नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली की अतिथि प्रोफेसर, एवं पी यू सी एल की राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता सुधा भारद्वाज द्वारा जारी सार्वजानिक बयान

मुझे सूचित किया गया है कि रिपब्लिक टीवी ( Republic TV) ने 4 जुलाई 2018 को एक कार्यक्रम प्रसारित किया है, जिसे उसके एंकर और एम.डी. अर्नब गोस्वामीसुपर एक्सक्लूसिव ब्रेकिंग न्यूज़” (Super Exclusive Breaking News) के रूप में पेश कर रहे हैं.

इस कार्यक्रम में, जो बार-बार पेश किया जा रहा है, मेरे खिलाफ आरोपों की एक लम्बी सूची पेश की जा रही है जो हास्यपद, अपमानजनक, झूठी, और एकदम निराधार हैं.



गोस्वामी का दावा है कि मैंने किसी माओवादी को — कोई “कामरेड प्रकाश” को – एक पत्र लिखा है (जिसमें मुझे “कामरेड अधिवक्ता सुधा भारद्वाज” के रूप में पेश किया गया है), जिसमें मैंने कहा है कि “काश्मीर जैसी परिस्थिति” निर्मित करनी होगी. मुझ पर माओवादियों से धन राशि प्राप्त करने का भी इलज़ाम मढ़ा गया है. और कि मैंने इस बात की पुष्टि की है कि तमाम वकीलों के किसी-न-किसी तरह से माओवादियों से संपर्क हैं, जिनमें से कई को मैं जानती हूं कि वे बड़े उत्कृष्ट मानव अधिकार वकील हैं, और अन्य जिन्हें मैं जानती भी नहीं.

ऐसे किसी भी पत्र से किसी भी तरह का सबंध होने से मैं दृढ़ता और निसंदेह इनकार करती हूं कि मैंने ऐसा कोई भी पत्र लिखा है जिसका ज़िक्र गोस्वामी ने किया है – अगर ऐसा कोई दस्तावेज़ अस्तित्व मैं है तो भी मैंने उसे नहीं लिखा है. रिपब्लिक टीवी द्वारा उन सभी आरोपों का मैं खंडन करती हूं जो उसने मेरे खिलाफ मढ़े हैं, मुझे बदनाम करने के लिए, जिससे मुझे व्यवसायिक और व्यक्तिगत चोट पंहुंची है. अपने इस कार्यक्रम में रिपब्लिक टीवी ने इस पत्र के स्रोत का ज़िक्र कहीं भी नहीं किया है. मुझे यह बहुत ही अजीबो-गरीब मामला लगता है कि एक दस्तावेज़ जिसमें गंभीर अपराधों के सबूत मौजूद हैं, अर्नब गोस्वामी के स्टूडियो में सबसे पहले प्रगट हो.

मैं पिछले 30 वर्षों से ट्रेड यूनियन आन्दोलन से जुडी हुई हूं, और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा में सक्रिय रही हूं, जिसकी स्थापना शहीद शंकर गुहा नियोगी ने की थी, और दल्ली-राजहरा और भिलाई की मजदूर बस्तियों में मैंने सैकड़ों मजदूरों के बीच जीवन जिया है, जो इस सत्य के गवाह हैं. ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता होने के नाते मैं सन् 2000 में एक वकील बनी, और तब से लेकर आज तक मैंने मजदूरों, किसानों, आदिवासियों, गरीबों के मुकदमों में पैरवी की है जो श्रम, भूमि अधिग्रहण, वन अधिकारों और पर्यावरण अधिकारों के दायरे में आते हैं. सन 2007 से मैं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में वकालत करती हूं, और उच्च न्यायालय ने मुझे छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (Chhattisgarh State Legal Services Authority) के सदस्य के रूप में भी नियुक्त किया.

