आप फलाने-फलाने योजना की बात करते हो और कहते हो किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। किन्तु वास्तविकता तो कुछ और ही है।
आपका पैसा, आपकी योजना चलती तो है किसानों के लिए, लेकिन आधे रास्ते में अपना दम तोड़ देती है।
अगर आप कहे कि नहीं ऐसा नहीं होता है तो कोई बाप अपने पांच साल के बच्चे को गोद में ले नदी में शौक से तो कूद कर अपनी जान नहीं देगा और न ही कोई जहर खाकर और न ही कोई कई वर्षों से कर्ज में डूबा होता।
नोटबंदी के इस हो-हल्ला में सोचा आपसे जरा उसकी बात कर लूं, जिसकी वजह से हम सभी अन्न का निवाला अपने पेट में डाल पा रहे हैं। चाहे उसका पेट भूखा है या भरा।
खैर आपको इस बिन टीआरपी वाले खबर पे नजर डालना पड़ा उसके लिए माफ़ी तो नहीं मागूँगा।
लेकिन अंततः यह सवाल आपके लिए छोड़ता हूँ कि विभिन्न मार्गों से कर्ज के रूप में पैसा लिए दो व्यक्तियों में एक के नसीब में मौत तो दूसरे के नसीब में विदेश, क्यों ? क्यों?
ठहरिये, सोचिये, समझिए। वैसे दुनिया नोटबंदी में व्यस्त है ही।