पिछले एक वर्ष से मैं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली (National Law University, Delhi) में एक अतिथि प्रोफेसर (Visiting Professor) के रूप में शिक्षा दे रही हूं, जहां आदिवासी अधिकारों और भूमि अधिग्रहण पर मैंने एक संगोष्ठी पाठ्यक्रम भी आयोजित किया; और कानून और गरीबी पर एक नियमित पाठ्यक्रम भी पेश किया. दिल्ली की जूडिशियल अकादेमी (Delhi Judicial Academy) के कार्यक्रम के अभिन्न अंग के रूप में, मैंने श्री लंका के श्रम न्यायालयों के पदासीन अध्यक्षों (Presiding Officers of Labour Courts from Sri Lanka) को भी सम्भोदित किया था.

मिलिए सुधा भारद्वाज से जिन्हें नक्सली बताया जा रहा

मेरे जन-पक्षीय पदों और मानव अधिकार अधिवक्ता के रूप में किये गए काम जग-विदित हैं. मैं पूरी जागरूकता से जानती हूं कि मेरे यह काम अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी द्वारा जोर-शोर से अक्सर व्यक्त किये गए विचारों से प्रत्यक्ष तौर पर विरोध में पाए जाते हैं.

मेरे विचार से फिलहाल दुर्भावनापूर्ण, प्रेरित और मनगढ़ंत हमला मेरे ऊपर इसलिए किया जा रहा है कि अभी हाल ही में 6 जून को दिल्ली में एक प्रेस वार्ता में अधिवक्ता सुरेन्द्र गद्लिंग की गिरफ्तारी की मैंने निंदा की थी.

इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लाव्यर्स (IAPL), जो वकीलों का एक संगठन है, उसने भी अन्य वकीलों के मुद्दों को ज़ोर-शोर से उठाया है, जैसे कि भीम आर्मी के अधिवक्ता चन्द्रशेखर, और स्टर्लिंग पुलिस गोली चालन के बाद गिरफ्तार किये गए अधिवक्ता वाचिनाथन. यह स्पष्ट है कि ऐसे वकीलों को निशाना बना कर राज्य उन सभी को चुप कराने की कोशिश में है जो नागरिकों के जनतांत्रिक अधिकारों के लिए वकालत करते हैं.

Lawyer-activist Sudha Bharadwaj squares up to Arnab Goswami and Republic TV over defamatory allegations

राज्य की रणनीति यह है कि एक भय का माहौल पैदा किया जाए, और कानून व्यवस्था के लिए न्यायसंगत पहुंच से आम लोगों को वंचित रखा जाए. इसके साथ ही गौरतलब है कि अभी हाल ही में आई.ए.पी.एल. ने कश्मीर में वकीलों द्वारा जिन कठिनाइयों के सामना किया जा रहा है उनकी सच्चाई जानने के लिए एक टीम गठित की थी.

एक मानव अधिकार अधिवक्ता होने के नाते मैं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में आदिवासियों की फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में बन्दी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) के प्रकरणों में भी पेश हुई थी. और इसके अलावा मैं तमाम मानव अधिकार रक्षकों की पैरवी करने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) के समक्ष भी पेश हुई हूं. अभी हाल ही में एन.एच.आर.सी. ने छत्तीसगढ़ के सुकमा के कोंदासवाली गांव में एक जांच के लिए मेरा सहयोग मांगा था. इन सभी प्रकरणों में मैं उसी व्यावसायिक ईमानदारी और साहस के साथ पेश आई जो एक मानव अधिकार अधिवक्ता के लिए उचित है. ऐसा लगता है कि यह ही “मेरा अपराध” है कि मैं अर्नब गोस्वामी के सुपर एक्सक्लूसिव अटेंशन की शिकार हूं.

मैंने अपने अधिवक्ता से अर्नब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी को मेरे खिलाफ झूठे, दुर्भावनापूर्ण आर बदनाम करने वाले आरोपों के लिए कानूनी नोटिस भेजने का अनुरोध किया है.

अधिवक्ता सुधा भारद्वाज

नई दिल्ली, 4 जुलाई 2018